पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (PESA) झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों के लिए बेहद महत्वपूर्ण कानून है। यह संविधान के पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार देता है। पेसा का मूल उद्देश्य आदिवासी परंपराओं, संस्कृति और जीवनशैली को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना और प्रत्यक्ष लोकतंत्र को मजबूत करना है। झारखंड सरकार ने इस कानून को प्रभावी बनाने के लिए पेसा नियमावली तैयार की है, जो ग्राम सभाओं को निर्णय लेने की कानूनी शक्ति प्रदान करती है।
स्वतंत्रता के बाद, आदिवासी समुदायों को स्थानीय शासन में विशेष अधिकार देने की जरूरत महसूस की गई। संविधान निर्माताऑ ने पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान किए। लेकिन, इन क्षेत्रों में पंचायत राज प्रणाली को लागू करने के लिए कोई ठोस कानून नहीं था। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार ने 1996 में पेसा अधिनियम पारित किया, जिससे ग्राम सभाओं को स्वशासन का अधिकार मिला।
झारखंड में पेसा का महत्व
झारखंड में आदिवासियों की आबादी लगभग 26% है। राज्य में संथाल, मुंडा, हो, उरांव, बिरहोर, असुर जैसे कई आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनका जीवन जल, जंगल और जमीन से जुड़ा हुआ है। लेकिन खनन, औद्योगीकरण और भूमि अधिग्रहण के कारण इनकी पारंपरिक भूमि और संसाधनों पर खतरा मंडराने लगा। ऐसे में पेसा अधिनियम झारखंड में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का मजबूत माध्यम बन सकता है।
पेसा के छह मंत्र और उनका झारखंड में प्रभाव
1. परंपरा को कानूनी मान्यता: पेसा अधिनियम के तहत ग्राम सभा को सर्वोच्च निर्णय लेने वाली इकाई माना गया है। झारखंड में आदिवासी समुदायों की पारंपरिक शासन प्रणाली (मानकी- मुंडा, मांझी- परगनैत, डोकलो सोहोर, पहड़ा पंचायत) को कानूनी दर्जा दिया गया है।
2. सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार: जल, जंगल और जमीन का मालिकाना हक ग्राम सभा को सौंपा गया है। झारखंड के सैकड़ों गांवों को वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन संसाधन पट्टे प्राप्त हुए हैं। यह वन संसाधनों पर आदिवासियों के परंपरागत अधिकार को सुनिश्चित करने का कानून है।
3. अपनी जमीन पर अपना विकास: ग्राम सभाओं को यह अधिकार है कि वे विकास के मामले में अपना निर्णय स्वयं लें और सरकारी योजनाओं को स्वीकार या अस्वीकार कर सकें सकती हैं। झारखंड में कई क्षेत्रों में ग्राम सभाओं ने खनन परियोजनाओं और जबरन भूमि अधिग्रहण का विरोध किया।
4. सामाजिक न्याय का अधिकार: परंपरागत ग्राम पंचायतें स्थानीय विवादों को सुलझाने में सक्षम हैं। झारखंड के आदिवासियों में ग्राम सभाओं के माध्यम से पारंपरिक न्याय प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
5. महाजनी प्रथा पर रोक: साहूकारी प्रथा आदिवासियों के शोषण का प्रमुख कारण रही है। पेसा के तहत गैर-कानूनी रूप से चल रहे महाजनी प्रथा के मामलों को ग्राम सभाओं के माध्यम से रोकने का प्रावधान है।
6. बजट और खर्चे पर नियंत्रण: ग्राम सभा को वित्तीय योजनाओं में भागीदारी दी गई है। झारखंड में कई क्षेत्रों में ग्राम सभाएँ सरकार की विकास योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण कर रही हैं।
झारखंड सरकार द्वारा पेसा नियमावली
झारखंड सरकार ने 2022 में ड्राफ्ट पेसा रुल्स बनाया है। इसके तहत—
• ग्राम सभा की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया।
• भूमि अधिग्रहण के मामलों में ग्राम सभा की सहमति को अनिवार्य किया गया।
• खनन और वन संसाधनों के दोहन पर ग्राम सभा का नियंत्रण सुनिश्चित किया गया।
लेकिन, इसका क्रियान्वयन अब भी कमजोर है। प्रशासनिक हस्तक्षेप, राजनीतिक दबाव और जागरूकता की कमी के कारण ग्राम सभाएँ अपनी पूरी शक्ति का उपयोग नहीं कर पा रही हैं।
क्या किया जाना चाहिए?
1. ग्राम सभाओं को और अधिक मजबूत बनाना: झारखंड में ग्राम सभाओं को पूरी शक्ति के साथ कार्य करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। प्रशासन को ग्राम सभाओं के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए।
2. पेसा नियमावली का सख्ती से पालन:सरकार को चाहिए कि पेसा नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करे और खनन व भूमि अधिग्रहण के मामलों में ग्राम सभाओं की अनदेखी पर सख्त कार्रवाई करे।
3. शिक्षा और जागरूकता: आदिवासी समुदायों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाने चाहिए। स्थानीय संगठनों और बुद्धिजीवियों को पेसा को लागू करने में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
निष्कर्ष
झारखंड में पेसा अधिनियम आदिवासी समुदायों के स्वशासन और अधिकारों की रक्षा का सबसे बड़ा हथियार है। यह कानून आदिवासी परंपराओं को संवैधानिक मान्यता देता है और प्रत्यक्ष लोकतंत्र को बढ़ावा देता है। लेकिन, इसका सही क्रियान्वयन तभी संभव है जब ग्राम सभाओं को पूरी शक्ति मिले, सरकार की इच्छाशक्ति मजबूत हो और समुदाय अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो। यदि झारखंड में पेसा को पूरी ताकत से लागू किया गया, तो यह आदिवासी स्वायत्तता और सतत विकास का सबसे प्रभावी मॉडल बन सकता है।