कम्युनिटी नर्सरी से सुधर रही गाँव की स्थिति

पंचायत ऑब्जर्वर



भारत में पाँच साल से कम उम्र के 43.5 प्रतिशत बच्चे एवं 50 प्रतिशत महिलाएँ कुपोषण एवं अनीमिया (रक्त की कमी) का शिकार हैं. वहीँ एक ताज राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार, झारखण्ड के 42.9 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 69 प्रतिशत बच्चे और 65 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं.
ऐसी स्थिति में WHH ने अपनी पार्टनर संस्था प्रवाह के सहयोग से देवघर के सोनारायठाड़ी प्रखंड में पिछले 3 सालों से एक सामुदायिक पहल “POSHANN” परियोजना के तहत गाँव-गाँव में कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. वैसे तो इस अभियान में कई तरह के प्रयास किये जा रहे हैं पर इन प्रयासों में कम्युनिटी नर्सरी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. इस प्रयास से ना केवल पोषित भोजन की समस्या दूर हुई है बल्कि लोगों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है.
सोनारायठाड़ी में पिछले 3 सालों से यहाँ के लोग कम्युनिटी नर्सरी से पौधे ले कर अपने-अपने घरों में पोषण बाग़ लगा कर अपनी जरुरत के लिए सब्जियां और फल उपजा रहे हैं. कई लोग इस पोषण बाग़ से उपजी सब्जियों को बेच कर उचित मुनाफा भी कमा रहे हैं. खिजुरिया पंचायत के कुशमाहा गाँव के अजित राय ने अपनी कम्युनिटी नर्सरी दिखाते हुए बताया वो अपनी नर्सरी में निर्मित पौधों और वर्मी कम्पोस्ट को बेच कर महीने का लगभग 9000 रूपए कमा लेते हैं. इसके अतरिक्त वो अपने खेत में उपजी सब्जियों से भी अच्छी आमदनी कर लेते हैं. अजित राय ने 3 साल पहले प्रवाह संस्था की मदद से अपनी जमीन पर नर्सरी का निर्माण किया था जिसमें उन्होंने 18 हज़ार रूपए का निवेश ( 6-6 हज़ार तीन बार ) किया था, प्रवाह ने इस निवेश और अपनी सहायता से उन्हें नर्सरी का निर्माण, बीज, पौधों के लिए 104 कैविटी का ट्रे, विभिन्न औजार और जैविक खाद आदि उपलब्ध कराया.
 
अजित राय ने बताया - पहले लोग अपने घर के आस-पास या खेतों में थोड़ी सी जमीन पर बीज डाल कर पौधों का निर्माण करते थे, मगर बारिश, कीट, मवेशी, आंधी आदि से इन बीजों को बहुत नुकसान होता था, मगर नर्सरी बाहरी मौसम, किट आदि से सुरक्षा प्रदान करता है. इसीलिए गाँव के लोग अब बीज खरीद कर नर्सरी में ही पौधों का निर्माण कराते हैं, 1000 पौधों के निर्माण होने पर 200 पौधे मेहनताना के तौर पर अजिय राय अपने पास रख लेते हैं.
नर्सरी में पौधों को बनाने के लिए विशेष मिट्टी (जिसमे कोकोपीट, वर्मी कम्पोस्ट, गोबर और खेत की मिट्टी को एक उचित मात्रा में मिला कर बनाई गयी मिट्टी) का उपयोग किया जाता है. वे अपनी इस नर्सरी में विभिन्न प्रकार की पोषण वाली सब्जियों- जैसे – सहजन, बैंगन, पपीता, मिर्ची, हल्दी, मकई आदि सब्जियों के पौधे का निर्माण करते हैं.
इसी गाँव की रानी देवी ने अपनी ख़ुशी का इजहार करते हुए बताया की पहले उनके घर की स्थिति बहुत खराब थी, अच्छी आमदनी नहीं होने की वजह से घर के बच्चों को सब्जियां और फल नहीं मिल पाता था. पर जब से उन्होंने अपने घर पर पोषण बाग़ लगाया है सबकुछ ठीक होने लगा है. उन्होंने आगे बताया की वो भिन्डी, ग्वारफली, बरबटी, करेला, झींगा, लौकी, खीरा, साग, मिर्ची, कोहड़ा. आदि लगभग सभी सब्जियां उगा कर बेचती हैं. और लगभग 200 रूपए मुनाफा एक दिन में कमा लेतीं हैं. इन सभी सब्जियों को उगाने के लिए वो जैविक खाद का ही उपयोग करती हैं. उन्होंने ने बताया की पहेल वो वर्मी कम्पोस्ट अजित राय से खरीदती थीं, पर अब वो अपने घर में सब्जियों, फलों के छिलकों, पत्तों, और गोबर से खाद का निर्माण भी खुद ही कर लेती हैं.
अजित राय ने बताया कि प्रवाह संस्था के लोगों ने उनके गाँव में कीटनाशक और खाद निर्माण का प्रशिक्षण भी दिया था.
 
उन्होंने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण के लिए किसी शेड वाली जगह में सीमेंट की बनी नाद में बेकार पत्ते, सब्जियों के छिलके आदि को गोबर से ढक कर उसमे केचुआ डाल दिया जाता है. शुरुआत में 1000 केचुआ डाला जाता है जिससे खाद का निर्माण होने में लगभग 60 दिन लगते हैं. उसके बाद केचुआ की संख्या जैसे-जैसे बढती जाती है, वक्त भी कम लगने लगता है, पहले 45 दिन फिर 30 दिनों में ही खाद का निर्माण हो जाता है. वे इस खाद को 5 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं.
गोमूत्र कीटनाशक के निर्माण के लिए 1 kg बेलपत्र, 1 kg सिंघमार के पत्ते, 1 kg करंज के पत्ते, 1 kg नीम के पत्ते और 1 kg धतुरा के पत्ते को 5 लीटर पानी में उबाल कर औषधि तैयार की जाती है. इस औषधि की 1 लीटर मात्रा में 1 लीटर गौमूत्र और 10 लीटर पानी मिला कर पौधों में छिडकाव किया जाता है. गौमूत्र को इकठ्ठा करने के लिए गाय के शेड का निर्माण विशेष तरीके से किया गया है जिससे सारा गौमूत्र एक गड्ढे में इकठ्ठा होता है.
घर पर पोषण बाग़ लगाने में किसी तरह की दिक्कत आती है या नहीं के सवाल पर इसी गाँव की रासमुनि देवी ने बताया कि नर्सरी के पौधे से कभी कोई दिक्कत नहीं आती है पर कई बार नयी बीज के पौधे कमजोर हो जाते हैं. ऐसे में वो लोग इन पौधों के पोषण के लिए जीवामृत का निर्माण कर पौधों की जड़ों में इस्तेमाल करते हैं. इसके निर्माण के लिए 250 gm बेसन , 250 gm गुड़, 1 kg, गोबर, 1 लीटर गोमूत्र और 9 लीटर पानी को मिलाकर 3 दिनों के लिए धुप में रखा जाता है, और फिर 3 दिन बाद इस औषधि में 6 लीटर पानी मिला कर पौधे की जड़ों में डाला जाता है.
इस तरह नर्सरी और पोषण बाग़ से जैविक तरीके से सब्जियां और फल उगाये जाते हैं.
प्रवाह ने वेस्ट प्लास्टिक बैग जैसे सीमेंट, आटा का बोड़ा और अन्य प्लास्टिक से बने बैग का सदुपयोग करने के लिए बैग में छोटे पौधे उगाने का प्रशिक्षण भी दिया है. इससे उन लोगों को फायदा होता है, जिनके पास बहुत थोड़ी जमीन है. इस तरह वो लोग अपने घर के किसी भी कोने में ऐसे बैग्स में पौधे उगा सकते हैं. ऐसे बैग्स में आलू, टमाटर, बैगन, गोभी सभी तरह के पौधे एक-एक यूनिट में लगाया जा सकता है.
प्रवाह की तरफ से सोनारायठाढ़ी प्रखंड में ऐसी 3 कम्युनिटी नर्सरी [ कैलाश नर्सरी (गाँव-कुशमाहा), भैरव नर्सरी (गाँव- बसबुतिया), महेश्वर नर्सरी (गाँव-मोदीडीह) ] का निर्माण कराया गया है. इन कम्युनिटी नर्सरी में निर्मित कुछ पौधों को प्रवाह पुरे सोनारायठाढ़ी में कुपोषित बच्चों के परिवार में वितरित भी करते हैं.