(इस आलेख पर साथियों के विचार आमंत्रित हैं। विचार पेसा और पंचायत राज पर ही आधारित हो ताकि हम अपनी समझ बढ़ा सकें तो बेहतर रहेगा।)
पेसा का पूरा ढांचा पंचायती राज प्रणाली पर आधारित है। अगर पंचायतों को हटा दिया जाए, तो पेसा सिर्फ कागज़ पर लिखा एक अधिनियम बनकर रह जाएगा, क्योंकि इसका क्रियान्वयन और प्रभाव ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं के बिना संभव नहीं है।
पेसा अधिनियम और पंचायती राज का गहरा संबंध
1. पेसा का आधार ही पंचायती राज प्रणाली है
• पेसा अधिनियम, 1996 को लागू करने के लिए संविधान के 73वें संशोधन का सहारा लिया गया, जिसने पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया।
• यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को सर्वोच्च शक्ति देता है, जो कि पंचायतों के अंतर्गत आती हैं।
• यदि पंचायत व्यवस्था को हटा दिया जाए, तो पेसा के तहत आदिवासियों को दिए गए न्यायिक, प्रशासनिक और विकास संबंधी अधिकार लागू ही नहीं हो सकते।
2. ग्राम सभाएँ और पंचायतें ही पेसा को ज़मीन पर लागू करती हैं
• ग्राम सभा (Village Assembly): पेसा में ग्राम सभा को मुख्य शक्ति दी गई है, जो पंचायत के अंतर्गत आती है।
• ग्राम सभा की शक्तियाँ:
o भूमि, जल, जंगल से जुड़े मामलों में निर्णय लेना
o आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपराओं को बनाए रखना
o प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करना
o विकास योजनाओं की निगरानी करना
• पंचायतों के बिना ग्राम सभाएँ प्रभावी रूप से काम नहीं कर सकतीं, क्योंकि पंचायतें ही इन फैसलों को प्रशासनिक और कानूनी रूप देती हैं।
3. पंचायतों के बिना पेसा के अधिकार निरर्थक हो जाते हैं
पेसा अधिनियम में अनुसूचित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं को कई अधिकार दिए गए हैं, लेकिन पंचायतों के बिना ये अधिकार सिर्फ कागज़ी बनकर रह जाएंगे। उदाहरण के लिए:
(क) भूमि अधिग्रहण और विस्थापन
• पेसा के तहत ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकता।
• लेकिन अगर पंचायतें नहीं होंगी, तो यह तय करने का कोई प्रशासनिक तरीका नहीं होगा कि ग्राम सभा का निर्णय लागू हो रहा है या नहीं।
(ख) खनन और प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
• पेसा के तहत पंचायतों को खनन, जल संसाधन और जंगलों के उपयोग पर नियंत्रण का अधिकार दिया गया है।
• यदि पंचायतें नहीं होंगी, तो सरकारी एजेंसियाँ बिना ग्राम सभा की अनुमति के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर सकती हैं।
(ग) शराब बिक्री और सामाजिक बुराइयाँ
• पेसा के तहत ग्राम सभाएँ यह तय कर सकती हैं कि उनके क्षेत्र में शराब की बिक्री होगी या नहीं।
• लेकिन अगर पंचायतें नहीं होंगी, तो इन निर्णयों को लागू करवाने वाला कोई कानूनी ढाँचा नहीं रहेगा।
(घ) लघु वनोपज पर अधिकार
• आदिवासियों को लघु वनोपज (Minor Forest Produce - MFP) पर अधिकार देने का प्रावधान है।
• पंचायतों के बिना इन अधिकारों को लागू करवाने की कोई व्यावहारिक व्यवस्था नहीं होगी।
4. प्रशासनिक स्तर पर पंचायतों के बिना पेसा अधूरा रह जाएगा
• पंचायती राज व्यवस्था स्थानीय प्रशासन और न्यायिक संरचना का आधार है।
• यदि पंचायतें नहीं होंगी, तो ग्राम सभाओं के निर्णयों को लागू करने की कोई सरकारी प्रक्रिया नहीं होगी।
• पंचायतों के बिना आदिवासी क्षेत्रों के विकास, बजट आवंटन और प्रशासनिक निर्णयों का कोई लोकतांत्रिक आधार नहीं रहेगा।
5. पंचायती राज के बिना आदिवासी स्वशासन संभव नहीं
• पेसा अधिनियम आदिवासी समुदायों को उनकी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार शासन करने की अनुमति देता है।
• लेकिन यह पूरी संरचना पंचायतों पर निर्भर करती है, जो ग्राम सभाओं को कानूनी और प्रशासनिक समर्थन देती हैं।
• यदि पंचायतों को हटा दिया जाए, तो आदिवासी स्वशासन की पूरी अवधारणा व्यवहारिक रूप से असंभव हो जाएगी।
पंचायती राज व्यवस्था और पेसा अधिनियम एक-दूसरे के पूरक हैं। पंचायतों के बिना पेसा सिर्फ एक अधिनियम बनकर रह जाएगा, जिसका ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
• ग्राम सभाओं को अधिकार तो दिए गए हैं, लेकिन इन्हें लागू करने का काम पंचायतों का है।
• अगर पंचायतें नहीं होंगी, तो ग्राम सभाओं के निर्णयों को लागू करने की कोई प्रशासनिक शक्ति नहीं होगी।
• आदिवासी स्वशासन का पूरा ढाँचा पंचायतों के माध्यम से चलता है।
इसलिए यह कहना उचित होगा कि "पंचायतों के बिना पेसा अधिनियम का कोई अस्तित्व नहीं है।" पंचायत राज प्रणाली ही वह बुनियाद है, जिस पर पेसा अधिनियम टिका हुआ है।