चुनाव आयोग को पारदर्शिता से परहेज क्यों? फ़ॉर्म17C को छुपाना अराजकता है
सुधीर पाल
चुनाव आयोग को पारदर्शिता से परहेज क्यों? फ़ॉर्म17c को छुपाना अराजकता है सुधीर पाल आपकी निर्वाचन क्षेत्र में कितने वोटर हैं,इसकी जानकारी आपके पास है। आपके मतदान केंद्र में कितने वोटर हैं,इसकी भी जानकारी आपके पास है। आपके मतदान केंद्र पर कितने लोगों ने वोट डाले,इसकी भी जानकारी आपके पास है। आपके यहां हुए मतदान में किस राजनीतिक दल को कितने वोट पड़े, यह भी आपको पता है। कौन जीता, कितने से जीता, यह भी आपको पता है।ये सारी जानकारियां निर्वाचन आयोग से हमें उपलब्ध है।
लेकिन निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर कहा है कि इन जानकारियों को रिकार्ड किए जाने वाले फ़ॉर्म 17 c को सार्वजनिक कर देने से अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी। यह बिल्कुल वैसा ही है कि कॉलेज या स्कूल में आपको आपकी परीक्षा का रिजल्ट तो मिल जाता है लेकिन कॉपी दिखाने में शिक्षक कि निष्ठा पर आंच आने का प्रश्न उठाया जाता है। आपको यह पता है कि कितने अंक मिले लेकिन आपके पास यह नहीं पता है कि किस सवाल पर कितने अंक मिले। यही हाल निर्वाचन आयोग का है। निर्वाचन आयोग को सिर्फ यह जानकारी वेबसाईट में अपलोड करने में हाथ-पांव हाथ पांव फूल रहे हैं। जबकि सारी जानकारियां चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर डालता हैं। लेकिन इन सूचनाओं के प्रामाणिक आधार वाले दस्तावेज 17 c को वेबसाईट में अपलोड करने में चुनाव आयोग को लोकतंत्र खतरे में दिख रहा है। जबकि लोकतंत्र कि बुनियाद ही पारदर्शिता और सूचनाओं के खुलासे पर टिका है।
चुनाव आयोग की मान्यता है कि वेबसाईट पर 17 c फ़ॉर्म अपलोड करने से डेटा के साथ छेड़छाड़ होगा। कोई फोटो मार्फ़ कर सकता है। डेटा के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। अब भला चुनाव आयोग को कौन समझाए कि डिजिटल एरा में हर नागरिक का हर डेटा कहीं ना कहीं पब्लिक डोमेन में अपलोड है। तब तो आधार से वोटर कार्ड लिंक करने की सुप्रीम कोर्ट की मुहिम को खारिज किया जाना चाहिए। जिस डेटा को चुनाव आयोग सार्वजनिक करने को गंभीर बताया रहा है उसे नियमानुसार एक निश्चित शुल्क देकर प्राप्त किया जा सकता है।
चुनाव सुधार पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग से वोटिंग प्रतिशत का अंतिम डाटा 48 घंटे के भीतर वेबसाईट पर अपलोड करने का निर्देश आयोग को देने का आग्रह किया था। 19 अप्रैल को हुए पहले चरण का चुनाव का डाटा 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण के डेटा चार दिन बाद आया था। इतना ही नहीं शुरुआती डाटा और फाइनल डेटा में 5 फ़ीसदी का अंतर होने का दावा भी ए डी आर ने किया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि वोटिंग खत्म होने के 48 घंटे के भीतर चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17 सी की स्कैन कॉपी अपलोड करें। सुप्रीम कोर्ट में निर्वाचन आयोग ने हलफनामा दायर कर कहा है कि 17c के तहत डाटा को सार्वजनिक करना उचित नहीं होगा।
विपक्षी पार्टियों के हो हल्ला के बाद “एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स” ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर किया है। दायर याचिका में कहा गया है कि, चुनाव आयोग ने वोटिंग प्रतिशत का डेटा कई दिनों बाद जारी किया।19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव का डेटा 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण के चुनाव का डेटा 4 दिन बाद आया था। इतना ही नहीं, शुरुआती डेटा और फाइनल डेटा में 5% का अंतर होने का दावा भी एसोसिएशन द्वारा किया गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने SC से मांग की थी की वोटिंग खत्म होने के 48 घंटे के भीतर चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करे। जानें क्या है फॉर्म 17C कुल मतदाता और कुल वोटर्स का डेटा दो फॉर्म में भरा जाता है. ये कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के तहत होता है. पहले फॉर्म को 17ए कहते हैं और दूसरे को फॉर्म 17सी. 17 ए में मतदान अधिकारी बूथ में आने वाले हर मतदाता की हर डिटेल्स दर्ज करते हैं और रजिस्टर पर साइन भी होता है. इसके बाद बारी आती है फॉर्म 17सी भरने का. ये फॉर्म मतदान के आखिर में भरा जाता है. कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के नियम 49एस के मुताबिक, मतदान खत्म होने पर प्रीसाइडिंग ऑफिसर फॉर्म 17सी में दर्ज वोटों का लेखा-जोखा तैयार करेगा. फॉर्म 17सी में भी दो पार्ट होते हैं. पहले पार्ट में दर्ज वोटों का हिसाब होता है तो वहीं दूसरे पार्ट में गिनती का नतीजा होता है. पहला पार्ट मतदान के दिन भरा जाता है, जिसे बताने की मांग की जा रही है. इस फॉर्म में पोलिंग स्टेशन का नाम और नंबर, इस्तेमाल होने वाले EVM का आईडी नंबर, उस खास पोलिंग स्टेशन के लिए कुल योग्य वोटरों की संख्या, हर वोटिंग मशीन में दर्ज वोट जैसी जानकारियां होती हैं. आयोग ने आपत्तियां उठाईं अपने हलफनामे में आयोग ने याचिकाकर्ताओं की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कुल 7 चुनाव चरणों में से 5 पहले ही पूरे हो चुके हैं (20 मई तक)। अगले दो चरण 25 मई और 1 जून को निर्धारित हैं।आयोग का दावा है कि याचिका न्यायिक सिद्धांत के मद्देनजर सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि न्यायालय ने पहले ही EVM-VVPAT फैसले में धारा 49एस और फॉर्म 17सी के संबंध में विभिन्न पहलुओं पर विचार किया, जो "वर्तमान रिट पर पूरी तरह से लागू होता है।" जवाबी हलफनामे में आयोग ने कहा है कि " मतदान के आंकड़ों के प्रतिशत में न तो देरी हुई है और न ही अंतर है, जो प्रक्रिया में अंतर्निहित है। उसके पैमाने और परिमाण से कहीं अधिक है।" डेटा में भिन्नता के खिलाफ कानूनी उपायों की बात करते हुए आयोग ने जानकारी दी है कि उम्मीदवारों के साथ-साथ मतदाता भी चुनाव याचिका दायर कर सकते हैं, यदि उनके पास वैधानिक रूपों में किसी भी भिन्नता से संबंधित कार्रवाई का कारण है। फॉर्म 17सी डेटा साझा करना इसमें कहा गया कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17सी डेटा प्रदान करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है। जहां तक मतदान के दिन 2 घंटे के अंतराल पर ऐप के माध्यम से जारी किए गए डेटा के मामले में कहना है कि यह स्वैच्छिक अभ्यास है।आयोग का कहना है कि फॉर्म 17सी का संपूर्ण खुलासा "संपूर्ण चुनावी माहौल को बिगाड़ने और बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार है"। आयोग का यह भी कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 329 (बी) के तहत अधिसूचना की तारीख से परिणाम घोषित होने तक चुनावी प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप वर्जित है।"अनुच्छेद 329 (बी) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चुनाव प्रक्रिया सुसंगत रहे और जब यह चल रही हो तो इसमें हस्तक्षेप न हो।" याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग की है : (i) 2024 के मौजूदा लोकसभा चुनावों में प्रत्येक चरण के मतदान के समापन के बाद सभी मतदान केंद्रों के फॉर्म 17सी भाग-1 की स्कैन की गई सुपाठ्य प्रतियां तुरंत अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। (ii) मौजूदा 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रत्येक चरण के मतदान के बाद फॉर्म 17सी भाग- I में दर्ज किए गए वोटों की संख्या के निरपेक्ष आंकड़ों में सारणीबद्ध मतदान केंद्र-वार डेटा प्रदान करें और निर्वाचन क्षेत्र-वार आंकड़ों का सारणीबद्ध विवरण भी प्रदान करें। (iii) अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17सी भाग- II की स्कैन की गई सुपाठ्य कॉपी अपलोड करना, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणामों के संकलन के बाद उम्मीदवार-वार गणना के परिणाम शामिल हैं। आयोग ने कहा कि फॉर्म 17 सी का संपूर्ण खुलासा पूरे चुनावी क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने और बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार है। फिलहाल, मूल फॉर्म 17सी केवल स्ट्रॉन्ग रूम में उपलब्ध है और इसकी कॉपी केवल मतदान एजेंटों के पास है, जिनके हस्ताक्षर हैं। इसलिए प्रत्येक फॉर्म 17सी और उसके धारक के बीच एक-से-एक संबंध है। वेबसाइट पर सार्वजनिक पोस्टिंग से छवियों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है, जिसमें गिनती के परिणाम भी शामिल हैं, जो व्यापक सार्वजनिक असुविधा और संपूर्ण चुनावी प्रक्रियाओं में अविश्वास पैदा कर सकते हैं। चुनाव आयोग का जवाब "फॉर्म 17सी के संबंध में नियम की स्थिति बहुत स्पष्ट है। मतदान समाप्त होने के बाद जब मतदान दल इसे आरओ को जमा करता है तो आरओ को [चुनाव आचरण नियम, 1961 के नियम 49 वी (2) के तहत] यह सुनिश्चित करना होगा कि EVM और अन्य सामग्री, मूल रूप में फॉर्म 17सी को सुरक्षित रूप से स्ट्रॉन्ग रूम में संग्रहीत किया जाता है। एक बार फिर कानूनी ढांचे में मतदान प्रक्रिया के अंत में सीधा संबंध होता है, जो सभी महत्वपूर्ण भौतिक चुनाव वैक्टर जैसे कि फॉर्म फिफाफे, मुहर, EVM और इस तरह की पूरी प्राथमिकता के रूप में होता है, यदि स्ट्रॉन्ग रूम में जाने से पहले किसी भी फॉर्म को स्कैन करने के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी और साधन बनाया जाना है तो वैधानिक प्राथमिकता खतरे में पड़ जाएगी।