भारत के प्राचीन ग्रंथों में शक्ति के संतुलन की अवधारणा निहित : स्‍पीकर



 बारबाडोस राजधानी ब्रिजटाउन में विगत पांच से शुरू होकर 12 अक्टूबर तक चलनेवाली 68वां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन के अंतिम सत्र शुक्रवार को कार्यशाला का समापन हुआ। इस अवसर पर झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष (स्पीकर) रबींद्रनाथ महतो ने राष्ट्रीय संसद बनाम प्रांतीय, प्रादेशिक और विकेंद्रीकृत विधान शक्ति के पृथक्करण की रक्षा और संरक्षण विषय पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने कहा कि सत्ता को हमेशा जवाबदेही और नैतिक व्यवस्था से नियंत्रित किया जाना चाहिए। भारत के प्राचीन ग्रंथों में ही शक्ति के संतुलन की अवधारणा निहित रही है, जिसे बाद में मोंटेस्क्यू ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के रूप में संहिताबद्ध किया।

महतो ने संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर का उद्धरण देते हुए कहा कि भारत का संघवाद केवल कानून नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा से संचालित होता है। यह राष्ट्रीय एकता को मजबूत करते हुए राज्यों की स्वायत्तता को भी सुनिश्चित करता है।

स्पीकर ने कहा कि राष्ट्रीय संसद और प्रांतीय विधानसभाएं किसी श्रेष्ठता की प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि लोकतंत्र के पूरक स्तंभ हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की असली ताकत शक्ति के प्रयोग में नहीं, बल्कि उसके संयम में है। उन्होंने कहा कि झारखंड जैसी विविधतापूर्ण भूमि में किसान, युवा और आदिवासी समुदाय की आवाज विधानसभा तक पहुंचनी चाहिए। यही लोकतंत्र की सच्ची भावना है।  सम्मेलन में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, झारखंड विधानसभा के सदस्य नवीन जयसवाल और ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के संसद सदस्य मौजूद थे।
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