ग्रामीण आजीविका पर लम्बे समय से काम कर रही संस्था सी डब्लू एस की मान्यता रही है कि विविध खाध उत्पादन और उपभोग की परम्परा को विकसित किये बगैर कुपोषण को कम या खत्म नहीं किया जा सकता है. खाद्य सुरक्षा और पोषण सम्बन्धी सरकारी योजनाओं का अपना महत्व है लेकिन उसके आगे काम करने की जरूरत है. जमीन की उर्वरा शक्ति का पूरा इस्तेमाल और सामुदायिक जरूरतों की पूर्ति के लिए जरूरी है खेती-बाड़ी-बागवानी और पशुपालन को समेकित तौर पर विकसित किया जाए. सी डब्लू एस ने इसी सोच को अमल में लाया और गाँव-गाँव में अभियान चलाया. ग्रामीणों को समझाया गया कि अगर आपके घर के आसपास थोड़ी सी भी जमीन है तो आप उसमें पोषण वाटिका यानि किचन गार्डन बनाएं. सन्देश स्पस्ट था कि पोषण वाटिका में लगी सब्जियां ना सिर्फ आपको बिना पैसे के मिलेंगी बल्कि वो कीटनाशक रहित यानि पूरी तरह जैविक होंगी जो आपको कुपोषण से मुक्त कर सेहतमंद बनाएंगी. सी डब्लू एस की कोऑर्डिनेटर राज लक्ष्मी बताती हैं, पोषण वाटिका जरुरी क्यों है? और क्यों जरुरी है कि अलग-अलग तरह की सब्जियां-फल ग्रामीण खाएं. कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं. कोरोना काल में भी डॉक्टरों ने पोषण वाली चीजें खाने की सलाह दी थी. न्यूट्रीशनकी जानकार आशा कहती हैं कि आहार और स्वास्थ्य में बहुत ही घनिष्ट संबंध है. स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है कि हम हर प्रकार का भोज्यपदार्थ अपने आहार में सम्मिलित करें. एक आदमी को रोज चाहिए 250 ग्राम सब्जियां और 80 ग्राम फल फल एवं सब्जियां मानव आहार के मुख्य घटक हैं. स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण खनिज पदार्थों एवं लवणों के मुख्य सूत्र होने के कारण इन्हें संरक्षित खाद्य पदार्थ तथा स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में रखा जाता है. भारतीय औषधि अनुसंधान परिषद ( ICMR) के अनुसार एक वयस्क व्यक्ति के आहार में प्रतिदिन 250 ग्राम सब्जियां तथा 80 ग्राम फलों का होना अत्यंत आवश्यक है. फलों और सब्जियों के उत्पादन में संतोषजनक वृद्धि के उपरांत भी इनकी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपलब्धता जरुरी स्तर से कम है. ऐसे में निम्न और गरीबी रेखा वालों के लिए फल और सब्जियां और मुश्किल काम है. बाजारों में फल- सब्जियों की महंगाई भी इन्हें गरीबों की थाली से दूर ले जाती है. सी डब्लू एस के अम्बुज कुमार कहते हैं कि गांव में थोड़ी बहुत जमीन हर आदमी के पास है. हमलोगों ने ग्रामीणों को समझाया कि इस तरह न सिर्फ बाजार का पैसा बचेगा बल्कि रोज खाने योग्य ताजी सब्जियां मिल सकेंगी. जो निसंदेह पोषण के स्तर को सुधारेगा. हमारे इलाके में सब्जियों और फलों की गृह वाटिका लगाकर हम न केवल भौतिक तथा आर्थिक उपलब्धता को सुनिश्चित करते हैं साथ ही साथ सप्लाई चेन के दौरान होने वाली क्षति की संभावना को भी खत्म कर सकते हैं. सी डब्लू एस के सहयोग से पोषण वाटिका विकसित करने वाले वृन्दावंपुर गाँव के प्रकाश मुर्मू कहते हैं कि बाजार में मिलने वाली सब्जियों और फलों में विभिन्न प्रकार के रसायनों का प्रयोग होता है, जो स्वास्थ्य पर असर डालता है. जबकि गृहवाटिका में पैदा होने वाले फल-सब्जियां इन रसायनों के कुप्रभावों से बची होती हैं. जब गाँव में पोषण वाटिका पर सहमती बन गयी तो सवाल उठा की कितनी जमीन में बने पोषण वाटिका और कैसे हो बुवाई? ग्रामीणों की बैठक में इस पर मंथन हुआ. बुगुर्गों की सलाह-मशविरा और जानकारों के सहयोग से तय हुआ कि 400 वर्गमीटर के क्षेत्रफल में यानि 20 मीटर लंबा एवं 20 मीटर चौड़ी जगह पोषण वाटिका पर्याप्त है. राय बनी की पोषण वाटिका ऐसी हो कि 7 दिनों के लिए सात प्रकार की सब्जियां आसानी से उपलब्ध हो जाए. साथ ही 5 से 6 व्यक्ति के परिवारों की सब्जियों की वार्षिक आवश्यकता (लगभग 766.5 किलोग्राम) की भी पूर्ति भी आसानी से हो जाए. ग्रामीणों ने बताया की पोषण वाटिकामें यह ध्यान रखा गया कि चार पत्तेदार, चार फल वाली, दो बेल वाली, दो जड़ वाली सब्जियां अवश्य लगे. दक्षिण दिशा में छोटे आकार की और उत्तर दिशा में बड़े आकार की सब्जियां लगाई गयी. सब्जियां की बुवाई के लिए अच्छे किस्म के बीजों का चुनाव किया गया और बुवाई से पूर्व बीजों का जीवामृत से उपचार किया गया. छोटे बेड पर काम खाई जाने वाली सब्जियां या पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक मेथी, चौलाई आदि लगाए एवमं बड़े बेड पर अधिक मात्रा में प्रयोग होने वाली सब्जियां या फलदार सब्जियां जैसे आलू, टमाटर, बैगन, भिंडी आदि लगाई गयी. बेड के किनारों की मेड़ पर जड़वाली सब्जियां जैसे मूली, गाजर, शलजम लगाये गए. कई जगहों पर जानवरों आदि से बचाव के लिए बाहरी घेरे केचारों ओर बlड़ लगाये गए. महिलाओं और बच्चों के विकास एवं उनके स्वास्थ्य को बेहतर रखने में स्वस्थ और पोषक आहार की महत्वपूर्ण भूमिका है. जिले के घाटशिला ब्लॉक के दर्जनों गांवों में बच्चोंऔर महिलाओं को सुपोषित बनाने के लिए पोषण वाटिकाएं बनाई गई है. ग्रामीण हुकुम चन्द्र गोपे कहते हैं कि पोषक तत्वों से भरपूर आहार मिलने से बच्चों के सेहत में भी बदलाव नजर आने लगा है. सी डब्लू एस की ओर से कुछ वांछित परिवारों के बीच बतख़, मुर्गी पालन को भी प्रोत्साहित किया गया है. प्रकाश मुर्मू कहते हैं कि दस बतख़ मिला था. हमारे आहार में बतख़ का अंडा शामिल हो गया है. बरबट्टी और मशरूम अब हमारे नियमित खान –पान का हिस्सा है. हुकुम चन्द्र गोप याद करते हैं, संस्था ने हमारी सोच बदल दी. खेती तो पहले भी करते थे लेकिन खेती के साथ पोषण की जानकारी और खान-पान में विविधता का ज्ञान नहीं था. नेशनल हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार पूर्वी सिंहभूम जिले में 49 फीसद लोग कुपोषण के शिकार पाए गए हैं. पूर्वी सिंहभूम जिले में हर पांचवां बच्चा कुपोषित है. कुपोषण के मामले में जिले की स्थिति लोहरदगा, गुमला, पलामू और रांची से थोड़ी बेहतर है. सबसे खराब स्थिति सिमडेगा और गुमला की है. देश में झारखंड का हर चौथा बच्चा कुपोषित है.