गिरिडीह: घर घर पोषक-बाग

छंदोश्री ठाकुर



एक ताज एन.एफ.एच.एस. सर्वेक्षण के अनुसार, झारखण्ड के 42.9 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 69 प्रतिशत बच्चे और 65 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं. ऐसी स्थिति में डब्लू.एच.एच ने अपनी पार्टनर संस्था अभिवयक्ति के सहयोग से गिरिडीह के बेंगाबाद और गांडेय प्रखंड के 52 गांवों में पिछले 3 सालों से एक सामुदायिक पहल “पोषण” परियोजना के तहत कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. वैसे तो इस अभियान में कई तरह के प्रयास किये जा रहे हैं पर इन प्रयासों में “पोषक बाग” का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. इस प्रयास से ना केवल पोषित भोजन की समस्या दूर हुई है बल्कि लोगों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है.

बेंगाबाद और गांडेय में पिछले 3 सालों से यहाँ के लोग अपने-अपने घरों में पोषक बाग़ लगा कर अपनी जरुरत के लिए सब्जियां और फल उपजा रहे हैं. कई लोग इस पोषक बाग़ से उपजी सब्जियों को बेच कर उचित मुनाफा भी कमा रहे हैं. जुरुवाडीह पंचायत के गांव हरलाडीह की मधु मरांडी जो अपने पति दिनेश मरांडी और बेटे आशीष के साथ रहती है, उन्होंने अपने घर पर लगायें बाग़ की हमें जानकारी दी. मधु जी से बातचीत के दौरान हमे पता चला की वे अपने घर में लगाये हुए ‘पोषक-बाग’ में मौसम के अनुसार कई तरह की फल और सब्जियां उगाती हैं जैसे कि भिंडी, कदू, झींगा, मेथी साग, पालक, मूली, बोदी, बीन, बीट, गाजर आदि और समय-समय पर उन्हें सारी हरी और ताजी सब्जियां अपने खुद के पोषक-बाग़ से मिल जाती हैं.
अपने घर की ज़रूरत को पूरा करने के साथ-साथ वो बाज़ार जा कर इनकी बिक्री भी कर लेती है और उससे उन्हें थोड़ी आमदनी भी हो जाती है. पोषक बाग में प्रयोग होने वाले खाद एवं उर्वरक जैसे: केचुवा खाद, वर्मी कम्पोस्ट, जीवा-अमृत आदि भी लोग खुद से ही अपने घर पर बनाते हैं, जिसका प्रशिक्षण उन्हें अभिवयक्ति संस्था के माध्यम से दिया गया है. विस्तिरित रूप से जानकारी देते हुए वें बताती है कि वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण के लिए किसी शेड वाली जगह में सीमेंट की बनी नाद में बेकार पत्ते, सब्जियों के छिलके आदि को गोबर से ढक कर उसमे केचुआ डाल दिया जाता है. वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण के लिए शुरुआत में 1000 केचुआ डाला जाता है जिससे खाद का निर्माण होने में लगभग 60 दिन लगते हैं. उसके बाद केचुआ की संख्या जैसे-जैसे बढती जाती है, वक्त भी कम लगने लगता है. पहली बार खाद निर्माण में 45 दिन फिर केवल 30 दिनों में ही निर्माण हो जाता है. वे इस खाद को 5 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बेचती भी हैं. गोमूत्र कीटनाशक के निर्माण के लिए 1 kg बेलपत्र, 1 kg सिंघमार के पत्ते, 1 kg करंज के पत्ते, 1 kg नीम के पत्ते और 1 kg धतुरा के पत्ते को 5 लीटर पानी में उबाल कर औषधि तैयार की जाती है. इस औषधि की 1 लीटर मात्रा में 1 लीटर गौमूत्र और 10 लीटर पानी मिला कर पौधों में छिडकाव किया जाता है.

 

शुरुवाती दिनों में उन्हें थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा पर अब वे गांव की दूसरी महिलाओं को इन सब की जानकारी बहुत ही सरल तरीकों से देती है. नयी बीज के पौधे कमजोर हो जाते हैं. ऐसे में वो लोग इन पौधों के पोषण के लिए जीवामृत का निर्माण कर पौधों की जड़ों में इस्तेमाल करते हैं. इसके निर्माण के लिए 250 gmबेसन , 250 gmगुड़, 1 kg गोबर, 1 लीटर गोमूत्र और 9 लीटर पानी को मिलाकर 48 घंटों के लिए छायादार जगह में रखा जाता है. छोटे पौधों के लिए 10 लीटर पानी में 1 लीटर जीवामृत मिला कर और बड़े पौधों के लिए 6 लीटर पानी में 1 लीटर जीवामृत मिलाकर पौधों की जड़ों में डाला जाता है.

अभिवयक्ति संस्था ने इन गाँव में 6000 पोषक बाग़ लगवाए हैं. इस संस्था के माध्यम से उन्हें कई तरह के बीज मिले हैं. साथ ही संस्था के सहयोगियों के द्वारा प्रशिक्षण भी दिया गया है. समय-समय पर संस्था के सहयोगियों के माध्यम से उनके पोषण बाग का निरीक्षण भी किया जाता है और साथ ही किसी तरह की परेशानी होने पर पौधों का सही उपचार किया जाता है. गांव के सभी घर की महिलाओं के लिए उनका पोषण-बाग़ उनके घर का एक बहुत ही सुन्दर और महत्वपूर्ण भाग है.