झारखंड की जनजातियों में उच्च शिक्षा में असमानता का जनगणना आधारित विश्लेषण

नेहा प्रसाद



झारखंड के अनुसूचित जनजाति समुदाय के अंतर्गत कुल 32 छोटी और बड़ी जनजातियाँ आती हैं। हालांकि जनजातीय समुदायों को एकीकृत श्रेणी के रूप में देखा जाता है, परंतु उनके भीतर भी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक विविधता है, जो समय के साथ-साथ बढ़ती जा रही है। कुछ जनजातियाँ सापेक्षतः विकसित हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं, नौकरी और राजनीतिक आरक्षण का लाभ अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से मिल रहा है। इसके विपरीत, अनेक जनजातियाँ, विशेषकर छोटी, सुदूरवर्ती या पीवीटीजी समूह, अब भी बुनियादी सुविधाओं, विशेष कर, नौकारी और राजनीति में आरक्षण के लाभ से पूर्णत: वंचित ही है।

हालाँकि आरक्षण का आधार अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी है, लेकिन जनजाति समुदाय के सभी 32 जनजातियों के बीच आरक्षण का लाभ उनकी अपनी जनसंख्या के अनुपात में वितरित नहीं हुआ है। आरक्षित संसाधनों का असमान वितरण भी, जनजातीय समुदायों के भीतर बढ़ती असमानता का एक प्रमुख कारक है। कुछ जनजातियाँ, जो संख्या में अधिक हैं या जिनकी सामाजिक पहुँच और शैक्षणिक योग्यता अधिक मजबूत है, वे आरक्षण और अन्य सरकारी लाभों का अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठा रही हैं, जबकि छोटी जनजातियाँ इस प्रणाली में लगातार वंचित बनी हुई हैं।

बिहार की तरह, झारखंड में जनजाति-वार जनगणना की कोई योजना नहीं है, न ही ऐसा कोई प्रावधान है जो जो यह स्पष्ट रूप से दर्शा सके कि विभिन्न योजनाओं और आरक्षणों का वास्तविक लाभ अनुसूचित जनजाति समुदाय की किन-किन जनजातियों को, और किस अनुपात में प्राप्त हो रहा है। जनजातीय शोध संस्थान, रांची ने वर्ष 2019 में जनजातीय उप-योजना (TSP) का एक मूल्यांकन कराया है, जो सरकारी प्रावधानों तक पहुंच में, जनजातियों के विभिन्न आय-वर्गों के बीच बढ़ती असमानताओं का अनुमोदन करता है। बहरहाल, अनुसूचित जनजाति जनसंख्या पर भारत कीजनगणना की विशेष तालिका सामाजिक असमानताओं को साबित करने के लिए पर्याप्त है जो भविष्य में, अंतर-जनजातीय आर्थिक राजनीतिक असमानताओं को और अधिक गंभीर बना सकती है।

सरकारी नौकरियों में जनजाति-आधारित आरक्षण का लाभ उठाने में उच्च शिक्षा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उच्च शिक्षा न केवल व्यक्तियों को योग्यता-आधारित प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाती है, बल्कि उन्हें, उनके अधिकारों के प्रति जागरूक भी करती है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में अनुसूचित जनजातियों की साक्षरता दर में सुधार हुआ है, परंतु यदि अनुसूचित जनजातियों की कुल शिक्षित जनसंख्या के आंकड़ों पर ध्यान दें, तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की भागीदारी अब भी सीमित है। जिन जनजातीय समुदायों में स्नातक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या अधिक है, उन समुदायों द्वारा सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने की संभावना भी अपेक्षाकृत अधिक है। 

 

 

जनगणना 2011

जनगणना 2001

क्रम संख्या

जनजाति

कुल जनजाति आबादी में भागीदारी (%)

कुल जनजाति साक्षरों में स्नातकों का प्रतिशत (2011)

कुल जनजाति आबादी में भागीदारी (%)

कुल जनजाति साक्षरों में स्नातकों का प्रतिशत (2001)

 

सभी अनुसूचित जनजातियाँ

100

100

100

100

1

संथाल

31.86

16.88

34.01

15.92

2

उराँव, धनगर (उराँव)

19.86

41.71

19.62

42.84

3

मुंडा, पातर

14.22

17.791

14.81

18.76

4

हो

10.74

8.785

10.51

8.87

5

खरवार

2.88

1.271

2.71

0.96

6

लोहरा

2.5

1.316

2.61

1.32

7

भूमिज

2.42

1.024

2.56

1.04

8

खड़िया (धेलकी, दूध, हिल)

2.27

3.96

2.31

4.76

9

महली

1.77

1.047

1.71

0.83

10

माल पहाड़िया, कुमारभग पहाड़िया

1.57

0.146

1.62

0.12

11

बेड़िया

1.16

0.558

1.18

0.37

12

चे़रो

1.11

0.561

1.07

0.39

13

कर्माली

0.74

0.463

0.8

0.41

14

चिक बराइक

0.63

0.863

0.63

0.90

15

गोंड

0.62

0.796

0.74

0.94

16

कोल

0.62

0.102

0.000

0.000

17

सौरिया पहाड़िया

0.53

0.049

0.44

0.036

18

किसान, नागेसिया

0.43

0.162

0.45

0.159

19

कोरवा

0.41

0.026

0.38

0.026

20

कोड़ा, मुंडी-कोड़ा

0.38

0.13

0.33

0.089

21

परहैया

0.3

0.01

0.29

0.005

22

असुर, अगरिया

0.26

0.053

0.15

0.043

23

बिंझिया

0.17

0.05

0.18

0.07

24

बिरहोर

0.12

0.006

0.11

0.002

25

सवर

0.11

0.032

0.08

0.02

26

कंवर

0.09

0.085

0.00

0.00

27

बिरजिया

0.07

0.013

0.08

0.011

28

गोरायत

0.06

0.055

0.06

0.044

29

बैगा

0.04

0.01

0.04

0.002

30

बाथुड़ी

0.04

0.013

0.02

0.005

31

बंजारा

0.01

0.005

0.01

0.002

32

खोंड

0.003

0.001

0.003

0.005

स्रोत: जनगणना की अनुसूचित जनजातियों पर विशेष तालिका

तालिका से यह स्पष्ट है कि उराँव जनजाति में, अपनी जनसंख्या के अनुपात (19 %) से कहीं अधिक स्नातक (42%) है, जो उनके बेहतर संस्थागत पहुँच और जागरूकता को दर्शाता है। मुंडा जनजाति की भी कुल जनसंख्या (14 %) में हिस्सेदारी की तुलना में कुल स्नातकों (18%) की हिस्सेदारी अधिक है। संताल  (32 %) और हो (11 %), जो सबसे बड़ी जनसंख्या वाली जनजातियाँ है, उच्च शिक्षा में कम प्रतिनिधित्व रखती है। उरांव और मुंडा के अलावा, खरिया, गोंड और चिक बड़ाइक की कुल जनजातीय स्नातकों में उनकी जनसंख्या के आकार की तुलना में बड़ी हिस्सेदारी है। इसलिए सरकारी प्रावधानों का लाभ उठाने की उनकी संभावना भी अधिक है। जबकि खरवार, लोहरा, भूमिज की स्थिति कमज़ोर बनी हुई है। अधिकांश पीवीटीजी - जैसे सौरिया पहाड़िया, बिरहोर, परहैया, असुर आदि में, स्नातकों की संख्या नगण्य है, जो उनके अत्यधिक पिछड़ेपन को स्वतः प्रमाणित करता है।

जनगणना 2001 और 2011 के बीच अनुसूचित जनजातियों में स्नातकों की भागीदारी के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण यह दर्शाता है कि बीते एक दशक में, अधिकांश जनजातियों में साक्षरों में स्नातकों का प्रतिशत बढ़ा है, जो एक सकारात्मक संकेत है।  पर यह सभी जनजातियों के लिए समान नहीं रहा। उराँव, कुल अनुसूचित जनजातिय आबादी में 19.86 प्रतिशत  हिस्सेदारी रखते हुए, स्नातकों में 41.71 प्रतिशत भागीदारी के साथ सबसे आगे रहे। मुंडा और खड़िया जैसे समुदायों ने भी अपनी जनसंख्या के अनुपात से बेहतर प्रदर्शन किया। संताल, जो राज्य की सबसे बड़ी जनजाति है (31.86%), उसकी स्नातक भागीदारी मात्र 16.88 प्रतिशत रही। कोल, महली, खरवार, भूमिज जैसी जनजातियाँ भी शिक्षा में अपेक्षित स्थान नहीं बना पाईं। कोरवा, बिरजिया, और किसान-नगेसिया जैसी जनजातियों में भी स्नातकों का अनुपात अत्यधिक कम है। पीवीटीजी की स्थिति की स्थिति लगभग अपरिवर्तित रही। कुल स्नातकों में पीवीटीजी की हिस्सेदारी लगभग शून्य स्तर पर हैं।

अतः स्पष्ट है कि संपूर्ण जनजातीय समुदाय में स्नातकों की संख्या कुछ जनजातियों में बहुत ज्यादा है और छोटी जनजातियों में स्नातकों का अनुपात नगण्य है। परिणामस्वरूप, राजनीतिक आरक्षण, सरकारी नौकरियों, उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश, और विकास योजनाओं में इन छोटी जनजातियों की भागीदारी को स्वतः कम करता है, जो जनजातीय आरक्षण नीति की मूल भावना के विपरीत है।

निष्कर्ष: यह विश्लेषण स्पष्ट करता है कि जनजातीय समुदाय के भीतर भी शिक्षा और अवसरों की पहुँच में गहरी असमानता मौजूद है। यदि नीति निर्माण को वास्तव में समावेशी और न्यायसंगत बनाना है, तो केवल जनसंख्या में हिस्सेदारी के आधार पर नहीं, बल्कि शैक्षिक भागीदारी, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और भौगोलिक पिछड़ेपन जैसे आँकड़ों को भी योजनाओं, संसाधनों और आरक्षण का आधार बनाया जाना चाहिए।
(लेखिका स्वतंत्र विश्लेषणकर्ता हैं)

 
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