जेपीआरए 2001 बनाम पेसा 1996 का मसला - जेपीआरए, 2001 नहीं चलेगा तो क्या चलेगा?



सुधीर पाल  

झारखंड में जेपीआरए, 2001 नहीं चलेगा तो क्या चलेगा? देश में झारखंड समेत दस राज्य पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य हैं और सभी नौ राज्यों में पेसा 1996 कानून की नियमावली को राज्य पंचायत राज्य ऐक्ट में समाहित किया गया है। तो झारखंड में यह कानून यदि पंचायत राज ऐक्ट में समाहित नहीं होगा तो कहाँ होगा ? पेसा ऐक्ट स्वतः तो लागू होगा नहीं। केंद्र में तथा राज्यों में पेसा कानून का नोडल विभाग पंचायत राज विभाग है और हर राज्य में इसे इसी विभाग ने लागू किया है। संसद ने 1996 में कानून तो बना दिया लेकिन रुल्स नहीं बनाया। वनाधिकार कानून 2006 की खासियत रही कि कानून के साथ-साथ 2008 और 2012 में रुल्स भी बनाया लेकिन पेसा के मामले में यह काम केंद्र नहीं कर सकती थी इसलिए यह राज्यों के जिम्मे आ गया।  झारखंड में पेसा 1996 नियमावली को लागू करने के लिए मसौदा तैयार है और उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार कभी भी इस नियमावली को लागू कर सकती है। कई लोगों की मान्यता है कि झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत इस कानून का नियामवली लागू नहीं हो सकता है। पेसा केन्द्रीय कानून है और 1996 में इसे लागू करते समय व्यवस्था बताई गयी थी कि यदि एक साल के भीतर इसे राज्यों ने नहीं लागू किया तो यह स्वतः लागू माना जाएगा। यह एक रूमानी ख्याल था। ज्यातर राज्यों में दो-ढाई दशक बाद ही पेसा लागू हुए, वो भी राज्य के विभिन्न कानूनों में संशोधन के बाद। 
क्या वाकई झारखंड में पंचायत राज अधिनियम में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा के तहत के प्रावधानीऑन की अनदेखी हुई है? क्या प्रस्तावित झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियमावली 2022 के प्रावधान पेसा 1996 से असंगत हैं? या पेसा के बहाने आदिवासियों को सरना-ईसाई के नाम पर लड़ाने का खेल खेला जा रहा है? आखिर पेसा लागू होने से किसका अहित होगा?
दो किश्तों के इस आलेख के पहले किश्त में पेसा 1996 के प्रावधानों के आलोक में झारखंड पंचायत राज अधिनियम की अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन की स्थिति की समीक्षा की जाएगी। यहाँ आपको पेसा 1996 की धारा चार के सभी प्रावधनों को समझने की कोशिश की गयी है। पढ़ कर राय देंगे तो अच्छा लगेगा। प्रतिक्रिया अपेक्षित है।      
1.    पेसा 1996-4(बी) ग्राम साधारणतया आवास या आवासों के समूह से मिलकर बनेगा जिसमें समुदाय समाविष्ट हो और जो परंपराओं तथा रूढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलापों का प्रबंध करता हो;  
झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के अध्याय एक की धारा 2 (iii) में ग्राम का तात्पर्य है, कोई ऐसा ग्राम जिसे राज्य सरकार द्वारा सरकारी बजट में अधिसूचना के द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है। जिसके अंतर्गत इस प्रकार विनिर्दिष्ट किए गए ग्राम या ग्रामों/ टोलों का समूह शब्द ग्राम में सम्मिलित है। परंतु अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम का तात्पर्य है अनुसूचित क्षेत्र में कोई ऐसा ग्राम जिसमें साधारायणतया आवास या आवासों का समूह अथवा टोला या टोलों का समूह होगा, जिसमें समुदाय समाविष्ट हो जो परंपराओं और रूढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलापों का प्रबंध करता है। 
अधिनियम के अध्याय 2 की धारा 3 (iii ) में कहा गया है कि अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा साधारायणतया ग्राम के लिए एक ग्राम सभा होगी परंतु अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा के सदस्य यदि ऐसा चाहे तो किसी ग्राम में एक से अधिक ग्राम सभा का गठन ऐसी रीति में किया जा सकेगा,जैसा कि विहित किया जाए और ऐसी प्रत्येक ग्राम सभा के क्षेत्र में आवास या आवासों का समूह अथवा छोटे गांव या गांवों/ टोलों का समूह होगा जिसमें समुदाय समाविष्ट हो और जो परंपरा एवं रूढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलाप का प्रबंध करेगा। 
अधिनियम की धारा 8 में पीठासीन पदाधिकारी की बात की गई है। धारा 8 (iii ) में अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता का प्रावधान किया गया है। अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता, ग्राम सभा के अनुसूचित जनजातियों को किसी ऐसे सदस्य द्वारा की जाएगी, जो पंचायत का मुखिया, उप- मुखिया या कोई सदस्य नहीं हो और उस क्षेत्र में परंपरा से प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार मान्यता प्राप्त व्यक्ति हो जो ग्राम प्रधान यथा मांझी, मुंडा, पाहन, महतो या किसी अन्य नाम से जाना जाता हो, के द्वारा अथवा उनके द्वारा प्रस्तावित अथवा बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से मनोनीत या समर्थित व्यक्ति द्वारा की जाएगी।  
परंतु यह भी कि जिस ग्राम सभा क्षेत्र में परंपरा से प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार मान्यता प्राप्त व्यक्ति,जो ग्राम प्रधान यथा मांझी, मुंडा, पाहन, महतो या किसी अन्य नाम से जाना जाता हो, गैर अनुसूचित जनजाति के सदस्य हों, तो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता उनके द्वारा अथवा यदि उक्त क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति के अन्य सदस्य हों तो ग्राम प्रधान द्वारा प्रस्तावित अथवा बैठक में उपस्थित सदस्यों की बहुमत से मनोनीत या समर्थित ऐसे व्यक्ति और यदि अनुसूचित जनजाति के सदस्य ना हो तो ऐसे प्रस्तावित अथवा मनोनीत अथवा समर्थित गैर अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के द्वारा की जाएगी। 
अधिनियम की धारा 9 के अनुसार किसी व्यक्ति के ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित होने के हक के संबंध में विवाद की स्थिति में बैठक की अध्यक्षता करने वाला व्यक्ति, उस ग्राम सभा क्षेत्र की मतदाता सूची में प्रविष्टि के आलोक में, विवाद का अभिनिश्चय करेगा और उसका ऐसा अभिनिश्चित अंतिम होगा। 
2.    पेसा 1996-4(सी) प्रत्येक ग्राम की एक ग्राम सभा होगी जो ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनेगी जिनके नामों को ग्राम स्तर पर पंचायत के लिए निर्वाचक नियमावलियों में सम्मलित किया गया है; 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 के अध्याय 2 की धारा 3 (ii) में कहा गया है कि ग्राम सभा का तात्पर्य है, ग्राम पंचयत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी राजस्व गाँव से संबंधित मतदाता सूची में पंजीकृत व्यक्तियों से मिलकर बनने वाली कोई निकाय; 
3.    पेसा 1996-4(डी) प्रत्येक ग्राम सभा, लोगों की परंपराओं और रूढ़ियों, उनकी सांस्कृतिक पहचान, समुदाय के संसाधनों और विवाद निबटाने के रुढ़िजन्य ढंग का संरक्षण और परिरक्षण के लिए सक्षम होगी;  
अधिनियम की धारा 10 (5) में अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की अतिरिक्त शक्तियां एवं कृत्य की चर्चा है।  धारा 10 (5)(i) व्यक्तियों के परंपराओं तथा रूढ़ियों, उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक संसाधनों सरना, मसना,जाहेरथान आदि को और विवादों के निराकरण के उनके रूढ़िगत तरीकों को जो संवैधानिक दृष्टि से असंगत ना हो सुरक्षित एवं संरक्षित करेगी एवं आवश्यकतानुसार इस दिशा में सहयोग के लिए ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद तथा राज्य सरकार के समक्ष प्रस्ताव विहित रीति से ला सकेगी;
धारा 10 (5)(ii) ग्राम क्षेत्र के भीतर के प्राकृतिक स्रोतों को जिनके अंतर्गत भूमि, जल तथा वन आते हैं,  उसकी परंपरा के अनुसार परंतु संविधान के उपबंधों के अनुरूप तथा तत्समय प्रवृत्त अन्य सुसंगत विधियों की भावना का सम्यक ध्यान रखते हुए प्रबंध कर सकेगी;
4. पेसा 1996-4(ई) प्रत्येक ग्राम सभा :
(I) सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं का इसके पूर्व की ग्राम स्तर पंचायत द्वारा ऐसी योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं को क्रियान्वयन के लिए हाथ में लिया जाए, अनुमोदन करेगी ;    
(ii) गरीबी उन्मूलन और अन्य कार्यक्रमों के अधीन हिताधिकारियों के रूप में व् व्यक्तियों की पहचान या उनके चयन के लिए उत्तरदायी होगी ;   
अधिनियम की धारा 10 में ग्राम सभा की शक्तियां और कृत्य की चर्चा की गई है। धारा 10 (1)(i) के में कहा गया है कि ग्राम के आर्थिक विकास के लिए योजनाओं की पहचान करना तथा उनकी प्राथमिकता निर्धारित करने के लिए सिद्धांतों का निरूपण करना;
धारा 10 (1)(ii) सामाजिक तथा आर्थिक विकास के लिए ऐसी योजना जिसमें ग्राम पंचायत स्तर के सभी वार्षिक योजनाएं सम्मिलित हैं, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं का क्रियान्वयन से पूर्व अनुमोदित करना;
धारा 10 (1)(iii)  ग्राम पंचायत के वार्षिक बजट पर विचार विमर्श पर उसे पर सिफारिश करना 
धारा 10 (1)(vi) गरीबी उन्मूलन तथा अन्य कार्यक्रमों के अधीन लाभुकों के रूप में व्यक्तियों की पहचान करना तथा चयन करना 
धारा 10 (1)(vii) लाभुकों को निधियों या परिसंपत्तियों के समुचित उपयोग तथा वितरण को सुनिश्चित करना;
 5.    पेसा 1996-4(एफ़): ग्राम स्तर पर प्रत्येक पंचायत से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह ग्राम सभा से, 4(ई) में निर्दिष्ट योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं के लिए उस पंचायत द्वारा निधियों के उपयोग का प्रमाणन अभिप्राप्त करे ;
झारखंड पंचायत राज अधिनियम की धारा 10 (1)(iv) में ग्राम सभा को अधिकार है कि वह ग्राम पंचायत के अंकेक्षण रिपोर्ट तथा वार्षिक लेखाओं पर विचार करे ;
धारा 10 (1)(v) ग्राम पंचायत के द्वारा धारा 10(1) (क) का (ii) में विनिर्दिष्ट योजनाओं, कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं के लिए निधियों के समुचित उपयोग को अभिनिश्चित करना तथा अभिप्रमाणित करना 
6.     पेसा 1996-4 (जी) अनुसूचित क्षेत्रों में प्रत्येक पंचायत में स्थानों का आरक्षण, उस पंचायत में उन समुदायों की संख्या के अनुपात में होगा जिनके लिए संविधान के भाग 9 के अधीन आरक्षण दिया जाना है : 
परंतु अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण, स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगा : 
परंतु यह और कि पंचायत के अध्यक्ष के सभी स्थान सभी स्तरों पर अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित रहेंगे ;
झारखंड पंचायत राज अधिनियम के अध्याय 3 की धारा 17 (ख)(1) में अनुसूचित क्षेत्रों में व्यवस्था की गयी है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान का आरक्षण उस पंचायत में अपनी- अपनी जनसंख्या के आधार पर होगा, परंतु अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगा। अनुसूचित क्षेत्र में धारा 36 (ख) और धारा 51 (ख) में यही व्यवस्था क्रमश: पंचायत समिति और जिला परिषद में की गयी है।  
अधिनियम की धारा 21 (ख) में अनुसूचित क्षेत्र में मुखिया के पदों के आरक्षण की बात की गई है। धारा 21 (ख) (i) -अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम पंचायत के मुखिया का पद अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित रहेगा परंतु यह भी की उन अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम पंचायत में, जिनमें अनुसूचित जनजातियों की संख्या नहीं है, अनुसूचित जनजातियों के मुखिया के लिए आरक्षित पदों के आवंटन से विहित रीति में अपवर्जन कर दिया जाएगा। अधिनियम की धारा 40 (ख) और धारा 55 (ख) में यही व्यवस्था पंचायत समिति के प्रमुख और जिला परिषद के अध्यक्ष पद के लिए किया गया है यानि यहाँ भी अध्यक्ष के पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।   
 7.    पेसा 1996-4 (एच):  राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों को जिनका मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में या जिला स्तर पर पंचायत में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, नामनिर्देशित कर सकेगी : 
परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस पंचायत में निर्वाचित किये जाने वाले कुल सदस्यों के दसवें भाग से अधिक  नहीं होगा ; 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम की धारा 36  (ख) (7) में कहा गया है कि राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों का नाम निर्दिष्ट कर सकेगी जिनका अनुसूचित क्षेत्रों के पंचायत समिति में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस पंचायत समिति में निर्वाचित किए जाने वाली कुल सदस्यों के दसमांश से अधिक नहीं होगा। अनुसूचित क्षेत्रों के जिला परिषद में भी यही व्यवस्था है। धारा 51 (ख) (7) में कहा गया है कि राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों का नाम निर्दिष्ट कर सकेगी जिसका अनुसूचित क्षेत्र के जिला परिषद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस जिला परिषद में निर्वाचित किए जाने वाले कुल सदस्यों के दसमांश से अधिक नहीं होगा। 
8.    पेसा 1996-4 (आई): अनुसूचित क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिए भूमि का अर्जन करने के पूर्व और अनुसूचित क्षेत्रों में ऐसी परियोजनाओं से प्रभावित व्यक्तियों को फिर से बसाने या उनको पुनर्वासित करने के पूर्व उपयुक्त स्तर पर ग्राम सभा या पंचायत से परामर्श किया जाएगा; अनुसूचित क्षेत्रों में परियोजनाओं की वास्तविक योजना और उनका कार्यान्वयन राज्य स्तर पर समन्वित किया जाएगा।    
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-11 में भू-अर्जन एवं पुनर्स्थापन पर चर्चा की गयी है। नियामवली के सेक्शन 28 में प्रावधान किया गया है कि भू-अर्जन एवं पुनर्स्थापना से पूर्व ग्राम सभा स्तर से मुक्त पूर्व संसूचित सलाह या सर्वसम्मति से सलाह प्राप्त करना अनिवार्य होगा। अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण से पूर्व ग्राम सभा से मुक्त पूर्व संसूचित सलाह या सार्वसम्मती से सलाह Jharkhand Rights to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Rules, 2015 के नियम 20 के अनुरूप होगा। 
9.    पेसा1996-4 (जे): अनुसूचित क्षेत्रों में लघु जल निकायों की योजना और उनका प्रबंध उपयुक्त स्तर पर पंचायतों को सौंपा जाएगा ;
झारखंड पंचायत राज अधिनियम की धारा 10 (1) (क) (xii) में ग्राम पंचायत को लघु जलाशयों के विनियमन तथा उपयोग में परामर्श देने का अधिकार है। अधिनियम की धारा 76(ख)(1) में अनुसूचित क्षेत्र में किसी विनिर्दिष्ट जल क्षेत्र तक के लघु जलाशयों की योजना बनाना, उन पर स्वामित्व तथा प्रबंधन करना पंचायत समिति का दायित्व है।     
10.    पेसा 1996-4 (के): समुचित स्तर पर ग्राम सभा या पंचायतों की सिफारिशों को अनुसूचित क्षेत्रों में गौण खनिजों के लिए पूर्वेक्षण अनुज्ञप्ति या खनन पट्टा प्रदान करने के पूर्व आज्ञापक बनाया जाएगा ;
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-13 में लघु खनिज पर चर्चा की गयी है। नियामवली के सेक्शन 30.3 (क) में लघु खनिज का खनन पट्टा प्राप्त करने के अधिकार का प्रावधान किया गया है। झारखंड लघु खनिज समनुदान नियांवली, 2004 के अध्याय 2 के उपबंध 5 (4) के तहत अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित ग्राम सभा की स्वतंत्र पूर्व संसूचित सहमति के बिना लघु खनिज का कोई खनन पट्टा अथवा खुली खदान अनुमति पत्र निर्गत नहीं किया जाएगा। 
11.    पेसा1996-4 (एल): उपयुक्त स्तर पर ग्राम सभा या पचायतों की पूर्व सिफारिश की नीलामी द्वारा गौण खनिजों के समुपयोजन के लिए रियायत देने के लिए आज्ञापक बनाया जाएगा ;
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-13 केसेक्शन 30.1 में लघु खनिजों के लिए ग्राम सभा द्वारा योजना तैयार करने का प्रावधान किया गया है:  
 (क)    ग्राम सभा मिट्टी,पत्थर,बालू, मोरं आदि सहित अपने क्षेत्र में पाए जाने वाले लघु खनिजों के लिए योजना बनाने और इसके उपयोग के लिए सक्षम होंगी।  
(ख)    ग्राम सभा के निर्देश एवं नियंत्रण में स्थाई समिति या ग्राम सभा इस जिम्मेवारी का निर्वहन करेगी
(ग)    बालू घाट जिस ग्राम सीमा के अंतर्गत हो उसका सीमांकन जिला खनन पदाधिकारी/ सहायक खनन पदाधिकारी द्वारा कराकर उसे संबंधित (Jharkhnad State Sand Minig Policy, 2017) के अनुसार category-1 बालू घाट को ग्राम सभाओं को सुपुर्द कर दिया जाएगा। ग्राम सभा स्वयं बालू घाट का संचालक होगी अथवा अपने स्तर से स्थानीय जरूरतों के लिए इस्तेमाल कर सकेगी। ग्राम सभा को सुपुर्द बालू घाट की इस्तेमाल से जो शुल्क/ राजस्व प्राप्त होगा उसे ग्राम सभा अपने कोश में जमा कर इस राशि का व्यय ग्राम विकास अथवा स्थानीय विकास के लिए कर सकेगी।
(घ)    ग्राम सभा बालू घाट की नीलामी करे या खुद संचालित करे, यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी परिस्थिति में नदी के तल में जेसीबी या अन्य किसी मशीन से बालू का खनन नहीं हो. 
(ङ)    ग्राम सभा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, भारत सरकार के निर्देशों के आलोक में मानसून सत्र की अवधि (झारखण्ड के सन्दर्भ में 10 जून से 15 अक्टूबर) में बालू के खनन और उठाव पर पूर्णतया रोक लगाया जाना सुनिश्चित करेगी। 
12.    पेसा 1996-4 (एम): अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करने के दौरान, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में, कृत्य करने के लिये समर्थ बनाने के लिये आवश्यक हों, राज्य विधानमंडल यह सुनिश्चित करेगा कि समुचित स्तर पर पंचायतों और ग्रामसभा को विनिर्दिष्ट रूप में निम्नलिखित अधिकार प्रदान किया जाए –
i.    मद्य-निषेध प्रवर्तित करने या किसी मादक द्रव्य के विक्रय और उपभोग को विनियमित या निर्बंधित करने की शक्ति।
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-14 में मादक द्रव्यों के विनियमन का प्रावधान किया गया है। 31 (ख) में प्रावधान किया गया है कि ग्राम सभा को अपनी पारामपरिक सीमा क्षेत्र के भीतर मादक द्रव्यों के विनिर्माण, भंडारण, परिवहन, विक्रय और उपभोग को विनियंत्रित करने तथा प्रतिबंधित करने के लिए सक्षम होगी। 
ii.    लघु वन उपज का स्वामित्व । 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-15 में ग्राम सभा के अधिकारों की व्याख्या की गयी है। 
iii.    अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अन्य संक्रमण के निवारण की और किसी अनुसूचित जनजाति की किसी विधि-विरुद्ध तथा अन्य संक्रमित भूमि को प्रत्यावर्तित करने के लिये उपयुक्त कार्यवाही करने की शक्ति। 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-16 में ग्राम सभा के अधिकारों की व्याख्या की गयी है। सेक्शन 33 (ख) ग्रामसभा द्वारा भूमि की वापसीः यदि कोई ग्रामसभा अपने अधिकार क्षेत्र में यह पाती है कि अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य से किसी अन्य व्यक्ति ने उसकी जमीन गैर कानूनी ढंग से या उसकी नासमझी का फायदा उठाकर अपने कब्जे में कर ली है, तो वह उस भूमि का कब्जा उस व्यक्ति को प्रत्यावर्तित करेगी जिसकी वह मूलतः जमीन थी और यदि उस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उसके वैधिक वारिसों को प्रत्यावर्तित करेगी।
परन्तु यदि ग्रामसभा किसी भी कारण से ऐसी भूमि को प्रत्यावर्तित करने में असफल रहती है, तो वह मामला उपायुक्त को ग्राम सभा द्वारा प्रस्ताव पारित करते हुए सूचित करेगी । सेक्शन 33 (ग) में प्रावधान है कि किसी भी तरह की भूमि हस्तांतरण के पूर्व उपायुक्त ग्राम सभा से अनुसंशा प्राप्त करने के बाद ही भूमि का हस्तांतरण कर सकेंगे। ग्राम सभा अवैध भूमि हस्तांतरण का लेखा-जोखा रखेगी। 
iv.    ग्राम-बाजारों को, चाहे वे किसी भी नाम से ज्ञात हों, प्रबंध करने की शक्ति। 
v.    अनुसूचित जनजातियों को धन उधार देने पर नियंत्रण करने की शक्ति । 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-18 में ग्राम सभा के अधिकारों की व्याख्या की गयी है। 
सेक्शन 35 (क)ग्राम सभा झारखण्ड निजी साहूकारी (निषेध) अधिनियम 2016 के नियम के अनुसार कार्रवाई करने में सक्षम होगी।(ख) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) एवं सेबी में पंजीकृत संस्थायें ही अनुसूचित क्षेत्र में कर्ज लेन देन हेतु अधिकृत होंगे। (ग) ऐसी संस्थाओं को ग्राम सभा भवन या अन्य सार्वजनिक स्थान पर ब्याज की दर के संबंध में एक सूचना पटल लगाना अनिवार्य होगा। (घ) इन संस्थाओं को ग्राम सभा क्षेत्र में दिये गए ऋण, ब्याज की दर तथा ऋण की शर्तों के संबंध में प्रतिवर्ष ग्राम सभा में लिखित जानकारी देना आवश्यक है। (ङ) पंजीकृत संस्थाओं के अतिरिक्त किसी साहूकारी की जानकारी प्राप्त होने पर ग्राम सभा ऐसे साहूकारों के विरूद्ध FIR दर्ज कर सकेंगी। (च) ऋण चुकाने में असफल होने की स्थिति में व्यक्ति पर वसूली भूमि की नीलामी, कुर्की अथवा कानूनी कार्रवाई के प्रकरणों में ग्राम सभा कर्जदार के न्यूनतम आवश्यकताओ एवं मानवाधिकार को सुरक्षित रखने का प्रयास करेगी।
vi.    सभी सामाजिक सेक्टरों में कार्यरत संस्थाओं और कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण करने की शक्ति।
vii.    स्थानीय योजनाओं और संसाधनों तथा ऐसी योजनाओं, जो जनजातीय उपयोजना के अंतर्गत आती हैं, पर नियंत्रण रखने की शक्ति। 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम की धारा 75 (ख) में अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम पंचायत के अतिरिक्त कृत्य की चर्चा है। इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों के व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसी अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम पंचायत को ग्राम सभा के साधारण नियंत्रण तथा निदेश के अधीन निम्नलिखित शक्तियां होगी। 
(1)    ग्राम के बाजार, मेला, पशु मेला सहित चाहे वह किसी भी नाम से जाने जाएँ , प्रबंध करना 
(2)    स्थानीय योजना जिसमें जनजाति उप-योजना सम्मिलित है, के स्रोतों एवं व्यय पर नियंत्रण रखना और
(3)    ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग तथा कृत्यों का निर्वहन करना, जिसे राज्य सरकार तत्समय प्रवृत  किसी विधि के अधीन उसे प्रदत करें या उसे न्यस्त करें। 
अधिनियम की धारा 75 (ग)  की उपधारा (क) एवं (ख) में ग्राम पंचायत के वर्णित कृत्य तत्समय प्रवृत सरकार के अन्य अधिनियमों/ नियमों एवं उनके क्षेत्राधिकार को प्रभावित नहीं करेंगे। अनुसूचित क्षेत्रों के पंचायत समितियों तथा जिला परिषद में क्रमश: धारा 76 (ख) तथा धारा 77 (ख) के तहत ऐसे ही विशेष प्रावधानों की व्यवस्था की गयी है। 
(1)    किसी भी निर्दिष्ट जल क्षेत्र तक के लघु जलाशयों की योजना बनाना, उन पर स्वामित्व तथा उनका प्रबंधन करना 
(2)    समस्त सामाजिक प्रक्षेत्र में उनका अंतरिक्ष संस्थाओं तथा कार्यों पर नियंत्रण करना 
(3)    स्थानीय योजना में जिसमें जनजाति अप योजना में सम्मिलित है, के स्रोतों एवं व्यापार नियंत्रण रखना और 
(4)    ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग तथा कृत्यों का निर्वहन करना, जिसे राज्य सरकार तत्समय प्रवृत  किसी विधि के अधीन उसे प्रदत करे या उसे निरस्त करे,
13.    पेसा 1996-4 (एन ):राज्य विधानमंडल पंचायतों को स्वशासी संस्था के तौर पर कार्य करे हेतु आवश्यक शक्ति और प्राधिकारं सौंपेगा, परन्तु यह सुनिश्चित करेगा कि उच्च स्तर की पंचायतें, ग्रामसभा या नीचे स्तर की पंचायतों की शक्ति या प्राधिकार को हथिया न ले।
14.    पेसा 1996-4 (ओ):राज्य विधानमंडल अनुसूचित क्षेत्र में जिला-स्तर पर पंचायतों की प्रशासनिक व्यवस्था की रूपरेखा तैयार करते समय संविधान की छठी अनुसूची के पैटर्न के अनुसरण का प्रयास करेगा।
झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 132 में ग्राम पंचायतों को उप विधि बनाने तथा धारा 133 एवं 134 में क्रमश: पंचायत समिति और जिला परिषद को विनियम बनाने की शक्ति दी गयी है।  
 (अगले आलेख में पढ़िए झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली,2022 के विशेष प्रावधानों पर आलेख)
View Counter
1,499,950
Views