स्कल तक घरों की चहारदीवारियों के अंदर कैद रहने वाली महिलाएं सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं से जुड़कर न सिर्फ आत्मनिर्भर होकर घर-परिवार संभाल रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भी पढ़ा रही हैं। सैकड़ों ऐसी महिलाएं हैं, जिनके परिवार को दो वक्त की रोटी के लिए तरसना पड़ता था, वे महिलाएं ही आज स्कूटी की सवारी कर रही हैं। घर में हड़िया और देसी शराब बेचने वाली दर्जनों ऐसी महिलाएं हैं, जो महिला और सखी मंडलों से जुड़कर आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं और समाज को नया रास्ता दिखा रही हैं। महिलाएं हर क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं चाहे वह लाह का उत्पादन हो, मछली पालन, मुर्गी-बतख और गो पालन का क्षेत्र हो अथवा बागवानी या गेंदा फूल की खेती. आज जिले के गांव-गांव में ऐसी महिलाएं मिल जाती हैं, जो धीरे-धीरे ही सही, पर लगातार आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं।
महिला मंडल से जुड़कर बदल गयी सोदे गांव की अहिल्या देवी की जीवन शैली
घोर उग्रवाद प्रभावित रनिया प्रखंड के सोदे गांव की रहने वाली अहिल्या देवी उसके परिवार में कुल सात सदस्य हैं। सखी मंडल से जुड़ने के पहले उन्हें परिवार चलाने में भारी कठिनाई होती थी। पति का भी कोई खास रोजगार नहीं था।
पैसे के अभाव में बच्चों का पढ़ाना और परिवार के सात लोगों का पेट भरना काफी कठिन लगा रहा था। परिवार की माली हालत देखकर कौशल्या ने खुद कुछ करने की ठानी और मात्र दो हजार की पूंजी लेकर रनिया, सोदे सहित आसपास के गांवों में लगने वाली साप्ताहिक हाटों में रेडीमेड कपड़ा बेचने का धंधा शुरू किया, लेकिन कम पूंजी के कारण वह ग्राहकों की मांगों के अनुरूप दुकान में कपड़े रख नहीं पाती थी। इसके कारण बहुत कम आदमनी होती थी। कुछ दिनों के बाद अहिल्या गांव की सखी मंडल से जुड गयी। कुछ महीनों के बाद दीदी समूह, ग्राम संगठन और सीसीएल से उन्होंने एक लाख पचास हजार रुपये का ऋण लिया और उस रकम से नये ढंग से कपड़े की दुकान शुरू की। स्थानीय बाजार के अलावा दूसरी महिलाओं द्वारा तैयार किये कपड़ों को लेकर वह दुकान में बेचने लगी। धीरे-धीरे दुकान में बिक्री बढ़ी और आमदनी भी बढ़ने लगी। अब अहिल्या देवी हर महीने 15 से 18 हजार रुपये आसानी से कमा लेती है। उन्होंने बताया कि लिए गये एक लाख 50 हजार के ऋण में वह एक लाख 30 हजार रुपये का लोन वापस कर चुकी है। उन्होंने कहा कि महिला मंडल से जुड़कर उनकी जीवन शैली बदल गयी।
सुशीला मुंडा हर साल कमाती है डेढ़ लाख रुपये
खूंटी सदर प्रखंड के सिलदा गांव की सुशीला मुंडा 60 किलो लाह बीज की खेती से सालाना डेढ़ लाख रुपए तक की आमदनी प्राप्त कर रही हैं। सुशीला मुंडा रौशनी महिला उत्पादक समूह से जुड़कर वैज्ञानिक विधि से लाह की खेती कर रही हैं। उत्पादक से जुड़ने के बाद उन्हें लाह की उन्नत खेती करने का प्रशिक्षण मिला था। सुशीला बताती है कि दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण हमारी आजीविका मुख्यतः जंगल और वनोपज पर निर्भर करती है। हमारे परिवार में पहले भी लाह की खेती का कार्य किया जाता था, लेकिन उत्पादक समूह से जुड़ने के बाद हमें वैज्ञानिक विधि से लाह की खेती करने, सही देख-रेख के साथ-साथ उचित मात्रा में कीटनाशक के छिड़काव से उपज बढ़ाने लगी। सुशीला साल भर में दो बार लाह की खेती करती हैं और लाह की खेती के ज़रिये उनकी आय में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। उन्हें देखकर अन्य महिलाएं भी इस ओर आकृष्ट हो रही हैं। सुशीला बताती है कि लाह की कमाई से हमने अपना खुद का टेम्पो खरीद लिया है। टेम्पो की मदद से मेरे पति आसानी से सामान पहुंचा पा रहे हैं। टेम्पो भाड़ा से भी घर की आमदनी 10 हज़ार प्रति माह बढ़ी है।
पलाश मार्ट दे रहा है महिलाओं के उत्पादों को नयी पहचान
जेएसएलपीएस से जुड़कर महिलाएं पापड़, अचार, चटनी, सबून, लेमन ग्रोस तेल, लाह की चूड़ियां से लेकर हर तरह के उत्पादों में महिलाएं हाथ बंटा रही हैं। महिलाओं के उत्पादों को नयी पहचान दिलाने के लिए जिले में चार पलाश मार्ट की शुरुआत की गयी है। खूंटी सदर, कर्रा, तोरपा और मुरहू प्रखंड में पलाश मार्ट का संचालन किया जा रहा है। खूंटी में सात प्रसंस्करण इकाइयों का भी संचालन किया जा रहा है। इनमें लाह, इमली, हल्दी, लेमन ग्रास और पत्तल-दोना उत्पादन की इकाइयां शामिल हैं। पलाश मार्ट के माध्यम से वस्तुओं का उत्पादन, विनिर्माण, मूल्यवर्द्धन, पैकेजिंग, और विपणन जैसे कार्य महिलाओं द्वारा किये जा रहे हैं।