पेसा अधिनिय में क्या है संवैधानिक और क्या है असंवैधानिक, सवाल-जवाब से जानें सबकुछ!

सुधीर पाल 



पेसा पर चल रहे चिंतन-मनन पर  सार्थक बहस के लिए ये विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं। हम थोड़ा ओल्ड स्कूल के हैं, इसलिए सबकुछ को असंवैधानिक और गैर कानूनी नहीं समझ पाते हैं। तीन किश्तों की पहली श्रृंखला यहां प्रस्तुत है: 

पेसा से संबंधित सवाल-जवाब

1.    झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम 2001  के प्रावधान अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं होता है?
यह कहना विधि सम्मत नहीं होगा कि जेपीआरए केवल सामान्य क्षेत्र के लिए है। स्थानीय सरकार का विषय भारतीय संविधन में राज्य सूची में है (क्रमांक 5. स्थानीय सरकार, अर्थात स्थानीय स्वशासन या ग्राम प्रशासन के उद्देश्य से नगर निगमों, इम्प्रूव्मन्ट ट्रस्टों, जिला बोर्डों, खनन बंदोबस्त प्राधिकरणों और अन्य स्थानीय प्राधिकरणों के गठन की शक्तियाँ।) इसलिए राज्य विधानमंडल को इन पर कानून बनाना है। इसी संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए 2001 में जेपीआरए अधिनियमित किया गया है। 
संविधान के 73वें संशोधन के आलोक में स्पष्ट रूप से संसद को अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू प्रावधानों को अधिनियमित करने की आवश्यकता थी। यह देखते हुए कि अनुच्छेद 244 में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विशेष पहल की आवश्यकता थी, पेसा अधिनियमित किया गया। इन प्रावधानों को जेपीआरए में शामिल किया जाना आवश्यक है। पेसा, सभी स्तरों पर पंचायतों और ग्राम सभाओं को विशिष्ट शक्तियाँ और भूमिकाएँ प्रदान करता है। झारखंड के मामले में जेपीआरए 2001 में राज्य संशोधनों में शामिल किया जाना जरूरी है। सिवाय स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) को छठी अनुसूची के तहत दी गई विधायी शक्तियों के, जो प्रावधान स्पष्ट रूप से संविधान से प्राप्त होते हैं। राज्य विधानमंडल के पास संविधान के तहत किसी भी स्थानीय सरकारी निकाय को विधायी शक्तियाँ सौंपने का अधिकार नहीं है।
जेपीआरए में अनुसचित क्षेत्रों के लिए पेसा के प्रावधानों को समाहित करने की कोशिश की गयी है। पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र वाले बाकी नौ राज्यों में भी पेसा को राज्य के पंचायत राज अधिनियम में ही समाहित किया गया है। ध्यान रहे केंद्र में पेसा का नोडल पंचायत राज विभाग है और 73 वें संवैधानिक संशोधन के समय यह व्यवस्था की गयी थी की 73 वें संशोधन के प्रावधान तो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होंगें किन्तु अपवादों और उपांतरणों के साथ। और अनुसूचित क्षेत्र में गठित होने वाली पंचायत व्यवस्था में कोई भी कानूनी प्रावधान ऐसा नहीं होगा जो परंपरा से असंगत हो। जेपीआरए में सामान्य क्षेत्र की त्रि स्तरीय पंचायत व्यवस्था के साथ अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत को विशेष अधिकार देने के प्रावधानों को पेसा के आलोक में समाहित किया गया है।
ध्यान रहे पेसा 1996 की धारा 4-: संविधान के भाग नौ में किसी बात के होते हुए भी, किसी राय का विधान मण्डल, उस भाग के अधीन ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा.. .. ।       

2.    पेसा एक्ट लागू होने से CNT ACT, WILKINSON एक्ट, इत्यादि का  प्रभाव क्या खत्म  हो जाएगा ?
झारखंड के इन तीनों विशिष्ट अधिनियमों यथा छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम और विल्किंसन रुल्स में समुदायों की परंपरा, गाँव की सीमा के भीतर उनकी पारंपरिक स्वशासी व्यवस्था, सामुदायिक संसाधनों के परंपरागत प्रबंधन और विवादों के निबटारे के तौर-तरीकों को अधिनियमित किया गया है। पेसा की बुनियाद ही इन्हीं तीनों कानूनों में है। राज्य की इन विशिष्ट कानूनों को पेसा के माध्यम से केन्द्रीय कानून के तौर पर मान्यता दी गयी है। इसलिए पेसा ऐक्ट लागू होने से इन कानूनों को ज्यादा शक्ति मिली है। 
पेसा-1996 और वन अधिकार अधिनियम 2006 (FRA), केंद्रीय कानून है। केन्द्रीय कानून का ओवरराइडिंग इफेक्ट CNT, SPT और विल्किंसन रुल्स पर होता है। इन पुराने कानूनों में कोई भी प्रावधान जो पेसा और FRA के किसी प्रावधान के साथ ओवरलैप करता है तो पेसा और FRA के प्रावधान जैसा भी मामला हो लागू माने जाएंगे। इसलिए पेसा और FRA के प्रावधानों का तुलनात्मक अध्ययन CNT, SPT और विल्किंसन नियमों से करने की आवश्यकता है ताकि उनके प्रावधानों की स्थिति को बेहतर ढंग से समझा जा सके। संयोग से राज्य के काश्तकारी कानूनों से इत्तर या इससे ओवरलैप होने के प्रावधान पेसा और वनाधिकार कानून में देखने को नहीं मिलते हैं।  

3.    PESA 1996 के अनुरूप झारखण्ड के PESA उपबंध को नहीं बनाया गया है?
झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियमावली 2022 के प्रस्ताव में कुल 18 अध्याय और 36 धाराएं है।इन अध्यायों में पारंपरिक ग्राम की परिभाषा, पारंपरिक ग्राम सभा की बैठक,ग्राम सभा FC अध्यक्ष एवं सहायक सचिव के कर्तव्य, ग्राम सभा बैठक का संचालन एवं निर्णय की प्रक्रिया,सामुदायिक संसाधनों का प्रबंधन, परंपराओं का संरक्षण एवं विवादों का निबटारा,सामाजिक क्षेत्र के संस्थाओं के कार्यों पर नियंत्रण, भू-अर्जन एवं पुनर्स्थापन,लघु जल निकायों का प्रबंधन, लघु खनिज, मादक द्रव्यों का नियंत्रण, लघु वनोपज, संक्रमित भूमि का प्रत्यावतर्न, बाजारों का प्रबंधन तथा उधार पर नियंत्रण के प्रावधानों की व्यवस्था की गयी है। ये सभी विषय पेसा अधिनियम के दायरे में आते हैं। ड्राफ्ट नियमावली में भूमि, जल, जंगल, खनिज, लघु वनोपज, विवादों के निबटारे आदि के प्रावधानों को परंपरा के अनुरूप अनुरूप करने के लिए संबद्ध प्रचलित कानूनों में पेसा के प्रावधानों को शामिल किया गया है। 
झारखंड पंचायत राज अधिनियम की धारा 10 (5)(iii) में अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की अतिरिक्त शक्तियां और कृत्य के संबंध में कहा गया है-‘ ग्राम क्षेत्रों के भीतर के प्राकृतिक स्त्रोतों को जिनके अंतर्गत भूमि, जल तथा वन आते हैं, उसकी परंपरा के अनुसार किन्तु संविधान के उपबंधों के अनुरूप तथा तत्समय प्रवृत अन्य सुसंगत विधियों की भावना का सम्यक ध्यान रखते हुए प्रबंध कर सकेगी।‘ इसलिए यह कहना कि नियामवाली पेसा-1996 के अनुरूप नहीं है, गलत होगा। 
हां, पेसा के कुछ प्रावधानों पर राज्य को निर्णय लेने की जरूरत है।  उदाहरण के लिए छठी अनुसूची के पैटर्न पर धारा 4 (ओ) के अनुपालन के लिए पहल करना। पूरी समझ बनाने के लिए जरूरी है कि यह समीक्षा की जाए कि पेसा के कौन-कौन से प्रावधान जेपीआरए में शामिल हैं, कितने प्रावधानों को शामिल करने के लिए जेपीआरए में संशोधन की जरूरत है और कौन -कौन प्रावधानों को नियामावली में जगह नहीं मिल पायी है। जेपीआरए में शामिल पेसा प्रावधानों के साथ-साथ जेपीआरए के  उन सामान्य प्रावधानों के संदर्भ में सोचने की जरूरत है जो अनुसूचित क्षेत्र पर भी लागू होते हैं।

4.    नियमावली स्वतः PESA के अंतर्गत बननी चाहिए? 
पेसा का वास्ता स्थानीय स्वशासन से है। यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्र में अपवादों और उपांत्रणों के साथ ग्रामीण अभिशासन का प्रावधान करता है। पेसा को लागू करने की अनिवार्य शर्त है, राज्य में पंचायत व्यवस्था में पहले से प्रचलित कानूनों के कुछ प्रावधानों में अपेक्षित फेरबदल करना। वनाधिकार कानून 2006 की तर्ज़ पर केंद्र सरकार ने पेसा कानून के लिए नियमावली नहीं बनाया है। पंचायत राज्य का विषय है और पंचायत की संरचना, कार्य प्रणाली, शक्ति का विस्तार आदि राज्य की विधान सभा के अधिकार क्षेत्र में आता है। 
इसलिए पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र वाले सभी राज्यों ने राज्य पंचायत राज कानून के तहत ही पेसा नियमावली बनायी है। यही विधि सम्मत है। नियम जेपीआरए के प्रावधानों के लिए बनाए गए हैं, न कि पेसा 1996 के लिए। इसलिए जेपीआरए में पेसा प्रावधानों के लिए नियम, वे वही होंगे जो समग्र रूप से झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होंगे।

5.    पेसा एवं पी-पेसा में क्या अंतर है ?  
बुनियादी तौर पर कोई अंतर नहीं है। पेसा एवं पी-पेसा दोनों 1996 के पेसा अधिनियम की ही बात करते हैं। दोनों का संदर्भ 'पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधान से ही है। सुविधा के लिए इस कानून को PESA 1996 के रूप में संदर्भित किया जाता है, और जिसे वास्तव में P-PESA कहा जा रहा है, इसमें कोई अंतर नहीं है। जो लोग तर्क देते हैं कि PESA और P-PESA अलग-अलग हैं, उनसे लिखित रूप में पूछा जा सकता है कि दोनों में मूलभूत अंतर यदि कोई है तो क्या है?
  
6.    पंचायत राज एक्सटेंशन शिडीयूल एरिया (पेसा) - क्या यह पंचायत को और अधिक अधिकार देने के लिए है ?
73वें संशोधन के प्रावधानों के अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार के लिए पेसा संसद द्वारा बनाया गया कानून है। संशोधन कहता है: '243एम(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी- ख) संसद, कानून द्वारा, इस भाग के उपबंधों को खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों तक ऐसे अपवादों और संशोधनों के अधीन विस्तारित कर सकेगी, जैसा कि ऐसे कानून में विनिर्दिष्ट किया जा सकता है और ऐसा कोई कानून अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं माना जाएगा।' यह एक कानूनी तथ्य है कि पेसा मुख्य रूप से सामान्य क्षेत्रों में ग्राम सभाओं की तुलना में अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की विशिष्ट शक्ति को मान्यता देता है। अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभाओं के ऊपर की संरचनाओं के पास सामान्य क्षेत्र की तुलना में अतिरिक्त शक्तियां और जिम्मेदारियां होती हैं।
पेसा-1996, समुदायों को अपने गाँव, पंचायत के मामले में, विकास के मामले में निर्णय लेने, निर्णयों को लागू करने, संसाधनों को अपनी सामुदायिक जरूरतों के अनुसार प्रबंध करने और स्थानीय स्तर पर विवादों के परंपरागत व्यवस्था से निबटाने की शक्ति देता है। यह अनुसूचित क्षेत्र में परंपरागत स्वशासन की व्यवस्था को कानूनी मान्यता देता है। कहा जाये तो यह सामान्य क्षेत्र की तुलना में पंचायत को ज्यादा अधिकार देता है।यह सुनने में अटपटा लग सकता है लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था के बगैर पेसा का अस्तित्व नहीं है।   

7.    आदिवासियों की जमीन दखल होने की संभावना क्या बढ़ेगी ? 
यह भ्रांति है कि पेसा के लागू होने से आदिवासियों की जमीन दखल होने की संभावना बढ़ जाएगी। बल्कि इसके उलट पेसा जमीन दखल के मामले में ग्राम सभा को हस्तक्षेप का कानूनी अधिकार देता है। भूमि अधिग्रहण और जबरन कब्जा के मामले में प्रशासन को ग्राम सभा के निर्णयों को मान्यता देने का प्रावधान है। 
आम तौर पर, देश भर में आदिवासियों को भूमि हस्तांतरण से बचाने के लिए राज्य के काश्तकारी कानून हैं। जिन राज्यों में अनुसूचित क्षेत्र हैं वहां आदिवासी भूमि हस्तांतरण पर सीधे प्रतिबंध नहीं है और इसके लिए जिला आयुक्त/कलेक्टर की अनुमति की आवश्यकता होती है। केवल महाराष्ट्र में राज्यपाल ने पांचवीं अनुसूची के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए जिला आयुक्त/कलेक्टर द्वारा भूमि हस्तांतरण की अनुमति देने के लिए ग्राम सभा की सहमति की आवश्यकता वाले आदेश को अधिसूचित किया। यह भूमि की रक्षा के लिए ग्राम सभा की शक्ति के PESA प्रावधान के अनुरूप है। आधुनिक दिखने और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपनी ज़मीन बेचने की इच्छा रखने वाले आदिवासियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि वे अब अधिक शिक्षित और शहरीकृत हो चुके हैं। 
पूर्व में केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सिफारिश थी कि राज्य सरकार को भूमि के लिए संचित निधि की स्थापना करनी चाहिए ताकि ग्राम सभा को प्रतिस्पर्धी बाज़ार मूल्य पर ग्राम सभा के भौगोलिक क्षेत्राधिकार में आने वाली आदिवासी और गैर-आदिवासी ज़मीन खरीदने के लिए राशि उपलब्ध कराया जा सके। इससे खरीदी गई ज़मीन गाँव की ज़मीन बन जाती है, जिसे ग्राम सभा गाँव के अन्य योग्य निवासियों को आवंटित कर सकता है या आम इस्तेमाल के लिए रख सकती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आदिवासी ज़मीन आदिवासियों के हितों की सेवा करे और जहाँ तक संभव हो, बाहरी लोगों से ज़मीन वापस ली जाए, चाहे वे आदिवासी हों या गैर-आदिवासी। ग्राम दान ऐक्ट में भूमि के सामुदायिक स्वामित्व को बहाल करने के लिए ऐसी ही व्यवस्था की गयी है।  
यह न यहीं भूलना चाहिए कि राज्य और केंद्र सरकार पर सुरक्षात्मक भूमि कानूनों को खत्म करने के लिए लगातार दबाव बढ़ रहा है। भूमि हस्तांतरण से सुरक्षा का दायित्व सरकार और समुदायों पर है। भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए राजनीतिक-कानूनी साधन के रूप में PESA, राज्य के काशकारी कानून, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, वन अधिकार अधिनियम आदि के उपयोग को कैसे सार्थक और प्रभावी बनाया जाए, इस पर काम करने की जरूरत है।

8.    पेसा कानून आदिवासियों के हित मे नहीं है?
पेसा, समुदायों की परंपरा, रीति-रिवाज, उपासना पद्धति, रुढ़ि व्यवस्था को कानूनी मान्यता देता है। सामुदायिक संसाधनों पर परंपरागत प्रबंधन तथा विवादों के निबटारे की परंपरागत पद्धति को विधि का बल प्रदान करता है। यह स्वशासन की परंपरागत व्यवस्था को अधिकार सम्पन्न बनाता है। ऐसे में यह कहना कि पेसा कानून आदिवासियों के हित मे नहीं है, पेसा कानून नितांत गलत व्याख्या है। 
पेसा अनुसूचित क्षेत्र और उसके सभी निवासियों चाहे वे आदिवासी हों या गैर-आदिवासी के सर्वोत्तम हित में एक कानून है। इसमें पंचायत राज संस्थाओं में निर्वाचित पदों में आदिवासियों पर विशेष ध्यान दिया गया है और आदिवासियों की पारंपरिक और प्रथागत प्रथाओं और प्रणालियों को प्राथमिकता दी गई है। देश के 10 राज्यों में पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में गांव/ग्राम सभा की शक्तियों और प्रत्यक्ष लोकतंत्र की व्यवस्था पेसा के माध्यम से की गयी है। पूर्वोत्तर राज्यों के छठी अनुसूची क्षेत्रों में स्वायत्त जिला/क्षेत्रीय परिषदों को जिला स्तर पर कुछ विषयों पर विधायी शक्तियों सहित अधिक स्वायत्तता प्रदान की गयी है। पूरे देश में वन अधिकार अधिनियम के तहत सामुदायिक वन संसाधन क्षेत्रों वाले गाँव और बस्तियों को लोगों के लोकतंत्र के लिए एक गहरा और व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करती हैं। ये सभी कानूनी व्यवस्था और प्रत्यक्ष लोकतंत्र आदिवासियों के संघर्ष और मांगों से उभरे हैं और इसे मुख्य रूप से आदिवासी वाले क्षेत्रों से समावेशी रूप से मान्यता दी गई है। इस लोकतंत्र और शासन के दायरे में अन्य सभी गैर-आदिवासी निवासियों को भी शामिल किया गया है।
(क्रमश:)
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