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सुधीर पाल 



वनाधिकार: पट्टा नहीं देने के हजार बहाने  
पहला सवाल यही हो सकता है कि स्थल निरीक्षण के दौरान स्थल निरीक्षण की सूचना ग्राम वन अधिकार समिति ने फॉरेस्ट और राजस्व विभाग को दी तीन स्थितियों समानता देखी गई है पहले की फॉरेस्ट और राजस्व के लोग नहीं आते हैं दूसरा की जानकारी मिलने के बाद भी नहीं आने का कोई कारण नहीं बताते हैं तीसरा की आए रहे लेकिन रजिस्टर में साइन नहीं की चौथ की आई और बोले कि हमको हम अधिकृत नहीं है साइन करने के लिए और पांचवा आए और आपत्ति के साथ अब क्षेत्र 12 कहता है कि यदि दो बार सूचना देने के बाद भी फॉरेस्ट का रेवेन्यू के लोग नहीं आते हैं तो स्वता यह मान लिया जाएगा कि उनकी कोई आपत्ति नहीं और ग्राम वन अधिकार समिति की जो दवा प्रक्रिया है वह उसे पर अग्रतार कार्रवाई होनी चाहिए ठीक है इस पर अपनी सिचुएशन यह हो गया दूसरा हमको लग रहा है
दूसरा सिचुएशन हम इस ढंग से ले सकते हैं कि वन अधिकार कानून 2006 में पारित हुआ और 2008 से यह कानून लागू तो सुप्रीम कोर्ट के नियम गिरी जजमेंट के कॉन्टेक्स्ट में अगर देखे तो मान लीजिए 2008 के बाद गांव में ग्राम बना अधिकार समिति बन गई है या नहीं भी बनी ग्राम वन अधिकार समिति ने क्लेम प्रक्रिया शुरू किया है या हो सकता है नहीं भी शुरू किया हो उसके बावजूद इस कानून के लागू होने के बाद फॉरेस्ट डिपार्मेंट अगर प्लांटेशन या जिसको डायवर्सन या इस ढंग की अन्य कोई गतिविधि चाहे वह कैंपस से हो चाहे किसी को जमीन डाइवर्ट करना हो यह कानून सम्मत है कि ग्राम वन अधिकार समिति और ग्राम सभा के साथ कंसल्टेशन उनका होना चाहिए तभी आगे बढ़ना चाहिए इस पर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की क्या राय है यह आना चाहिए यह परेशानी अभी हर गांव में हो रही है कि फॉरेस्ट डिपार्मेंट जो है ग्राम वन अधिकार समिति या ग्राम सभा से पूछे बगैर प्लांटेशन का काम करता है और ग्राम सभा अगर आपत्ति करती है तो उसे पर जो है कैसे भी करता है और उसको परेशान भी करता है जबकि कानून की स्थिति यह है कि 2008 में यह कानून लागू हो गया 2008 से कानून लागू है तो इसका मतलब यह हुआ कि ग्राम सभा प्रक्रिया करें या ना करें आपको ग्राम सभा के साथ कंसल्टेशन करने की बाध्यता दूसरा सिचुएशन यह हो सकता है यह यहां से यहां तक प्रोटेक्ट है उसको क्या ग्राम सभा से लागू है ना तो अगर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ज्वेलर्स है वह अगर है तो फॉरेस्ट डॉलर्स है और ग्राम सभा में ग्राम बना अधिकार समिति बना ली तब भी ग्राम सभा के साथ आपको कंसल्टेशन करना होगी नहीं है जो कम्युनिटी था उसने फ्री के तहत कोई क्लेम नहीं किया लेकिन उसके बावजूद उसके सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में उसके अधिकार को रिकॉग्नाइज किया और दूसरा यह है कि भाई ग्राम सभा के साथ बात करने में आपको क्या दिक्कत है कैंपर भी तो कहता है ग्राम सभा के साथ कंसलटेंट यह हो सकता है कि इसमें यह क्या करें कि यह कनफ्लिक्ट जो है कम्युनिटीज वर्सेस फॉरेस्ट है
तीसरा सिचुएशन तीसरा सिचुएशन इसलिए मेंशन करना जरूरी है क्योंकि अभी एक जिले के डीएफओ ने डू को चिट्ठी लिखी और कहा कि जो क्लेम की प्रक्रिया ग्राम बना अधिकार समिति द्वारा की गई है वह अभियान की तिथि के बाद की गई और ग्राम सभा का गठन जो है अभियान के बाद किया गया इसलिए हम इस प्रक्रिया को विधि सम्मत नहीं मानते ठीक है यह है तो अब इसमें एक्चुअल स्थिति यह है कि ग्राम सभा को हमेशा अधिकार है कि जब उसकी उचित प्रतीत हो वह ग्राम वन अधिकार समिति का गठन पुनर्गठन कर सकती है और इसके लिए ना तो कल्याण विभाग के अभियान के सर्कुलर की जरूरत है और ना ही किसी डीसी की चिट्ठी की जरूरत है यह विशेष अधिकार ग्राम सभा का है कि वह कब बैठक करेगी और कि बैठक में वह ग्राम बना अधिकार समिति का गवर्नर यह गठन या पुनर्गठन करेगी केवल यह देखना विधि सम्मत होगा की गठन या पुनर्गठन जो हुआ है वह हमारे 2006 के अनुसार हुआ है कि नहीं और उसके कोम को पूरा किया गया है कि नहीं यह देखना जरूरी ठीक है तो ऐसी हालत में वन विभाग द्वारा यह कहना कि अभियान के बाद यह गठित हुआ है इसलिए हम इसको विधि संवत नहीं मानते हैं यह उचित नहीं कर लीजिए
एक सिचुएशन इस कानून में बुजुर्गों के कथन की बात की कही गई है बुजुर्गों के शपथ की बात की गई लोन में यह अनुभव हुआ है कि बुजुर्गों का मतलब वह मानते हैं कि 13 दिसंबर 2005 को उसकी उम्र कम से कम 60 साल होनी चाहिए और उसे आधार पर यह एक धारणा बना ली गई है कि बुजुर्ग का मतलब कि आज की तारीख में 80 साल का घर है तभी जो है उसको बुजुर्ग जो है माना जा रहा है जबकि वस्तु स्थिति यह है कि इस कानून में 13 दिसंबर 2005 एक कट ऑफ डेट है कि उसे तारीख के पहले से जो वन आश्रित समुदाय हैं वहीं इस कानून के दायरे में आते इसका कतई मतलब यह नहीं है कि बुजुर्ग अगर 2024 में 60 साल का हुआ 2024 में कोई क्लेम फाइल हो रहा है तो उसमें इस आधार पर आपत्ति की जाए कि आज उसकी उम्र जो है 80 साल नहीं हुई ठीक है
पांचवा जो सवाल हो सकता है वह सवाल यह है पांचवा सवाल यह हो सकता है की समानता है यह देखा जा रहा है की ग्राम सभा में सीएफआर या आईएफआर में किसी दवा प्रक्रिया को एसडीएलसी को रिकमेंड किया और उसे रिकमेंडेशन के साथ उसने रखवा और नेचर दोनों की बात उसने दस्तावेज में लिखा संचिका में लिखा सामान्य अनुभव यह रहा है कि एसडीएलसी से जब डीएलसी या एसडीएलसी में भी फॉरेस्ट के जो लोग रहते हैं वह आपत्ति करते हैं कि यह 201 20 एकड़ सीएफआर नहीं होगा यह दो एकड़ होगा य या तीन एकड़ आईएफआर नहीं होगा बल्कि यह 50 डिसमिल होता जबकि कानून यह स्पष्ट कहता है कि नेचर और एक्सेंट खाने का मतलब की कि प्रकृति का दवा और कितने एरिया पड़ता है यह तय करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ ग्राम सभा को है उसे अधिकार पर आपत्ति हो सकती लेकिन रखवा की कटौती यह नहीं हो सकता है ठीक है सकती है लेकिन यदि पर्याप्त साक्षी हो जो इस बात को एस्टेब्लिश करता हो कि ग्राम सभा ने जो प्रस्ताव दिया है वह प्रस्ताव सही नहीं है तो एसडीएलसी में डीएलसी में फॉरेस्ट जो है आपत्ति कर सकता है और उसे आपत्ति के साथ संबंधित साक्ष उपलब्ध कारण अब डीएलसी और एसडीएलसी का काम है कि वह पुनः ग्राम सभा को भेजें आपत्ति के साथ और बोले कि इस आपत्ति के आलोक में अपना साक्ष्यप प्रस्तुत कीजिए उसके बाद ही कोई निर्णय होगा ब्लंटली की डीएलसी में लेकर काट के पत्ता बना दिए यह निर्णय नहीं
दिमाग में आते जा रहा है तो जल्दी से कर लिया जाए नेक्स्ट सिचुएशन हमको लग रहा है कि सामान्यत प्रेक्टिस यह है खासकर एसडीएलसी का की कोई संचिका गई और एसडीएलसी उसको जो है बिना किसी नोटिंग के वापस करते बिना किसी कारण के वापस कर दिया तो एक तो यह जरूरी है कि उसे पर कारण लिखना की किस कारण से आप वापस कर रहे हैं क्या किसी का सिग्नेचर छूटा हुआ है क्या साक्षी छूटा हुआ है क्या एप्रुपरिएट दस्तावेज में लगा हुआ है ठीक है नक्शा नहीं लगा हुआ क्या नहीं लगा हुआ है क्योंकि ज्यादातर जो संचित वापस आई है जैसे तांता में ही 50 आईएफआर हम लोग देख रहे थे कि कुछ ने को बुलाया और ग्रामीण ग्राम प्रधान को बोला कि यह लेते जाइए यह सब वापस हुआ बिना किसी तो अब इस कानून में दिखेगा की एसडीएलसी का काम क्या है कि एसडीएलसी का काम जो है वह यह देखना है कि जो साक्षी दस्तावेज का वेरिफिकेशन एसडीएलसी का बेसिकली काम जो है दस्तावेजों का वेरिफिकेशन की इस कानून के तहत जो विधि संबद्ध दस्तावेज मन मांग हुआ है कि नहीं अगर वह सेंट है तो उसका सर्टिफिकेट है कि नहीं उसका हस्ताक्षर है कि नहीं अगर सामुदायिक है तो दावेदारों की सूची है कि नहीं नक्शा है कि नहीं रखवा कितना है कि नेचर का है किन-किन चीजों के लिए दावेदारी की गई है किन-किन अधिकारों के लिए दावेदारी की गई है यानी एसडीएलसी का काम जो है रखवा कटौती या निर्णय लेना नहीं है एसडीएलसी का काम है कि वह यह देखें की सांची का विधि संबंध ढंग से तैयार की गई है कि नहीं उसमें कोई कमी है कि नहीं है ठीक है ना एक काम उनका यह ठीक है दूसरा एक और प्रश्न जो बन सकता है कि जो काम एसडीएलसी नहीं कर रही दूसरा काम जो एसडीएलसी कहा ज्यादा महत्वपूर्ण है ग्राम वन अधिकार समितियां को सहयोग दें अब यह सहयोग किस तरह से वोटर लिस्ट को उपलब्ध कराना नक्शा को उपलब्ध कराना आवश्यक साक्ष उपलब्ध कराना ट्रेनिंग देना फॉर्म उपलब्ध कराना यह एसडीएलसी का काम तो एसडीएलसी यह काम कर रही है कि नहीं कर रही है यह देखना और उससे पहले वाले सिचुएशन में हमको लगता है कि यह बात किया जाए या उसको अलग से बनाया जाए एसडीएलसी और डीएलसी के निर्णय लेने की प्रक्रिया कैसे कानून में या रूल्स में इस बात को स्पष्ट नहीं किया गया है कि एसडीएलसी या डीएलसी कैसे निर्णय लेगी सामान्य प्रेक्टिस यह है कि एसडीएलसी की मीटिंग में अनुमंडल अधिकारी और फॉरेस्ट के और डीएलसी में उपायुक्त और डीएफओ जो कह देते हैं सामान्यतः वही निर्णय होता है लेकिन यह एक विधि पूर्वक गठित की गई एसडीएलसी और डीएलसी की कमेटी डीएलसी कमेटी है जिसमें अधिकारियों के साथ-साथ पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधि भी होते हैं और तीन एसडीएलसी में तीन डीएलसी में तो क्या निर्णय लेने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक है कैसे निर्णय लेते हैं क्या सबसे पूछते हैं बहुमत होता है या डीसी साहब डीएफओ साहब जो बोल दिए वहीं सहमति होती है और सब लोग साइन कर देते हैं या चर्चा भी होती है तो यह चर्चा करना और निर्णय लेने की प्रक्रिया क्या है यह हमको लगता है कि सवाल होना चाहिए कि जब संचिका आपके पास आता है तो आप निर्णय लेने के लिए कैसे चर्चा करते हैं और गैस सरकारी सदस्यों के मंतव्य को डॉक्यूमेंट करते हैं कि मान लीजिए पंचायत प्रतिनिधि कोई ऑब्जेक्ट किया कुछ बोला वह कहीं डॉक्यूमेंट होता है क्या कि केवल निर्णय डॉक्यूमेंट होता है तो प्रोसीडिंग्स पूरा लिखा जाना चाहिए उसे प्रोसीडिंग्स में अगर किसी को आपत्ति है तो वह भी होना चाहिए और अंततः बहुमत से फैसला होना चाहिए तो यह बहुमत से फैसला होता है क्या की डीसी जो बोल दिया वही होगी यह हमको लगता है कि अच्छा है नेक्स्ट जो एक ले सकते हैं जो खासकर ओटीएफटी के केस को लेकर यह प्रावधान है कि तीन पीढ़ी 75 साल का प्रमाण होना चाहिए अब इसमें दो जगह पर लोगों की आपत्ति होती है पहले यह कहा जाता है कि 75 साल जिस जंगल पर वह अधिकार मांग रहे हैं वहां होना चाहिए वहां रहना चाहिए कि उसको प्रमाण होना चाहिए तो यह कानून कहता है कि 75 साल फॉरेस्ट पर उसकी डिपेंडेंसी होगी मेंस की फॉरेस्ट पर वह आश्रित है फॉरेस्ट में 75 साल किसी एक फॉरेस्ट में या उसकी जमीन पर रहना यह जरूरी नहीं है हो सकता है कि वह सिमडेगा के एक गांव में 25 साल रहा हवाई गांव में फिर 25 साल रहा जादगांव में फिर 25 साल रहा लेकिन फॉरेस्ट जो रहा वह तीनों गांव में जब-जब हुआ रहा फॉरेस्ट को एक्सेस करता रहा इस फॉरेस्ट को जहां से वह जिस पर वह आज क्लेम किया है लेकिन वह गांव उसका बदल गय 75 साल का उसको प्रमाण क्या वह दे सकता है तो मान लीजिए भूमिहीन है तो उसके लिए खतियान भी देना मुश्किल है अगर भूमिहीन नहीं है तब तो खतियान दे सकता है या बहुत पुराना वोटर लिस्ट है तो वह दे सकता है या दूसरा कोई साक्षी जो है दे सकता है लेकिन जिला गजेटियर एक ऐसा यह है जैसे मैडम लोग पलामू के लिए किए हैं जिला गजेटियर में बजना यह लिखा हुआ है कि कौन-कौन सा समुदाय कब से जंगल पर किस कारण से खासकर कारीगर जातियों के मामले में मैली हो गया पूरी हो गया या एवं गडेरी जो घर चलाने वाले लोग हैं उनका यह बजना गजेटिया में डाक्यूमेंट्री तो इससे यह तो इस्टैबलिश्ड हो गया कि जिस समुदाय का वह परिवार है वह समुदाय फॉरेस्ट पर डिपेंडेंट अब चाहिए कि यह 75 साल से है तो 75 साल से है कि नहीं है यह एविडेंस के लिए गैजेट आर हो गया 13 दिसंबर 2005 से पहले वह है कि नहीं है वह ग्राम सभा होगी तो इसमें मेरा सवाल जो उन लोगों से होना चाहिए की 75 साल का जो मांगा जा रहा है तो यह 75 साल के साक्षी को कानून तो बहुत सारा साक्ष्यप बताती है लेकिन क्या गजेटियर में जिन समुदाय के बारे में चर्चा है 1912 के ग्रेजुएट में मान लीजिए किस समुदाय की चर्चा है तो क्या वह इस कानून के तहत हक पाने का अधिकृत तो है इसको डिजाइन करना चाहिए क्योंकि चक्कर क्या हो रहा है ना की ओटीएफडी नहीं होने का कारण है कि वह मांगता है वह 75 साल तो 75 साल जिसके पास जमीन नहीं हो कहां से देगा तो गजातीय तो आपको बता रहा है कि भाई पूरी समुदाय है जो नेत्र 8 के पाठ में कितने सालों से बस का काम कर रहा हूं 1912 में बता रहा है और आज भी देख रहे हैं वहां काम कर रहा है तो इसका मतलब यह इस्टैबलिश्ड हो रहा है ठीक है अब ग्राम सभा बता रही है 13 दिसंबर 2005 के पहले यह था और दूसरे दस्तावेज या दूसरे जो स्ट्रक्चर है वह बता रहे हैं कि हां कितने सालों से यह हो सकता है इसमें हमको लगता है की बात करनी चाहिए कि अदर देन खतियान क्या होगा तो यह एक सवाल ओटीएफडी वाला इसको इस तरीके से लिखना होगा कि अगर गैजेट ईयर में किसी समुदाय के बारे में चर्चा है 1912 के लिए यह समुदाय जंगल पर आश्रित और इस जिला गजेटियर की इस जिले में आज भी वह समुदाय जंगल पर आश्रित दिख रहा और वह ओटीएफडी है तो 13 दिसंबर 2005 से पहले भी वह है तो क्या यह पर्याप्त साक्ष्य नहीं होगा कानून तो कहता पर्याप्त कैसे आप हम लोग अगर सो को चिन्हित करके सुविधा से डिजाइन कर सकते हो यह बेसिकली पेस्टोरल राइट्स को लेंगे ठीक है ना तो पेस्टोरल राइट्स में उसको तो जमीन पर अधिकार नहीं चाहिए जंगल में 5 दिन रहा किसी में सा दिन रहा यह है तो इस कानून के तहत सीजनल माइग्रेटरी और ट्रांस ह्यूमन और पेस्टोरल उसके अधिकार की बात की गई तो अब इस अधिकार को रिकॉग्नाइज करने की प्रक्रिया क्या होगी क्योंकि यह इसमें चक्कर क्या है कि यह इंटर एसडीएलसी भी होगा और इंटरेस्टेड भी होगा मान लीजिए पलामू से गढ़वा गया इंटरेस्टेड हो गया तो क्या राज्य में पेस्टोरल राइट्स को रिकॉग्नाइज करने का मेकैनिज्म हो सकता है केंद्रीय मंत्री के पास एक घुमंतू हमारे यहां का तो इसमें अब दो मुद्दा है कि इसका क्लेम कहां करेगाL
कि इस कानून के अंतर्गत यह संभव है की एक गांव में जो ग्राम सभा के लोग हैं वह दूसरे गांव में भी कि वह दूसरा पंचायत भी हो सकता है या मैं भी कि वह सटा हुआ ब्लॉक का भी कोई गांव हो सकता है वहां की जंगल पर सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी जंगल का उपभोग कर रहे तो ऐसी हालत में इनका क्लेम का प्रक्रिया उसे ग्राम सभा में होगा जहां वह से है लेकिन उनका जंगल पर अगर 13 दिसंबर 2005 के पहले और यह साक्ष उपलब्ध हो कि यह लंबे समय से यहां का रिसोर्स ले रहे हैं तो दूसरे गांव दूसरा पंचायत या दूसरा ब्लॉक होने के बाद भी उनका अधिकार को रिकॉग्नाइज किया जाना है यह किया जा सकता है कि नहीं यह सवाल आप डाल दीजिएगा सिचुएशन यह हो जाएगा एक आपका यह हो गया अच्छा नेक्स्ट और के सवाल हो सकता है जी कर मुंडा है ना सुनने के बाद कुल्हड़ में दुपट्टा मिलता है ना तो प्रक्रिया नहीं हुआ अपॉइंटमेंट का प्रक्रिया होती है और एसडीओ जो है एसडीओ उपस्थित होता है मीटिंग में ग्राम सभा की मीटिंग में उसके चयन प्रक्रिया और उसके बाद उसको जो है पत्ता मिलता है तुमको जो है मजा आता मिलना है यह क्या प्रक्रिया है एक और सवाल डालिए सर इस बहाने यह आ जाएगा इस कानून के तहत 1 ग्रामों को जिन गांवों को सामुदायिक वन पट्टा मिल गया है और जिन गांवों में ग्राम सभा जो है संसाधनों के प्रसंस्करण या उसके कलेक्शन उसके विपणन में लगी है और बाजार ले जाने के लिए परमिट निर्गत कर रही है तो उन गांव में कानून के हिसाब से इस कानून के हिसाब से परमिट निर्गत करने का अधिकार ग्राम सभा को तो वन विभाग इसमें आपत्ति करता है क्या उसकी जानकारी में होना चाहिए कि अब तुम आपत्ति नहीं करोगे एक और कीजिए कि गांव वालों की शिकायत है की कई पीढियां से वह जंगल में रह रहे हैं खेती-बाड़ी कई परिवार कर रहे हैं बन के लघु उपज का उपभोग भी कर रहे हैं लेकिन फॉरेस्ट डिपार्मेंट उनके घर छोड़ देना तोड़ देता है और उनको जो है परेशान करता है जबकि उन गांव में वन अधिकार 2006 की प्रक्रिया पूरी नहीं है की गई तो क्या यह विधि सम्मत है इसमें दिया हुआ ना कि जब तक वन अधिकार की प्रक्रिया नहीं पूरी हो जाती है मान्यता देने या नहीं देने दोनों जब तक नहीं हो जाता आप उसको जो है नहीं हटा सकते हैं इसको सिचुएशन यह दीजिए कोई एक गांव का नाम डालते हुए कि वहां के ग्रामीणों ने शिकायत की है कि वह हमारा घर जो है तोड़ दिया गया यह कहते हुए तोड़ दिया गया है कि जंगल की जमीन पर आप जो है इतने सालों से खेती कर रहे हैं ऐसे 50 घर को तोड़ देंगे क्या यह विधि सम्मत है जबकि वहां ग्राम वन अधिकार समिति का भी गठन हुआ हुआ है जानकारी आप किसी गांव का नाम देते हुए एक गांव की ग्राम सभा की आपत्ति है की एसडीएलसी ने उनके दावों को सत्यापित कर दिया है लेकिन अगरतर कार्यालय कार्रवाई के लिए डीएलसी को नहीं भेजा गया है क्योंकि यह कहा जा रहा है कि 60 दिन में लिखा है कि इसको जो है 60 दोनों का पुलिया अधिकार है तो इस प्रक्रिया को आगरा तक कार्रवाई के लिए भेजा जाएगा क्या यह विधि सम्मत है अगर है तो कैसे हो गया डीएलसी में नहीं भेज रहा है या डीएलसी में निर्णय हो गया पता नहीं दे रहा सा दिन इंतजार करेंगे तो भाई यह विधि सम्मत है तो कैसे करेगा पड़ोसी गांव को बुलाना राजस्व को बुलाना फर्श को बुलाना इसका मतलब कि उसे जंगल पर जितने लोगों की दावेदारी हो सकती है वह सारे लोगों के कंसेंट से या प्रक्रिया कर रहे हैं व्यक्तिगत जमीन में क्या है जमीन लिया तो यह पता नहीं है कि पड़ोसी का ही जमीन है कि नहीं है तब आप एक महीना का नोटिस करते हैं यहां तो यह पूरी प्रक्रिया हम तो ही बनते ही नहीं है की अपील लेट का मतलब यह है कि 7 दिन आप इंतजार कीजिएगा इसलिए नहीं मानते हैं कि पहले ग्राम सभा का आपका कोरमा कितना है 50% दूसरा इसका मतलब की 50% से ज्यादा लोग उसे ग्राम सभा की बैठक में थे दूसरा फॉरेस्ट की जमीन पर जिनका जिनका अधिकार हो सकता है पड़ोसी गांव का हो सकता है तो पड़ोसी गांव से आप दावेदारों की सूची बना रहे हैं इसका मतलब व्यक्तिगत वाले में भी आप गांव के सारे लोगों से बात कर रहे हैं ग्राम सभा में तीसरा फॉरेस्ट से आप बात कर रहे हैं उसका कंसेंट के लिए रेवेन्यू से कंसेंट इतना करने के बाद आप भीम की ठीक है तो 60 दिन एपिला का जो अथॉरिटी है उसके लिए आपको इंतजार नहीं करना हम इसको इस नतीजे में देखते हैं कि जैसे मान लीजिए कोर्ट की जो प्रक्रिया आज आपको सजा आज सजा हुई तो वह सजा उसे दिन से लागू हो गई ना अगर वह सजा किसी अपार अथॉरिटी ने पाया कि गलत है तो फिर वह टर्न ऑन करेगा ठीक है तो लेकिन इस आधार पर सजा आपको नहीं दी जाएगी की इंतजार कीजिए की अपील का एक महीना टाइम है तो जिस दिन सुनाया उसे दिन से आप हाई कोर्ट क्या है उसे दिन आप ऐसा तो नहीं की अपील के पीरियड में आपको यह किया जाए दूसरा की क्यों इंतजार करना चाहिए अपील में जाएगा खारिज होगा तो लेकिन इस आधार पर आप पटना नहीं दीजिएगा इंतजार करेंगे क्योंकि 7 दिन के बाद भी तो लोग अप्लाई कर सकता है ऐसा थोड़ी है कि कानून 7 दिन लिख दिया तो यह बोलिए की कोई एक सज्जन आपको टाइटल मिल गया आपके गांव को कोई एक सज्जन या व्यक्तिगत पत्ता आपको मिल गया कोई ऑक्सीजन 90 दिन अप्लाई करता है कि यह गलत तो आप इस आधार पर उसको नहीं कर सकते कि टाइम लेफ्ट हो गया इसलिए नहीं कर सकते हैं कि आपने उसको पब्लिश किया था कि आपने जरूर किस वन पर ठीक है मिलता है सीएफआर में क्या अधिकार मिलता है सीएफआर में क्या अधिकार मिलता है। 
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