रविन्द्र नाथ टैगोर एग्रीकल्चर कॉलेज देवघर एवं बिरसा कृषि विश्वविधालय रांची से 15 दिवसीय ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव कार्यक्रम में भाग लेने आए बीस छात्रों ने दुमका स्थित मयूराक्षी सिल्क उत्पादन केंद्र पुराना विकास भवन, दुमका का अवलोकन किया। उनके साथ क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के डॉ ए के साहा मौजूद रहे । इस मौके पर सेवा निवृत सहायक उद्योग निदेशक रेशम संथाल परगना के सुधीर कुमार सिंह ने छात्राओं को तसर कोकून का उत्पादन, धागे की निर्माण की प्रक्रिया एवं तसर कोकून से कितने प्रकार के धागे का निर्माण किया जाता है, इसकी जानकारी दी। छात्रों को उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि निर्मित धागा से रेशमी वस्त्र का निर्माण किस प्रकार किया जा रहा है।
पहाड़िया महिलाएं गढ़ रहीं सिल्क की कहानी
मसलिया प्रखंड की पहाड़िया महिला रेखा देवी उर्फ शिखा पुजहरनी के प्रयासों की कहानी है दुमका में सिल्क उत्पादन। यह एक महिला कृषक हैं। उन्होंने 40 किलोमीटर दूर फतेहपुर प्रखंड के अपने गांव भातुडीह में तसर कृषि समेकित प्रबंधन के माडल को स्थापित किया है। रेखा की आमदनी हर माह करीब 40 हजार है। उनके कारण गांव की कई महिलाएं तसर कीटपालन कर समृद्ध हो रही हैं।
दुमका में तैयार हो रहे मयूराक्षी सिल्क ब्राड से सैकड़ों ग्रामीणों के चेहरे पर चमक आई है। वर्तमान समय में दुमका जिले में तकरीबन 25 से 26 हेक्टेयर भू-भाग पर लगे अर्जुन और आसन के वृक्षों पर कोकून पालन से 18 से 20 हजार परिवार जुड़े हैं। इसके अलावा पोस्ट कोकून वैल्यू एडिशन से तकरीबन 400 परिवार जुड़े हैं। प्री-कोकून पालन से जुड़े एक परिवार को सलाना 20 से 30 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो रही है।
झारखंड सरकार भी कर रही मदद
राज्य सरकार के हस्त करघा रेशम, हस्तशिल्प निदेशालय व जिला प्रशासन इस सिल्क की ब्रांडिग कर कर वस्त्र बुनाई काम शुरू करा चुकी है। करीब 400 महिलाएं तसर धागा और रेशमी वस्त्र बना रही है। इन वस्त्रों पर जादोपटिया पेंटिग्स व काथा स्टिच के जरिए इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाया जा रहा है।