पटना का ऐतिहासिक श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल 14 जून 2025 को एक ऐसे ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना, जिसने बिहार के सामाजिक व राजनीतिक परिदृश्य में एक नई इबारत लिख दी। लगभग तीन दशकों के लंबे अंतराल के बाद पाल समाज इस अभूतपूर्व संख्या में एक मंच पर एकत्र हुआ। यह केवल एक महासम्मेलन नहीं था, बल्कि यह समाज की जागरूकता, संघर्षशीलता और अपने अधिकारों के प्रति दृढ़ संकल्प का जीवंत प्रतीक बनकर सामने आया।
वास्तव में, 23 मार्च 2025 को आयोजित पाल हुंकार रैली से जो ऊर्जा और विश्वास का संचार हुआ था, उसने जून की प्रचंड गर्मी में भी समाज को एकजुट रहने की प्रेरणा दी। सामान्यतः इस प्रकार के आयोजनों के लिए फरवरी या मार्च जैसे मौसम को उपयुक्त माना जाता है, किन्तु चिलचिलाती धूप और भीषण तापमान के बावजूद बिहार के कोने-कोने से हजारों पाल बंधुओं का पटना पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि अब समाज पूरी तरह जागृत है और अपने हक-अधिकार के लिए किसी भी सीमा तक संघर्ष करने को तैयार है।
आज के इस दौर में यह पंक्तियाँ सजीव प्रतीत होती हैं —
"ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे जात के
अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे जात के।"
पाल समाज की यह मशाल अब केवल जली नहीं है, बल्कि वह पूरे बिहार में सामाजिक अधिकारों के लिए दिशा देने वाली प्रेरणा बन चुकी है।
महासम्मेलन की सबसे विशेष बात यह रही कि यह किसी एक राजनीतिक दल का मंच नहीं रहा। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ-साथ जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश महासचिव श्री राजेश पाल जी समेत समाज के अन्य राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक वर्गों के प्रतिनिधियों ने तन-मन-धन से इस कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता निभाई। यह पूरे समाज की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब था, जिसमें हर वर्ग ने मिलकर अपनी भूमिका निभाई।
मुख्य अतिथि के रूप में नेता प्रतिपक्ष श्री तेजस्वी यादव का संबोधन भी इस सम्मेलन का एक प्रमुख भाग रहा। उन्होंने चरवाहा आयोग जैसे पुराने वादों का पुनः उल्लेख अवश्य किया, किन्तु समाज की अपेक्षा थी कि इस महासम्मेलन के मंच से वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में पाल समाज को ठोस राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की कोई स्पष्ट घोषणा करेंगे। किंतु अफसोस, वे इस पर पूरी स्पष्टता से बात नहीं कर पाए। कभी पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कटाक्ष, तो कभी अन्य सामान्य विषयों पर उनका भाषण केंद्रित रहा। इसने समाज के अंदर एक हल्की निराशा भी उत्पन्न की, क्योंकि यह मंच विशेष रूप से पाल समाज के भविष्य और उसके अधिकारों के लिए ही था।
हालाँकि, समाज ने अपने सांस्कृतिक गौरव व परंपरागत व्यवसाय की पहचान को भी इस मंच से सशक्त रूप में प्रस्तुत किया। तेजस्वी यादव को भेड़ और कम्बल भेंट कर समाज ने अपने ऐतिहासिक पेशे के प्रति अपने आत्मसम्मान और गौरव का प्रतीकात्मक संदेश दिया।
अब जबकि बिहार विधानसभा चुनाव केवल कुछ महीनों की दूरी पर है, पाल समाज के भीतर एक नई ऊर्जा, संगठित ताकत और दृढ़ निश्चय स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है। संघर्ष की इस लंबी यात्रा में अब सफलता की मंज़िल अत्यंत समीप प्रतीत हो रही है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कालजयी पंक्तियाँ इस परिस्थिति में अत्यंत उपयुक्त लगती हैं —
"एक खेय है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ,
वह देखो, उस पार चमकता है मंदिर प्रियतम का।
आकर इतना पास फिर, वह सच्चा शूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।"
पाल महासम्मेलन 2025 ने यह सन्देश पूरे बिहार और देश को दे दिया है कि अब समाज केवल नारों और वादों से संतुष्ट नहीं होगा, बल्कि उसे अपने वास्तविक अधिकार और राजनीतिक हिस्सेदारी चाहिए। समाज ने स्वयं को जागरूक कर लिया है, एकजुट कर लिया है और निर्णायक भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार है।