राजमहल के पहाड़ियों को यदि पता होता कि सिराजुद्दौला और उसके साथियों की लड़खाड़ती और थकी चाल को संभालने से उनकी आने वाली पीढ़ी की आज़ादी बहाल रहती तो संभव था कि उनका व्यवहार कुछ और होता। सत्रहवीं सदी के मध्..
डिजिटल युग में पारदर्शिता, भागीदारी और जवाबदेही की जो अपेक्षाएँ उभरी हैं, वे तकनीक के सहारे ही पूरी हो सकती हैं। लेकिन तकनीक अगर लोक जीवन से असंगत हो, तो वह एक बिचौलिए की भूमिका में आ जाती है जो दूरी ..
"विकास" के नाम पर जब दुनिया आगे बढ़ती है, तो पीछे छूट जाते हैं वे लोग, जो अपने जंगलों, नदियों और पहाड़ों के साथ जीते आए हैं। झारखंड के आदिवासी ऐसे ही समुदाय हैं, जो अब एक नई वैश्विक अवधारणा ..
नौ जून को बिरसा सवेरे नौ बजे मर गया, लेकिन शाम को साढ़े-पाँच बजे के पहले सुपरिटेंडेंट मुआयना न कर सके। मुआयना करके लिखा : 'पाकस्थली जगह-जगह सिकुड़कर ऐंठ गयी है। क्षीण होते-होते छोटीं आँतें बहुत पत..
जब महात्मा गांधी ने "ग्राम स्वराज" की बात की थी, तो उनका सपना केवल प्रशासन के विकेंद्रीकरण तक सीमित नहीं था। वे एक ऐसी ग्राम-व्यवस्था की परिकल्पना कर रहे थे, जहाँ सत्ता, संस्कृति और समाज की ..
“जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी” — यह नारा आज भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में उभर चुका है। वर्षों से पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदाय अपने अधिकारों क..
झारखंड के किसी भी आदिवासी गाँव में चले जाइए — चाहे वह खूंटी के डोंबारी बुरू की तलहटी हो, या पश्चिमी सिंहभूम के सुदूर जंगलों में बसा सारंडा का कोई गाँव। आप पायेंगे कि जीवन का मिज़ाज कुछ और ही है।..
सुख्यात साहित्यकार तारा शंकर बंधोपध्याय के उपन्यास हँसली बांक की उपकथा – में एक प्रसंग आता है- बनवारी ने एक और लड़ाई देखी है।सन 1914 से शुरू हुई थी। कुछ ही साल तक चली थी-खूब याद है उसे। धोती जोड़े..
भारतीय समाज की संरचना अत्यंत जटिल और बहुपरत है। इसमें वर्चस्व की प्रवृत्तियाँ केवल सत्ता और अर्थव्यवस्था के ज़रिए नहीं, बल्कि गहरी सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से आकार लेती रही हैं। यह वर्चस..
के टी शाह की पुण्य तिथि 14 मार्च पर विशेष जब देश की आजादी के अग्र पंक्ति के ज्यादातर नेता वेस्टर्न कलर में रंग गये थे और भारत के विकास की बुनियाद के लि..
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA) झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों के लिए बेहद महत्वपूर्ण कानून है। यह संविधान के पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को ..
पेसा के चिंतन-मनन के सत्र में आज प्रस्तुत है,छठी अनुसूची के पैटर्न पर विमर्शपेसा-1996 की धारा 4(ओ) छठी अनुसूची के पैटर्न के अनुपालन का क्या संदर्भ है कई साथियों की मान्..
पेसा पर चल रहे चिंतन-मनन पर सार्थक बहस के लिए ये विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं। हम थोड़ा ओल्ड स्कूल के हैं, इसलिए सबकुछ को असंवैधानिक और गैर कानूनी नहीं समझ पाते हैं। तीन किश्तों की पहली श्र..
सुधीर पाल क्या ड्राफ्ट पेसा नियमावली समुदायों की रुढ़ि, परंपरा और रीति-रिवाज से असंगत है? क्या सम..
संविधान के 73वें संशोधन के बाद पंचायतों में महिलाओं को कम से कम एक तिहाई आरक्षण की व्यव..
सुधीर पाल/ छंदोंश्री
पहला सवाल यही हो सकता है कि स्थल निरीक्षण के दौरान स्थल निरीक्षण की सूचना ग्राम वन अधिकार समिति ने फॉरेस्ट और राजस्व विभाग को दी तीन स्थितियों समानता देखी गई है पहले की फॉरेस्ट और राजस्व के लोग नहीं आ..
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाल में समाप्त हुए झारखंड के विधानसभा चुनावों के जो भी परि..
कतंत्र का मूल तत्व "जन भागीदारी" है। और भागीदारी वहीं संभव होती है जहाँ संवाद सहज, सुलभ और संस्कृति से जुड़ा हो। यदि ग्राम सभा में या ग्राम पंचायत में कोई बात ऐसी भाषा में कही जाए जो ग्र..
पटना का ऐतिहासिक श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल 14 जून 2025 को एक ऐसे ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना, जिसने बिहार के सामाजिक व राजनीतिक परिदृश्य में एक नई इबारत लिख दी। लगभग तीन ..
झारखंड के अनुसूचित जनजाति समुदाय के अंतर्गत कुल 32 छोटी और बड़ी जनजातियाँ आती हैं। हालांकि जनजातीय समुदायों को एकीकृत श्रेणी के रूप में देखा जाता है, परंतु उनके भीतर भी सामाजिक, शैक्षिक और ..
झारखंड की राजनीति इन दिनों एक ऐसे विषय के इर्द-गिर्द घूम रही है, जिसे अगर ठीक से समझा जाए तो यह न केवल राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रश्न है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक आत्मा के लिए भी एक कसौटी-परीक्..
हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। स्कूलों, संस्थानों, सरकारी कार्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों में एक ही वाक्य गूंजता है— "धरती को बचाना है!" लेकिन क्या सचमुच धरती को बच..
जातिगत जनगणना और उसकी संभावित परिणतियाँ आज केवल सामाजिक न्याय की पुनर्परिभाषा नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक ढाँचे की पुनर्संरचना का संकेत भी हैं। विशेष रूप से अनुसूचित क्षेत्रों और ट्राइबल सब-प्लान (टीएसपी)..
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई 2025) के अवसर पर एक विशेष कहानी झारखंड के आदिवासी इ..
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में समय-समय पर संविधान के माध्यम से वंचितों को आवाज़ देने के प्रयास किए गए हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद जिस संवैधानिक ढांचे की स्थापना की गई, उसका मूल उद्देश्य यही था कि हर..
अब समय आ गया है जब हम 'ग्राम संसद' की कल्पना को एक व्यवहारिक, संवैधानिक और ठोस आकार दें। ग्राम संसद केवल ग्राम सभा की नई नामावली नहीं है, बल्कि यह एक नई राजनीतिक चेतना का स्वरूप है। इसका आशय उ..
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act), 1908, झारखंड के आदिवासियों की भूमि सुरक्षा की आत्मा है। यह कानून आदिवासियों को न केवल बाहरी ज़मींदारी शोषण से बचाता है, बल्कि उनके सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को भ..
(इस आलेख पर साथियों के विचार आमंत्रित हैं। विचार पेसा और पंचायत राज पर ही आधारित हो ताकि हम अपनी समझ बढ़ा सकें तो बेहतर रहेगा।) पेसा का पूरा ढांचा पंचाय..
केन्द्रीय पंचायती राज तथा मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने नयी दिल्ली में ‘राज्यों में पंचायतों का अंतरण की स्थिति-एक सांकेतिक साक्ष्य आधारित रैंकिंग’ शीर..
पेसा पर चल रहे चिंतन-मनन पर सार्थक बहस के लिए ये विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं। तीन किश्तों की दूसरी शृंखला यहां प्रस्तुत है: पेसा से संबंधित सवाल-जवाब क्य..
झारखंड राज्य के पांचवी अनुसूची क्षेत्र (शिड्यूल एरिया) में उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को पेसा कानून के तहत नियमावली बनाने का निर्णय दिये जाने के बाद पर राज्य सरकार द्वारा पहल करते हुए नियमावली ब..
सुधीर पाल झारखंड में जेपीआरए, 2001 नहीं चलेगा तो क्या चलेगा? देश में झारखंड समेत दस राज्य पाँचव..
मतदाताओं ने की..
ऊन उत्पादन किसी भी राज्य ही नहीं, देश की अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों पर ले जाने का बहुत बड़ा साधन हो सकता है।लेकिन यह दुर्भाग्य है कि भारत में इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। ऊन के लिए भेड़ पालन की..
प्रतिवर्ष 19 नवंबर को विश्वभर में वर्ल्ड टॉयलेट दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को खुले में शौच करने से रोकना व शौचालय से जुड़े मानवाधिकार को समझान..