गाँववालों के लिए यह देशी हॉर्लिक्स है. हालांकि, सी डब्लू एस के लोग उसे बार-बार उसे‘पुष्टाहार’ नाम देते हैं लेकिन ग्रामीणों की जुबान पर हॉर्लिक्स ही चढ़ा है. देशी हॉर्लिक्स के नाम से इसे पहचाननेके वाजिब कारणभी ग्रामीणों के पास मौजूद है. एक तो इसका रंग हॉर्लिक्स की तरह है और स्वाद भीलगभग उसी तरह का. खैर, ‘पुष्टाहार’ कहें या देशी हॉर्लिक्स ग्रामीणों के लिए कोई फ़र्क नही पड़ता है. पूर्वीसिंहभूम के घाटशिला ब्लॉक के हेंदरजुड़ी पंचायत के राजाबासा गाँव की माला रानी भगतबताती है की गाँव में कोई घर ऐसा नहीं मिलेगा जहाँ यह पुष्टाहार नहीं बनता है. खासकर महिलाओं को समझ आ गया है कि इसमें वे सारे तत्व हैं जो उन्हें और उनकेबच्चों को स्वस्थ रहने के लिए चाहिए. वो कहती है, पहले छुट-पुट गाँव में कहीं-कहीं बनता था लेकिन सी डब्लू एस जब से यहाँआया है, यह हर घर में बनने और इस्तेमाल में आने लगा. संस्था के साथियों ने शिविर लगा कर महिलाओं को इसे बनाना सिखाया. पहली बार संस्थाकी ओर से देशी हॉर्लिक्स बनाने के लिए आवश्यक सामग्रियां बांटी गयी और संस्था केफील्ड समन्यवक महिलाओं को लगातार प्रोत्साहित करते रहे. लक्ष्मीमहतो कहती हैं कि गाँव में बाज़ार के फैलाव के चलते होर्लिक्स जैसे कई ऐसे पदार्थबच्चों को दिए जाते थे , जोकाफी महेंगे होते है और शायद इतने हेल्दी नही होते जितने देशी हॉर्लिक्स खाकरहमारे गाँव के बच्चे स्वथ्य रहते हैं. अब हम खुद देशी हॉर्लिक्स बनाते हैं. इससेजच्चा और बच्चा दोनों का पोषण ठीक रहता है. उन्हें सही समय पर आवश्यक तत्व मिलनेसे उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर रहती है. ग्रामीण महिलाओं द्वारानिर्मित हॉर्लिक्स महिलाओं, वृद्धों, बच्चों और जच्चा-बच्चा को पोषण तो दे रही है, साथ ही इसे बनाने वाली महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बना रहा है. जानकारबताते हैं कि छह माह के पश्चात केवल मां के दूध से शिशु का पोषण पूर्ण नही होता औरशेष पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए शिशु को अनुपूरक आहार प्रदान करना होता है. शिशु एक समय में अधिक मात्रा में भोजन नहीं कर सकता हैं, इसलिए उसे निश्चित अंतराल पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, दिन में तीन से चार बार आहार दिया जाना चाहिए. इसके अलावा, आहार अर्ध-ठोस और गाढ़ा होना चाहिए, जिसेशिशु आसानी से ग्रहण कर सकें। संतुलित आहार आपके बच्चे को पोषण संबंधी कमियों सेबचाने की एक कुंजी है तो वहीं, अपर्याप्त याअसंतुलित आहार के कारण खराब पोषण कुपोशन की स्थिति को उत्पन्न कर सकती है. शिशुको दुधारू पशुओं से प्राप्त आहार जैसे दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे पनीर, दही आदि प्रदान करना लाभदायक होता हैं. साथ ही इस आयु-अवधि के दौरानबच्चों को ताजे फल, फलों का रस, दाल, दाल का पानी, हरी पत्तेदार सब्जियां, दलिया आदि देनेसे उनकी पोषक संबंधी जरूरते पूरी होती हैं. जब बच्चे एक साल के हो जाते हैं तो वहबाल्यावस्था में प्रवेश में करते है। यह वह अवस्था है जब बच्चे अत्यंत क्रियाशीलहोते हैं. इस अवस्था में बच्चें स्वयं भोजन करना सीख जाते हैं और वह अपने भोजन मेंस्वयं रूचि लेना भी शुरू कर देते हैं. बाल्यावस्था में शारीरिक वृद्धि के साथ-साथमस्तिष्क का विकास और किसी भी संक्रमण से लड़ने का महत्वपूर्ण समय होता है। इसलिएयह बहुत आवश्यक हो जाता है कि बच्चों को ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से युक्त आहार मिले. सीडब्लू एस की राज लक्ष्मी बताती हैं कि बच्चों में कैलोरी की जरूरतों को पूरा करनेके लिए अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और वसा की आवश्यकता होती है. इसलिए, उनके खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज जैसे गेहूं, ब्राउन राइस, मेवा, वनस्पति तेल शामिल करना चाहिए. फल एवं सब्जियों में केला एवं आलू, शकरकंद का प्रतिदिन सेवन करना चाहिए.वहीं, बच्चों के शरीर में मांसपेशियों के निर्माण और विकास और एंटीबॉडी केनिर्माण के लिए ‘प्रोटीन’ युक्त आहार की भी अहम भूमिका होती है. इसलिए उन्हें ऐसा आहार देनाचाहिए, जिसमें मांस, अंडा, मछली और दुग्ध उत्पाद शामिल हों. बच्चों के शरीर में विटामिनस के लिएउनके आहार में विभिन्न फलों और सब्जियों को शामिल किया जाना चाहिए.लेकिन ग्रामीणसामजिक-आर्थिक व्यवस्था में ये सभी चीजें उपलब्ध कराना परिवार के लिए संभव नहीं होपाता है. सीडब्लू एस की प्रेरणा से ग्रामीण महिलाओं ने चावल, गेहूं, मूंगफली, मकई, मसूर, अरहर, मूंग दाल, चना और बादामजैसे बड़ा अनाजों को मिलाकर देसी हॉर्लिक्स कानिर्माण शुरू कर दिया.बच्चों को स्वाद बेहतर लगे इसलिए इसमें गुड़ मिलाया जाता है.स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ इसे बनाना भी आसान है. सारी सामग्रियों कोमिला कर इसे भूंज दिया जाता है. महिलायें बताती हैं कि एक बार दो-से चार किलोबनाया जाता है. लगभग पंद्रह दिनों तक इसे इस्तेमाल में लाया जाता है. ग्रामीणमहिलायें इसे आस-पास के घरों में बांटती भी है. ऐसे भी ग्रामीण क्षेत्रों में कईअनाजों को मिलाकर खाने का प्रचलन पहले से है. धीरे-धीरे इसउत्पाद की लोकप्रियता बढती जा रही है. इसमें ना सिर्फ सीधे खेतों से प्राप्त फसलका इस्तेमाल किया जाता है, बल्किगुणवत्ता को भी इस श्रेणी के महंगे विदेशी उत्पादों से बेहतर रखा जाता है. न्यूट्रीशनकी जानकार आशा बताती हैं कि पुष्टाहार की सबसे ज्यादा जरूरत शिशुओं औरबच्चों को होती है जिसका मुख्य कारण है यह है कि यह समय उनके शारीरिक वृद्धि औरउनके विकास का समय है.इस पुष्टाहार मेंकैल्शियमभरपूर मात्रा में होता है, जो हमारी हड्डियों और दांतों को मजबूत एवं स्वस्थ्य बनाए रखने मेंमददगार है. इसमें विद्यमान लौह तत्व हमारे शरीर में हीमोग्लोबीन की मात्रा को बनाएरखते हैं.यह भोजन की भांति शरीर की आवश्यकताओं कीपूर्ति कर आवश्यक ऊर्जा का शरीर में प्रवाह करने में सहायक है।यह शरीर के इम्यून सिस्टम को बनाए रखने में भी मददगार है, जिससे बीमार होने का खतरा काफी कम हो जाता है.इस पुष्टाहार सेबच्चों को ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से युक्तआहार मिल जाता है.