​​पंचायत राज संस्थान में महिला जन प्रतिनिधियों के बढ़ते कदम

पंचायत ऑब्जर्वर



संविधान के 73वें संशोधन के बाद पंचायतों में महिलाओं को कम से कम एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की गयी है. वहीं हमारे राज्य में झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के अनुसार महिलाओं को सभी स्तरों पर 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया है. हमारे पितृसत्तात्मक समाज में जहाँ सभी क्षेत्रों पर पुरुषों का दबदबा रहा है उसमें राजनीति का क्षेत्र  सबसे ऊपर है. हालांकि आरक्षण के कारण समाज में पुरुषों और महिलाओं के लिए समान राजनीतिक अवसर का विचार तेजी से बदल रहा है. परंतु आज भी महिलाओं का राजनीति में आना लोगों को पूर्णरूपेण स्वीकार्य नहीं है गाँव- समाज के लिए तो यह समस्या और भी प्रासंगिक है. 
पंचायत राज संस्थान में महिलाओं का रुझान क्रमशः बढ़ता गया है. कुछ समय पहले तक महिलाएं केवल महिला आरक्षण की वजह से अपने पति या घर के अन्य पुरुषों के स्थान पर चुनाव लड़ती थीं. वहीं आज स्थिति बहुत बदल चुकी है आज महिलाएं स्वयं पर विश्वास करके संपूर्ण जोश और कुछ कर गुजरने की इच्छा के साथ चुनावी मैदान में उतर रही हैं. झारखंड पंचायत चुनाव, 2022 में लगभग पचास-पचपन हज़ार महिला जन प्रतिनिधि चुन कर आयीं हैं. इन महिलाओं में कई पहली बार चुन कर आयी हैं. पहली बार राजनीति में आने के कारण इसमें कुछ कर गुजरने का जोश तो भरपूर है परंतु राजनीति की समझ और सोचने एवं निर्णय लेने की प्रवृत्ति अभी कम है. हालांकि पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के द्वारा समय- समय पर क्षमतावर्धन प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित कराई जाती हैं. इन कार्यशालाओं का प्रभाव निःसंदेह सकारात्मक ही होता है परंतु यह भी परम सत्य है कि राजनीति ज्ञान कार्यशालाओं से हासिल नहीं किए जा सकते हैं. 
पहली बार पंचायत समिति के पद पर चयनित खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड अंतर्गत दियांकेल पंचायत की पंचायत समिति सदस्या ‘एलिस भेंगरा’ कहती हैं कि “सरकार ने महिलाओं को आगे लाने के लिए आरक्षण और प्रशिक्षण जैसी कई सुविधाएं दी हैं. उसी की बदौलत हम महिलाएं आज राजनीति में अपने कदम बढ़ा पा रही हैं. परंतु दुर्भाग्यवश आज भी गाँव-समाज की नजर में महिलाओं का राजनीति में आना और लोगों के बीच सभाएं करना अखरता है. मैं प्रशिक्षण या मीटिंग के लिए कहीं बाहर जाती हूँ तो मुझे कई तरह की अपमानजनक बातें सुनने को मिलती हैं. ये बातें ना केवल घरेलू कामों को लेकर होती हैं बल्कि चरित्र पर भी उंगली उठाई जाती है. हालांकि मेरे पति मेरा सहयोग करते हैं. परंतु शुरुआत में वो भी लोगों की बातों से प्रभावित होकर मुझे राजनीति छोड़ने की सलाह देते थे.”  एलिस आगे कहतीं है कि मैं पहली बार चुनाव जीत कर आयी हूँ. न तो मुझे राजनीति का विशेष ज्ञान है और ना ही पंचायतों का मगर अपने गाँव के लिए कुछ करना चाहती थी इसलिए राजनीति में आयी. मैं नयी हूँ और सारे काम अनजाने हैं इसमें हमारे पंचायत के प्रमुख एवं उप प्रमुख ने बहुत सहायता की.

पहली हीं बार जन प्रतिनिधि बनी चतरा जिले के चतरा प्रखंड अंतर्गत दाढ़ा पंचायत की मुखिया अमिता कच्छप ने बीएड की पढ़ाई की है परंतु समाज और अपने गाँव के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा ने उन्हें राजनीति की ओर आकर्षित किया. अमिता कहती हैं, “ महिलाएं चाहे तो क्या नहीं कर सकती हैं. सरकार भी आरक्षण और प्रशिक्षण देकर सहयोग करती है. परंतु पुरुषों के प्रति अति निर्भरता ने महिलाओं को पंगु बना कर रखा है. मैंने देखा है कि कई पंचायत प्रतिनिधि महिलाएं जागरूकता के अभाव, अपने घर के पुरुषों पर निर्भरता और लोक-लाज के कारण अपने काम को लेकर लापरवाह हैं. ऐसे में महिलाओं को स्वयं आगे आना होगा तभी हम राजनीति में अपने कदम जमा सकती हैं.” 


वहीं तीसरी बार चुनाव जीत कर आयी चतरा जिले के चतरा प्रखंड अंतर्गत गंधरिया पंचायत की मुखिया अनिता यादव, जो चतरा जिला मुखिया संघ की उपाध्यक्ष भी हैं, कहती हैं कि “आरक्षण महिलाओं के लिए वरदान है क्यूंकि हमारे पितृसत्तात्मक समाज में यदि ये आरक्षण नहीं होता तो पचास प्रतिशत महिलाएं कभी बाहर नहीं निकलतीं. हालांकि महिलाएं आगे आ रही हैं परंतु आज भी समाज और लोगों के बीच हम महिला जन- प्रतिनिधि यह कहकर मजाक का पात्र बना दी जाती हैं कि हम अपने पति से सहयोग लेती हैं. मैं तीसरी बार चुन कर आयी हूँ फिर भी मुझे इन तानों का सामना करना पड़ता है तो जो महिलाएं पहली बार चुन कर आती होंगी उनकी स्थिति का कल्पना आप कर सकती हैं. ये सही है कि हम महिलाएं सहयोग लेती हैं परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम काम नहीं कर सकती हैं. यदि ऐसा होता तो आज जनता मुझे तीसरी बार अपना मुखिया नहीं चुनती. सरकार ने महिलाओं को आरक्षण तो दिया है साथ ही साथ प्रशिक्षण भी देते हैं पर अब सरकार से मेरी यही गुजारिश है कि हमारी सुरक्षा और गरिमा का मान रखते हुए हम पंचायत प्रतिनिधियों को भी वाहन और सुरक्षा गार्ड की सुविधा प्रदान करें.”

हजारीबाग जिला के चुरचू प्रखंड अंतर्गत बहेरा पंचायत की पंचायत समिति सदस्या मालती देवी कहती हैं, “मैं अपने गाँव के लिए कुछ करना चाहती थी इसलिए मैंने जनता का प्रतिनिधित्व करने की ठानी. लोगों ने मुझ पर विश्वास जताया और मैं जीत भी गई. मैंने ज्यादा पढ़ाई नहीं की है और ब्लॉक की तरफ से हमारी कोई ट्रेनिंग भी नहीं हुई है. ऐसे में कई कागजी बातें समझने में मुझे दिक्कत आती है. मेरे पंचायत के मुखिया, उपमुखिया और मेरे पति मेरा सहयोग करते हैं. मैं धीरे-धीरे उनसे सीख रही हूँ और मुझे पूरी उम्मीद है कि एक साल में सब कुछ सीख जाउंगी.”


महिला जनप्रतिनिधियों के इन वक्तव्यों से यह स्पष्ट है कि महिलाएं स्वयं भी आगे आना चाहती हैं और नित्य नया कुछ सीखते हुए खुद को अधिक सशक्त कर रही है. यह सही है कि महिलाओं के राजनीति में आने का यह प्रारंभिक चरण है और उनकी राजनीतिक समझ बनने की प्रक्रिया अभी धीमी है. महिलाओं को राजनीतिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए न केवल महिला जनप्रतिनिधि को बल्कि अन्य आम महिलाओं को भी जागरूक होने की आवश्यकता है. हमारे पितृसत्तात्मक समाज में चूंकि हर क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व रहा है इसलिए महिलाओं के साथ समस्या यह भी है कि हमारा समाज महिला से पुरुषों की तरह काम करने की उम्मीद करता है. ऐसे माहौल में महिलाओं को पुरुषों का भी सहयोग चाहिए. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और आरक्षण का दृष्टिकोण तभी सफल हो पाएगा.