मुख्यधारा की दीवारों को तोड़ती यूट्यूब पत्रकारिता 

सुधीर पाल 



पत्रकारिता अब सिर्फ अखबारों के पन्नों और टीवी चैनलों की स्क्रिप्ट में सीमित नहीं है। जहाँ मुख्यधारा मीडिया (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक) बड़े कॉर्पोरेट घरानों, राजनीतिक गठजोड़ों और शहरी दर्शकों के प्रभाव में सिमटता जा रहा है, वहीं यूट्यूब पत्रकारिता एक नई परंपरा, नई भाषा और नई दिशा के रूप में उभर रही है। यूट्यूब अब केवल मनोरंजन या शॉर्ट वीडियो का मंच नहीं, बल्कि जन-सरोकार और वैकल्पिक पत्रकारिता की सबसे ताकतवर जमीन बन चुका है। यह पत्रकारिता उन आवाज़ों को स्पेस दे रही है, जो वर्षों से उपेक्षित थीं। यह मंच न केवल एक स्वतंत्र आवाज़ बना है, बल्कि उसने मुख्यधारा मीडिया की एकछत्र सत्ता को भी चुनौती दी है। झारखंड जैसे राज्य, जहाँ स्थानीय मुद्दों की अक्सर उपेक्षा होती रही, वहाँ यूट्यूब पत्रकारिता ने लोकतंत्र की असल जड़ों तक पहुँच बनाई है।

बीते तीन वर्षों यानि कोरोना काल के बाद डिजिटल प्लेटफॉर्म खासकर यूट्यूब ने पत्रकारिता को नया परिप्रेक्ष्य, नई पहुंच और नई पहचान दी है। दैनिक सन्मार्ग के संपादक ज्ञान रंजन कहते हैं कि लगभग हर पंचायत में ऐसे युवा मिल जाएंगे जो गाँव, आदिवासी समाज, महिला पंचायत प्रतिनिधि, विस्थापन,खनन, किसान, मजदूर आदि के मसले पर लगातार यूट्यूब पर रिपोर्ट बना रहे हैं। स्थानीय बोलिए में अपनी बात रख रहे हैं, लोगों से संवाद कर रहे हैं। इनका अपना दर्शक वर्ग है। इनका अपना रेविन्यू मॉडल है। गाँव के युवक-युवतियाँ स्मार्टफोन और सस्ते इंटरनेट से रिपोर्टर बने हैं। ऐसे पत्रकार जिनके पास न तो कोई मीडिया हाउस है, न ट्रेनिंग लेकिन जिनकी संवेदना और जमीनी समझ बहुत गहरी है। संपादक, प्रोड्यूसर, मालिक सब वही पत्रकार होता है।
अखबार या टीवी समूहों जैसे व्यवस्थित संस्थान और व्यवस्था नहीं होने के बाद भी यूट्यूब पत्रकारिता का असर कम नहीं है। बल्कि कई बार सरकार और नीति नियन्तकों की नींद यूट्यूब रिपोर्ट की वजह से खुलती है।  झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार और राज्य के एक प्रमुख यूट्यूब संस्थान के सह-संचालक सन्नी शरद बताते है कि    गोड्डा ज़िला के अमरपुर पंचायत में एक गांव है बड़ा केरलो। यह गांव पहाड़ी पर है। ज़्यादातर लोग सप्ताह में एक या दो दिन पहाड़ से  कई किलोमीटर पैदल चलकर नीचे उतरते थे और रतनपुर हाट में जाते थे। द फ़ॉलोअप ने बताया कि कैसे गाँव देश और दुनिया से कट गया है। 
खबर चलने पर तुरंत सरकार ने संज्ञान लिया और चौबीस घंटे के अंदर ज़िला के डीसी/ एसपी और सभी बड़े अधिकारी पहाड़ पर पहुंचे और गाँव वालों की समस्या का समाधान हुआ। आज़ादी के बाद पहली बार अभी पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सड़क भी बन रही है। यह क्षेत्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र बरहेट का हिस्सा है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जहां यूट्यूब ने अपनी सार्थकता साबित की है।  

यूट्यूब का बाज़ार  

यूट्यूब इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2021 से 2023 के बीच यूट्यूब ने भारत में कंटेंट क्रिएटर्स को ₹24,000 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। भारत में यूट्यूब के 45 करोड़ से अधिक मासिक उपयोगकर्ता हैं, जो इसे देश का सबसे बड़ा वीडियो प्लेटफॉर्म बनाते हैं। यूट्यूब भारत में 400,000 से अधिक चैनलों को होस्ट करता है, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा पत्रकारिता और जनसरोकार से जुड़े विषयों को कवर करता है। ज्यादातर अखबार के खुद के यूट्यूब चैनल  हैं। 15,000 से ज्यादा यूट्यूब चैनल पत्रकारिता, सामाजिक संवाद, सूचना और समाचारों पर केंद्रित हैं, जिनमें से कई झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों से संचालित होते हैं। 2023 तक, यूट्यूब पत्रकारिता की 750 से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं में रिपोर्टिंग होने लगी — इनमें हिंदी, बंगाली, मैथिली, संथाली, नागपुरी, खड़िया, कुडुख भी शामिल हैं।
एक अनुमान के मुताबिक झारखंड में छोटे-बड़े 500 से ज्यादा यूट्यूब न्यूज चैनल हैं। 50-60 करोड़ का सालाना कारोबार है। ज्यादातर यूट्यूब को कोई सरकारी सहायता नहीं है। लगभग दो हजार लोगों के लिए यह उनकी आजीविका का साधन है। जानकर आश्चर्य होगा कि झारखंड की लगभग एक तिहाई आबादी तक यूट्यूब न्यूज चैनल की पहुँच है। झारखंड में दर्जनों चैनल हैं जिनके सब्सक्राइबर की संख्या लाखों में है। भौकाल टीवी (1.13 मिलियन), द फॉलोअप (7 लाख), बसाकोप 22 Scope (5 लाख 55 हज़ार),झारखंड लाइव (2 लाख 59 हज़ार), लोकतंत्र19 (2 लाख 2 हज़ार), समाचार वाला (2 लाख 11 हज़ार), द फोर्थ फिलर (1 लाख 59 हज़ार), न्यूज़ झारखंड (7 लाख 33 हज़ार), एसएमपी झारखंड (6 लाख 89 हज़ार), जोहार हज़ारीबाग (1 लाख 76 हज़ार), सिटी न्यूज़ गिरिडीह (1 लाख 1 हज़ार),  द पंचायत न्यूज़(1 लाख 43 हज़ार), सोशल संवाद (94 हज़ार), लाइव 7 भारत(94.4 हजार), लोकल खबर (99 हज़ार), आदि हैं। ऐसे सैकड़ों चैनल और हैं जिनकी सब्सक्राइबर की संख्या भले लाख में नहीं है लेकिन सामाजिक सरोकार के मसले पर वे भी अच्छा काम कर रहे हैं।      

आर्थिक मॉडल

वीडियो पर चलने वाले विज्ञापनों से चैनल को आय होती है। राज्य सरकार का सूचना जन संपर्क विभाग भी आर्थिक सहायता करती है लेकिन यह बड़े चैनल तक सीमित है। यूट्यूब की नीति के अनुसार, यदि चैनल 1000 सब्सक्राइबर और 4000 घंटे का वॉच टाइम क्रॉस कर जाए, तो मोनेटाइज़ेशन शुरू हो सकता है। स्पॉन्सरशिप और डोनेशन तथा लोकल व्यापारी, सामाजिक संगठन और सीएसआर फंडिंग यूट्यूब चैनलों को मदद करते हैं। कुछ चैनल सदस्यता या यूपीआई माध्यम से दर्शकों से सीधी आर्थिक सहायता लेते हैं।

क्यों खास है यूट्यूब पत्रकारिता?

यह जनता का कैमरा और जनता के मुद्दे की पत्रकारिता का माध्यम है। यह पत्रकारिता गाँव के चबूतरों, खेत की मेड़ों, पंचायत भवनों और बाजारों से निकल रही है — जहाँ अब तक ना तो टीवी कैमरे पहुंचते थे और ना ही अखबार। कम लागत और कम खर्च में ज्यादा पहुँच का मॉडल इसे अन्य से ज़्यादा विशिष्ट बना देता है। बस एक स्मार्टफोन, इंटरनेट और संकल्प की ज़रूरत होती है। कोई भारी भरकम सेटअप, ओबी वैन या न्यूज़ रूम की ज़रूरत नहीं। सबसे खास है, दोतरफा संवाद का होना। दर्शक अब केवल खबरें सुनने वाले नहीं, वे प्रतिक्रिया देने वाले, सवाल पूछने वाले और सहयोग करने वाले भी हैं।

तथ्यात्मक गुणवत्ता की चुनौती

इसमें दो राय नहीं कि यूट्यूब से जनपक्षधर पत्रकारिता को बल मिला है। लेकिन लाखों लोगों तक पहुँच के बाद भी अखबार की तुलना में यूट्यूब पत्रकारिता में गंभीरता, तथ्यों की जांच, विषयों की विविधता, संवेदी भाषा की कमी पत्रकारिता के मापदंड और मानदंड पर खरे नहीं उतरते हैं। कई बार बिना पुष्टि के खबरें चलाई जाती हैं। व्हाट्सएप आधारित रिपोर्टिंग की बढ़ती प्रवृत्ति चिंता का विषय है। ट्रोलिंग और रिपोर्टिंग का डर आम लोगों को भी है और पत्रकारों को भी। स्वतंत्र पत्रकारों को सत्ता पक्ष से धमकियाँ, रिपोर्टिंग पर एफआईआर या यूट्यूब चैनल बंद करने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सत्ता की सख्त निगाहें 

सरकारें यह मान रही हैं कि नियंत्रित मीडिया के बाहर की आवाजें अब जनमत को प्रभावित कर रही हैं। यूट्यूब पत्रकारिता सत्ता विरोधी होती जा रही है। झारखंड, छत्तीसगढ़, यूपी, बंगाल जैसे राज्यों में यूट्यूब चैनलों ने ज़मीन हड़पने, खनन माफिया, वन अधिकार हनन, और घोटालों को उजागर किया है। खासकर पंचायत स्तर की भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग, योजनाओं की जमीनी हकीकत और पुलिसिया अत्याचार को जनता अब यूट्यूब से जान रही है और यही बात सरकार को असहज कर रही है।
सरकार डिजिटल मीडिया को नियमबद्ध करने की बात कह रही है, पर असल में यह नियंत्रण का प्रयास बनता जा रहा है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने संकेत दिया है कि डिजिटल न्यूज़ पोर्टलों और यूट्यूब चैनलों को रजिस्ट्रेशन में लाना आवश्यक होगा। यह कदम 2021 के आई टी रुल्स के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है। सरकार चाहती है कि यूट्यूब न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित कंटेंट की निगरानी एक फैक्ट चेक यूनिट या नोडल अथॉरिटी करे, जो तय करे कि कौन-सी खबर सही है और कौन-सी नहीं। फैक्ट चेक यूनिट को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी मिली है।

स्व-नियमन की नीति की जरूरत 

यूट्यूब पत्रकारों का एक साझा मंच बनना चाहिए जो नैतिकता और तथ्य की पुष्टि के लिए आचार संहिता बनाए। सरकार से संवाद जरूरी है ताकि वह सबको एक ही लाठी से न हाँके। पत्रकार और अफवाह फैलाने वाले के बीच फर्क जरूरी है। दर्शकों को भी जागरूक करना होगा कि वे असत्य, भड़काऊ और सनसनीखेज यूट्यूब चैनलों को बढ़ावा न दें।
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