आदिवासी युवाओं को 'ग्राम टेक्नोक्रेट' बनाना जरूरी 

सुधीर पाल 



डिजिटल युग में पारदर्शिता, भागीदारी और जवाबदेही की जो अपेक्षाएँ उभरी हैं, वे तकनीक के सहारे ही पूरी हो सकती हैं। लेकिन तकनीक अगर लोक जीवन से असंगत हो, तो वह एक बिचौलिए की भूमिका में आ जाती है जो दूरी बढ़ाता है। इसलिए डिजिटल पंचायत का विचार तभी सफल हो सकता है, जब वह आदिवासी समाज की भाषाई, सांस्कृतिक और प्रशासनिक पारंपरिक पद्धतियों का संवाहक भी बने।
आदिवासी क्षेत्र के विकास और पंचायतों के सशक्तिकरण में युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। युवाओं को न केवल परंपरागत ज्ञान और संस्कृति से जुड़े रहना चाहिए, बल्कि उन्हें आधुनिक तकनीकी ज्ञान और डिजिटल कौशल से भी लैस करना जरूरी है। इस संदर्भ में 'ग्राम टेक्नोक्रेट' की अवधारणा नयी दिशा और ऊर्जा ला सकती है, जो पंचायतों को डिजिटल युग के अनुरूप सक्षम बनाए।
किसी भी डिजिटल मंच की पहली शर्त होती है—उसकी पहुँच। और पहुँच की पहली सीढ़ी है भाषा। आदिवासी समाज की मातृभाषाएँ—हो, मुंडारी, संथाली, कुड़ुख आदि—सिर्फ संवाद के माध्यम नहीं हैं, वे सोचने और समझने की प्रक्रिया का मूल हैं। पंचायत पोर्टल पर इन भाषाओं का प्रयोग केवल अनुवाद नहीं है, यह एक सांस्कृतिक सम्मान है, जो स्थानीय लोगों को स्वामित्व का बोध कराता है।
ग्राम टेक्नोक्रेट वे युवा होते हैं जो ग्राम पंचायत के कामकाज में तकनीकी दक्षता लाते हैं, जैसे कि डेटा संग्रह, दस्तावेज़ प्रबंधन, योजना लेखन, डिजिटल अभिलेख तैयार करना आदि, लेकिन वे साथ ही अपनी लोक परंपराओं, आदिवासी ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करते हुए कार्य करते हैं। ये युवा आधुनिक तकनीक और लोक संस्कृति के बीच पुल का काम करते हैं। पोर्टल पर लोक भाषा में संवाद, सूचनाएँ, ग्रामसभा के एजेंडे, बैठक के मिनट, योजनाओं की प्रगति, फंड का विवरण और शासनादेश उपलब्ध हों तो यह केवल सूचना नहीं बल्कि लोकतंत्र की पुनर्रचना होगी। भाषा चयन का विकल्प भी हो जिससे कोई भी ग्रामवासी अपनी भाषा में वेबसाइट का उपयोग कर सके।
आज पंचायतों के कामकाज में तकनीकी कौशल का महत्व बढ़ता जा रहा है। डिजिटल रिकॉर्डिंग, ऑनलाइन योजना, जीपीएस आधारित संसाधन प्रबंधन, ई-गवर्नेंस आदि के लिए प्रशिक्षित युवाओं की आवश्यकता है। जब युवाओं को स्थानीय संदर्भ और परंपरा की जानकारी होगी, तो वे तकनीक का उपयोग अपने समुदाय की वास्तविक जरूरतों के अनुसार कर पाएंगे।
डिजिटल और पारंपरिक दोनों पहलुओं में दक्ष युवा पंचायत को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और कुशल बनाएंगे। युवाओं के लिए यह एक रोजगार का क्षेत्र भी बन सकता है, जिससे वे अपने क्षेत्र में ही काम करें और पलायन कम हो। ग्राम टेक्नोक्रेट बनने के लिए युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना, स्थानीय शासन की कार्यप्रणाली से परिचित कराना, और लोक परंपराओं के प्रति संवेदनशील बनाना अनिवार्य है।
इस प्रक्रिया में युवाओं को पंचायत कार्यालयों, ग्रामसभाओं और योजना समितियों में सक्रिय रूप से जोड़ा जाना चाहिए। वे पंचायत पोर्टल का प्रबंधन कर सकते हैं, ग्रामसभा की कार्यवाही का डिजिटल अभिलेखन कर सकते हैं, योजनाओं का दस्तावेजीकरण और प्रस्तुतीकरण तैयार कर सकते हैं। साथ ही, वे यह सुनिश्चित करें कि डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते समय परंपराओं का उल्लंघन न हो।
ग्राम टेक्नोक्रेट बनने वाले युवाओं को डिजिटल सुरक्षा, डेटा गोपनीयता, और प्रशासनिक उत्तरदायित्वों के बारे में भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। वे न केवल डिजिटल सेवाओं को ग्राम तक पहुँचाने वाले होंगे, बल्कि वे स्थानीय लोकतंत्र के संवाहक भी होंगे। इन युवाओं को राज्य सरकार, पंचायत विभाग, और सामाजिक संगठनों द्वारा सहयोग और मान्यता दी जानी चाहिए। उन्हें मानदेय, प्रमाणपत्र, और अवसर मिलने चाहिए ताकि वे अपने कार्य को दीर्घकालिक रूप से कर सकें।
इस पूरी पहल का उद्देश्य केवल तकनीक का विस्तार नहीं, बल्कि ग्रामीण लोकतंत्र को सशक्त बनाना है। आदिवासी युवाओं को ग्राम टेक्नोक्रेट बनाकर हम न केवल उन्हें स्थानीय स्तर पर नेतृत्व के लिए तैयार करते हैं, बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति का संवाहक भी बनाते हैं। इस प्रकार डिजिटल पंचायत और ग्राम टेक्नोक्रेट दोनों मिलकर ग्राम स्वराज की नई और सशक्त परिकल्पना को साकार करने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

'ग्राम टेक्नोक्रेट' की पंचायत में भूमिका 

'ग्राम टेक्नोक्रेट' पंचायत में डाटा और दस्तावेज़ प्रबंधन में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। मसलन पंचायत की सभी बैठकों, फैसलों, योजनाओं का डिजिटल अभिलेख तैयार करना, भूमि, वन, जल संसाधनों के जीपीएस डेटा का संग्रहण और अपडेट एवं ग्राम स्तर पर किये गए सर्वेक्षणों, परिवारों के आंकड़ों का प्रबंधन करना। 
योजना लेखन और रिपोर्टिंग के तहत वे सरकारी योजनाओं का स्थानीय भाषा में पर अनुवाद कर सकते हैं। पंचायतों को योजनाओं के आवेदन, रिपोर्टिंग, फीडबैक में मदद दे सकते हैं। पंचायत प्रतिनिधियों को खासकर महिला प्रतिनिधियों को योजनाओं के लाभ और उपयोग के बारे में जागरूक करने का काम कर सकते हैं। 'ग्राम टेक्नोक्रेट' तकनीकी प्रशिक्षण में सहयोग: दे सकते हैं। वे मुंडा,मांझी,मुखिया, वार्ड सदस्यों को डिजिटल उपकरणों का उपयोग सीखा सकते हैं। परंपरागत ज्ञान, रीति-रिवाज, सामाजिक नियमों को डिजिटल अभिलेखों में शामिल कर वे लोक परंपरा का सम्मान और संरक्षण में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। 

कैसे बनेगें आदिवासी युवा ग्राम टेक्नोक्रेट 

इसके लिए पाँच काम करने होंगे। पहला काम तकनीकी प्रशिक्षण का होगा। पंचायत स्तर पर डिजिटल साक्षरता शिविर, मोबाइल एप्लिकेशन उपयोग, डेटा प्रबंधन और जीआईएस तकनीक की ट्रेनिंग देनी होगी। साथ ही स्थानीय भाषाओं में तकनीकी प्रशिक्षण सामग्री तैयार करने की जरूरत पड़ेगी। दूसरे स्तर पर युवाओं को लोक परंपराओं, संस्कृति, इतिहास और सामाजिक नियमों की गहराई से जानकारी देनी होगी। परंपरागत नेतृत्व के साथ संवाद स्थापित करने का कौशल विकसित करना होगा ताकि तकनीक के उपयोग में पारस्परिक सम्मान बना रहे।
तीसरा काम होगा ग्रामीण क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास यथा पंचायत स्तर पर कंप्यूटर, इंटरनेट सुविधा और डिजिटल केंद्र की स्थापना। मोबाइल नेटवर्क और डेटा की उपलब्धता सुनिश्चित करना जरूरी है। तमाम दावों के बाद भी झारखंड के कई आदिवासी इलाकों में आज भी मोबाईल नेटवर्क सहज और सुलभ नहीं है। ग्राम पंचायत द्वारा युवाओं की भूमिका को सम्मान देना और उनके प्रयासों को ग्राम स्तर पर मान्यता देना की व्यवस्था बनानी होगी। सफल टेक्नोक्रेट युवाओं को पुरस्कार, प्रमाणपत्र आदि से सम्मानित करने से वे उत्साहित रहेंगे तथा गाँव की मदद के लिए हमेशा तत्पर करेंगे। पाँचवा काम युवाओं के लिए एक मंच बनाना जहाँ वे अपने अनुभव साझा करें, समस्या का समाधान करें और नई तकनीक सीखें।
आदिवासी युवाओं को ग्राम टेक्नोक्रेट बनाकर हम न केवल पंचायतों की कार्यकुशलता बढ़ा सकते हैं, बल्कि लोक संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण भी सुनिश्चित कर सकते हैं। यह एक ऐसा समन्वय होगा जिसमें तकनीक और परंपरा दोनों एक साथ चलेंगी और ग्राम स्तर पर लोकतंत्र सशक्त, न्यायसंगत और समावेशी बनेगा। इस प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी उन्हें अपने समाज की जिम्मेदारी से जोड़ती है और वे ग्राम विकास के सशक्त स्तंभ बनेंगे।
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