‘पुष्टाहार’ से ग्रामीण लड़ रहे हैं कुपोषण की जंग

सुधीर पाल



गाँव वालों के लिए यह देशी हॉर्लिक्स है. हालांकि, सी डब्लू एस के लोग उसे बार-बार उसे पुष्टाहारनाम देते हैं लेकिन ग्रामीणों की जुबान पर हॉर्लिक्स ही चढ़ा है. देशी हॉर्लिक्स के नाम से इसे पहचानने के वाजिब कारण भी ग्रामीणों के पास मौजूद है. एक तो इसका रंग हॉर्लिक्स की तरह है और स्वाद भी लगभग उसी तरह का. खैर, ‘पुष्टाहारकहें या देशी हॉर्लिक्स ग्रामीणों के लिए कोई फ़र्क नही पड़ता है.
पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला ब्लॉक के हेंदरजुड़ी पंचायत के राजाबासा गाँव की माला रानी भगत बताती है की गाँव में कोई घर ऐसा नहीं मिलेगा जहाँ यह पुष्टाहार नहीं बनता है. खासकर महिलाओं को समझ आ गया है कि इसमें वे सारे तत्व हैं जो उन्हें और उनके बच्चों को स्वस्थ रहने के लिए चाहिए. वो कहती है, पहले छुट-पुट गाँव में कहीं-कहीं बनता था लेकिन सी डब्लू एस जब से यहाँ आया है, यह हर घर में बनने और इस्तेमाल में आने लगा. संस्था के साथियों ने शिविर लगा कर महिलाओं को इसे बनाना सिखाया. पहली बार संस्था की ओर से देशी हॉर्लिक्स बनाने के लिए आवश्यक सामग्रियां बांटी गयी और संस्था के फील्ड समन्यवक महिलाओं को लगातार प्रोत्साहित करते रहे.
लक्ष्मी महतो कहती हैं कि गाँव में बाज़ार के फैलाव के चलते होर्लिक्स जैसे कई ऐसे पदार्थ बच्चों को दिए जाते थे , जो काफी महेंगे होते है और शायद इतने हेल्दी नही होते जितने देशी हॉर्लिक्स खाकर हमारे गाँव के बच्चे स्वथ्य रहते हैं. अब हम खुद देशी हॉर्लिक्स बनाते हैं. इससे जच्चा और बच्चा दोनों का पोषण ठीक रहता है. उन्हें सही समय पर आवश्यक तत्व मिलने से उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर रहती है. ग्रामीण महिलाओं द्वारा निर्मित हॉर्लिक्स महिलाओंवृद्धोंबच्चों और जच्चा-बच्चा को पोषण तो दे रही हैसाथ ही इसे बनाने वाली महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बना रहा है.
जानकार बताते हैं कि छह माह के पश्चात केवल मां के दूध से शिशु का पोषण पूर्ण नही होता और शेष पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए शिशु को अनुपूरक आहार प्रदान करना होता है. शिशु एक समय में अधिक मात्रा में भोजन नहीं कर सकता हैंइसलिए उसे निश्चित अंतराल पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा मेंदिन में तीन से चार बार आहार दिया जाना चाहिए. इसके अलावाआहार अर्ध-ठोस और गाढ़ा होना चाहिएजिसे शिशु आसानी से ग्रहण कर सकें। संतुलित आहार आपके बच्चे को पोषण संबंधी कमियों से बचाने की एक कुंजी है तो वहींअपर्याप्त या असंतुलित आहार के कारण खराब पोषण कुपोशन की स्थिति को उत्पन्न कर सकती है.
शिशु को दुधारू पशुओं से प्राप्त आहार जैसे दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे पनीरदही आदि प्रदान करना लाभदायक होता हैं. साथ ही इस आयु-अवधि के दौरान बच्चों को ताजे फलफलों का रसदालदाल का पानीहरी पत्तेदार सब्जियांदलिया आदि देने से उनकी पोषक संबंधी जरूरते पूरी होती हैं. जब बच्चे एक साल के हो जाते हैं तो वह बाल्यावस्था में प्रवेश में करते है। यह वह अवस्था है जब बच्चे अत्यंत क्रियाशील होते हैं. इस अवस्था में बच्चें स्वयं भोजन करना सीख जाते हैं और वह अपने भोजन में स्वयं रूचि लेना भी शुरू कर देते हैं. बाल्यावस्था में शारीरिक वृद्धि के साथ-साथ मस्तिष्क का विकास और किसी भी संक्रमण से लड़ने का महत्वपूर्ण समय होता है। इसलिए यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि बच्चों को ऊर्जाप्रोटीनविटामिन और खनिजों से युक्त आहार मिले.
सी डब्लू एस की राज लक्ष्मी बताती हैं कि बच्चों में कैलोरी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और वसा की आवश्यकता होती है. इसलिएउनके खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज जैसे गेहूंब्राउन राइसमेवावनस्पति तेल शामिल करना चाहिए. फल एवं सब्जियों में केला एवं आलूशकरकंद का प्रतिदिन सेवन करना चाहिए.  वहींबच्चों के शरीर में मांसपेशियों के निर्माण और विकास और एंटीबॉडी के निर्माण के लिए ‘प्रोटीन’ युक्त आहार की भी अहम भूमिका होती है. इसलिए उन्हें ऐसा आहार देना चाहिएजिसमें मांसअंडामछली और दुग्ध उत्पाद शामिल हों. बच्चों के शरीर में विटामिनस के लिए उनके आहार में विभिन्न फलों और सब्जियों को शामिल किया जाना चाहिए.लेकिन ग्रामीण सामजिक-आर्थिक व्यवस्था में ये सभी चीजें उपलब्ध कराना परिवार के लिए संभव नहीं हो पाता है.
सी डब्लू एस की प्रेरणा से ग्रामीण महिलाओं ने चावलगेहूंमूंगफलीमकईमसूरअरहरमूंग दालचना और बादाम  जैसे बड़ा अनाजों को मिलाकर देसी हॉर्लिक्स का निर्माण शुरू कर दिया.बच्चों को स्वाद बेहतर लगे इसलिए इसमें गुड़ मिलाया जाता है.  स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ इसे बनाना भी आसान है. सारी सामग्रियों को मिला कर इसे भूंज दिया जाता है. महिलायें बताती हैं कि एक बार दो-से चार किलो बनाया जाता है. लगभग पंद्रह दिनों तक इसे इस्तेमाल में लाया जाता है. ग्रामीण महिलायें इसे आस-पास के घरों में बांटती भी है. ऐसे भी ग्रामीण क्षेत्रों में कई अनाजों को मिलाकर खाने का प्रचलन पहले से है. धीरे-धीरे इस उत्पाद की लोकप्रियता बढती जा रही है. इसमें ना सिर्फ सीधे खेतों से प्राप्त फसल का इस्तेमाल किया जाता हैबल्कि गुणवत्ता को भी इस श्रेणी के महंगे विदेशी उत्पादों से बेहतर रखा जाता है.

न्यूट्रीशन  की जानकार आशा बताती हैं कि पुष्टाहार की सबसे ज्यादा जरूरत शिशुओं और बच्चों को होती है जिसका मुख्य कारण है यह है कि यह समय उनके शारीरिक वृद्धि और उनके विकास का समय है.इस पुष्टाहार में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता हैजो हमारी हड्डियों और दांतों को मजबूत एवं स्वस्थ्य बनाए रखने में मददगार है. इसमें विद्यमान लौह तत्व हमारे शरीर में हीमोग्लोबीन की मात्रा को बनाए रखते हैं. यह भोजन की भांति शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति कर आवश्यक ऊर्जा का शरीर में प्रवाह करने में सहायक है। यह शरीर के इम्यून सिस्टम को बनाए रखने में भी मददगार हैजिससे बीमार होने का खतरा काफी कम हो जाता है. इस पुष्टाहार से बच्चों को ऊर्जाप्रोटीनविटामिन और खनिजों से युक्त आहार मिल जाता है.