गाँव में घुसते हीं एक घर के बाहर हरे कपड़े से घिरे जमीन के टुकड़े पर नजर पड़ती है, पास जा कर देखा तो उस बाड़ के अन्दर की जमीन पर कई मौसमी सब्जियों के पौधे लगे थे, बैंगन, लहसुन, मकई, गोभी, मिर्च, प्याज और बाड़ के किनारों पर अनार, सहजन और पपीता के पौधे लगे थे. पूछने पर पता चला की ये पोषण बाग़ है, जिसमे पोषण से युक्त सब्जियाँ उगायी जाती है. थोड़ा आगे बढ़ने पर गाँव के बीचोबीच लगे चापाकल पर नजर पड़ती है, जिसके चारो तरफ की जमीन को पक्का किया गया है और नाली का रास्ता आगे जा कर एक गड्ढ़े (जल्सोखता) में मिलता है. पूछने पर एक महिला मालती देवी ने बताया की मैडम ऐसे गड्डे में पानी जाने से जमीन का पानी जमीन में ही चला जाता है, बर्बाद नहीं होता और चापाकल गर्मी में भी नहीं सूखता है. आश्चर्य और ख़ुशी की मिश्रित भावना के साथ जैसे हीं आगे बढ़ी तो मिटटी के एक घर के बाहर सीमेंट की खाली थैलियों में बैंगन के पौधे देखे. उस घर की मालकिन पार्वती देवी ने बताया कि गाँव में सड़क के निर्माण के बाद मजदुर ऐसी सीमेंट की थैलियों को यु हीं फेक कर चले जाते हैं. प्रवाह संस्था की शालिनी दीदी ने इसका उपयोग करके पौधे लगाने की सलाह दी. मालती देवी ने अपने घर के आँगन में बने छोटे से पोषण बाग़ को भी दिखाया.
पास हीं के एक घर में गाय बंधी थी और शेड में गौमूत्र इकट्टा करने के लिए गड्डे बने थे. पास हीं एक छोटी सी चबूतरानुमा जगह बनी थी जिसमें एक बाल्टी में पानी और एक मग रखा था, यह व्यवस्था हाथ धोने के लिए की गयी थी, जिसकी नाली भी पास में बने एक गड्डे में जा कर मिल रही थी. उस घर के मालिक सुधीर राय ने कहा कि अच्छी तरह से हाथ धोना और स्वच्छता काफी हद तक हानिकारक बैक्टीरिया और अन्य कीटाणुओं के फैलाव को कम कर सकती है, जो डायरिया, उल्टी और अन्य हानिकारक संक्रमण का कारण बनते हैं. हमसब खाने के पहले और शौच के बाद नियमित हाथ धोते हैं.
यह नजारा देवघर के सोनारायठाड़ी प्रखंड के खिजुरिया पंचायत अंतर्गत कुशमाहा गाँव का था. ऐसा ही नजारा बिन्झा पंचायत अंतर्गत रायकुंठ, मगडीहा पंचायत के बारा, खिजुरिया पंचायत के पोखरिया, रंगातांड, धोरवा, जरका-2 पंचायत आदि कई गाँव में देखने को मिलता है. दरअसल इन ग्रामीण लोगों की जीवनशैली और आदतों में आये इस सकारात्मक बदलाव का कारण प्रवाह संस्था का निरंतर प्रयास है. इस प्रखंड में समुदाय के माध्यम से लोगों में स्वच्छता, स्वास्थ्य, पोषण एवं व्यवहार परिवर्तन से संबंधित जागरूकता फैलाने का काम किया जा रहा है. प्रवाह के शुभांकर जी कहते हैं- समूह की दीदियों को स्वच्छता, स्वास्थ्य, पोषण एवं व्यवहार परिवर्तन संबंधित जानकारी नियमित दी जाती है. ताकि समूह की प्रत्येक महिला तक ये जानकारियां पहुंच सकें. प्रशिक्षण आयोजित किए जाते हैं और रंगीन फ्लिपचार्ट के माध्यम से स्वच्छता, स्वास्थ्य, पोषण एवं व्यवहार परिवर्तन से संबंधित मुद्दों को समझाया जाता है. ग्रामीण सतत आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण आदि पर लम्बे समय से काम कर रही संस्था प्रवाह ने देवघर के सोनारायठाड़ी प्रखंड में पिछले तीन सालों से POSHANN अभियान के तहत कुपोषण को दूर करने के लिए कई काम किए हैं. प्रवाह के शुभांकर जी कहते है कि पोषण का सम्बंध केवल भोजन से नहीं है, बल्कि स्वच्छता, रसायन मुक्त साग, सब्जियों के उपयोग, आदि से है. प्रवाह की ही शालिनी जी बताती हैं कि गाँव के लोग पहले केवल चावल, रोटी आदि हीं खाते थे, इससे उन्हें उचित पोषण नहीं मिल पाता था. हमने इन लोगों को तिरंगा भोजन करना सिखाया. शालिनी जी बताती हैं कि तिरंगा भोजन में तीन रंग का भोजन बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है. जिसमें चावल, दाल और हरी सब्जियों को शामिल करना बताया गया है.
पुरे प्रखंड में स्वास्थ्य, पोषण एवं स्वच्छता की जानकारी देने से लोगों के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं. बिन्झा पंचायत के रायकुठ गाँव की सेविका अनीता देवी कहती हैं इससे मातृत्व मृत्युदर में कमी आ रही है. आहार विविधता एवं व्यवहार परिवर्तन अपना कर पैसे की बचत एवं कुपोषण जनित रोगों से बचाव हो रहा है. वह कहती हैं कि सरकार का लक्ष्य है कि ग्रामीण महिलाओं तक स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं पोषण की जानकारी पहुंचे और हम प्रवाह संस्था के साथ जुड़कर इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं. नियमित सामुदायिक बैठक के माध्यम से स्वच्छता एवं आहार विविधता से लाभ, व्यवहार परिवर्तन का अर्थ, शिशु को स्तनपान करने का महत्व, पूरक आहार, महिलाओं के लिए पौष्टिक आहार, आदि के महत्व पर चर्चा की जाती है.
गाँव में सफाई एवं स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन के लिये उपयोग में लाए जाने वाले हर छोटी-बड़ी पहल में प्रवाह उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहा है. प्रवाह के पद्मलोचन जी कहते हैं कि गाँव में स्वच्छता साधनों, घरों में स्वच्छता प्रथाओं तथा स्वच्छता योजनाओं के लिये उत्तरदायी संस्थानों के कार्य में सुधार और तेज़ी लाने हेतु व्यवहार परिवर्तन को स्वच्छता कार्यक्रमों के एक आवश्यक घटक के रूप में देखा जाने लगा है. हलाकि सरकार के इतने प्रयासों के बावजूद कई जगह शौचालय नहीं है, गाँव में घुसते ही आपको ओडीएफ का बोर्ड मिलेगा. यानी यह गाँव खुले में शौच मुक्त है. हमें लगा था अन्य ओडीएफ की तरह यहाँ भी लोग न केवल अपने घरों में शौचालय बनाकर व इसका उपयोग करने तक ही सीमित हैं बल्कि अपने स्वयं की, घरेलू तथा सामुदायिक एवं परिवेशीय स्वच्छता के प्रति भी जागरुक हुए हैं और स्वेच्छा से स्वच्छता को अंगीकार करते जा रहे हैं. लेकिन यह अर्ध्य साबित हुआ. महिला समूह की बैठक में उपस्थित 8 लोगों में से किसी के घर में शौचालय नहीं है.
बजुन मुर्मू ने बताया कि गाँव में एक जगह शौचालय का निर्माण कराए जाने की बात की गयी थी, मगर शौचालय के नाम पर केवल चार दीवारें उठा कर उसमें दरवाजा लगा दिया गया और उसके अन्दर शौचालय बनाया ही नहीं गया. हमने जा कर देखा तो उनकी की बात सही थी, एक शेडनुमा कमरा बना था और उसके अन्दर खाली कचरा भरा था, शौचालय की शीट नहीं थी. गाँव के लोगों ने आगे बताया कि शौचालय के लिए आवेदन तो कई बार दिया गया लेकिन शौचालय नहीं मिला. लेकिन इसके बावजूद घरेलू तथा सामुदायिक एवं परिवेशीय स्वच्छता के प्रति ये ना केवल जागरुक हैं बल्कि यह उनकी आदत में शुमार है. जरका 2 पंचायत के मोदीडीह गाँव की फुलमनी मुर्मू कहती हैं, भले हमारे घरों में शौचालय नहीं है लेकिन हम स्वच्छता बरकरार रखने में कोताही नहीं बरतते हैं. गाँव में कचड़े के निपटान की व्यवस्था काफी बढ़िया है. मिटटी में मिलने योग्य कचड़े को हम गड्डे में डाल देते हैं. यह वह प्रक्रिया है जिससे घरेलू कचरा जैसे घास, पत्तियाँ, बचा खाना, गोबर वगैरह का प्रयोग खाद बनाने में किया जाता है. गोबर और कूड़े-कचरे की खाद तैयार करने के लिए गाँव में गड्ढा खोदे गए हैं. लोगों को समझाया गया है कि गड्ढे में घरेलू कृषि, कूड़ा-कचरा एवं गोबर भूमि में गाड़ देना होता है. इससे करीब छह महीने में खाद तैयार हो जाता है. इसे खेती के उपयोग में लाया जाता है. कचरे से अच्छी खाद तैयार हो जाती है जो कि खेत की उपज बढ़ाने में सहायक है. बांकी कचड़े को समय-समय पर जला दिया जाता है. 60 वर्षीय गहनी देवी याद करती हैं, संस्था ने हमारी सोच बदल दी, खेती के साथ पोषण की जानकारी और खान-पान में विविधता का ज्ञान हमें पहले नहीं था.