हमारे बारे में

‘पंचायत आब्जर्वर’ रांची, झारखण्ड से प्रकाशित होने वाली एक स्वतंत्र पत्रिका और वेब पोर्टल है. पंचायतों के संस्थागत विकास और सशक्तिकरण की उपलब्धियों और सीमाओं को व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाने के उद्देश्य से इसे 27 नवम्बर, 2012 को लॉन्च किया गया था.

हाशिए के समुदायों की अपेक्षाओं, आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में पहली (केंद्र) और दूसरी (राज्य) सरकार के अथक प्रयासों के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं निकल रहे हैं. अब जन आकांक्षाओं को पूरा करने के विकल्प के तौर पर तीसरी सरकार यानी पंचायत राज को देखा जा रहा है.

73वें संवैधानिक संशोधन और पंचायत राज विस्तार अधिनियम, 1996 (पेसा) ने ग्रामीण आबादी को उनकी परम्परागत स्वशासन को सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर दिया है.

पंचायत आब्जर्वर ग्रामीण अभिशासन में निर्णायक जन भागीदारी और तीसरी सरकार के सशक्तिकरण का अभियान है. यह जनसरोकार की राजनीति और ग्रामीण पत्रकारिता का अभिनव प्रयोग है.

सब की कोशिश है कि गांव आत्मनिर्भर बने लेकिन यह भी चिंतन करना जरूरी है कि हम किस तरह का आत्मनिर्भर गांव बनाना चाहते हैं. ग्राम पंचायतें काम करना चाहती हैं लेकिन फंड की कमी है. ज्यादातर पंचायतों के पास खुद की आय नहीं है.

संसाधनों पर कब्जे की एक नई राजनीतिक अर्थव्यवस्था में बहुत थोड़े से लोग आगे बढ़ पाते हैं और ज्यादातर हाशिए पर धकेल दिए जा रहे है. पत्रकार होने के नाते हम हम उन लोगों की कहानियां बताना चाहते थे जो इसे बना और बढ़ा रहे थे और साथ ही साथ जो पीछे छूट रहे थे.

एक दशक से ‘पंचायत आब्जर्वर’ लोगों, घटनाओं और प्रवृत्तियों को कवर करने की अपनी बेबाक और अनूठी शैली के लिए जाना जाता है. हमें मुख्यधारा की मीडिया की सीमाओं और कमियों को लांघने का श्रेय दिया जाता है. पंचायत आब्जर्वर के रिपोर्ताज ने कमजोर तबके के उन व्यक्तियों और समूहों को राष्ट्रीय पटल पर लाया है जो नेतृत्व की भूमिका निभाते हैं और बदलाव लाते हैं लेकिन उनकी अनदेखी कर दी जाती है. हमने दिखाया है कि प्राइम टाइम के बाद भी ‘देस’ मौजूद है.

यह संभव हो पाया है क्योंकि हम एक छोटा लेकिन प्रभावी उद्यम बनाने के लिए बड़ी मीडिया की नौकरियों से बाहर निकल पाये हैं. इस उद्यम के माध्यम से पत्रकार ऐसी कहानियों की तलाश कर सकते हैं, ख़बरें फैशन न हो बल्कि पैशन हो. हमारी स्पष्ट मान्यता है कि लोकतंत्र सिर्फ विश्वसनीय सुचना और जानकारियों पर ही पनपता है. स्वतंत्र छोटी मीडिया संस्थान पत्रकारों को कुछ नया करने और नई सीमाओं की तलाश करने की अनुमति देता है. पंचायत आब्जर्वर ने दिखाया है कि ज़ज्बा, कौशल और मूल्यों वाले पेशेवर पत्रकारों के लिए प्रभावशाली मीडिया उद्यम खड़ा करना संभव है.



संस्थापकद्वय



सुधीर पाल, संपादक एवं प्रकाशक, मीडिया में कई वरिष्ठ संपादकीय पदों पर रहे हैं. राजनैतिक सुधार, अभिशासन और पत्रकारिता से जुड़े मुद्दों पर नियमित लेखन एवं शोध में विशेष रूचि. तीन दशकों से ज्यादा समय से पंचायत राज और आदिवासी स्वशासन की व्यवस्था पर अध्ययन, अध्ययापन और लेखन में सक्रिय. विभिन्न विषयों पर आधा दर्ज़न किताबें प्रकाशित.



छंदोश्री, प्रबंध संपादक, एक वरिष्ठ पत्रकार और शोधकर्ता रही हैं. जल, जंगल, जमीन के आंदोलनों और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर वह लगातार लिखती रहीं हैं. उन्होंने द वीक, द हिंदुस्तान टाइम्स और द टेलीग्राफ में बतौर पत्रकार काम किया है. वह पैनोस, झारखण्ड सरकार और थोमसन-रायटर की फेलो रही हैं. उनके पास पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है और वह जेंडर पर ट्रेनर हैं.