फसल कटने के बाद का समय गाँव में एक खास जगह रखता था। खेतों में मेहनत करने के बाद, जब किसान और गाँववाले कुछ आराम करते, तो उन्हें एक मौका मिलता था अपनी ज़िंदगी की छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा करने का। इस खाली समय में, जतरा मेला लगता था – एक ऐसा आयोजन जो न केवल मनोरंजन का स्रोत था, बल्कि गाँववासियों के लिए आवश्यक सामान खरीदने का भी अवसर होता था।
मेला हर जरूरत का एक ही स्थान
गाँव के किसान मेले के दौरान अपनी जिंदगी की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए मेले में आते थे। वे यहाँ पर मिट्टी के बर्तन, बुनाई का सामान, खेती के उपकरण, और घरेलू उपयोग के सामान खरीदते थे। छोटे व्यापारी, हथकरघा कारीगर, कृषि उपकरण विक्रेता, और स्थानीय दुकानदार अपने सामान लेकर मेले में आते थे। यह मेले के एक और महत्वपूर्ण पहलू को दर्शाता था – गाँव के व्यापार और कृषि उत्पादों का आदान-प्रदान।
किसान यहाँ से नए हल, कुआं खोदने की टूल्स, और बीज जैसी जरूरी चीजें खरीदते थे, और घर की महिलाएं कपड़े, बर्तन, और घर के उपयोगी सामान लेते थे। यह मेला ग्रामीण जीवन के लिए एक तरह से सप्लाई चेन का काम करता था, जहाँ जरूरत का हर सामान एक ही जगह मिल जाता था।
महिलाऐं पारंपरिक भेष के साथ जोरा कर लोकगीतों के साथ थिरकते और पुरुषों का पैंकी नृत्य करते थे
मेले की शुरुआत होती थी महिलाओं का जोड़ा नृत्य से, जिसमें महिलाएं रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी होतीं और पूरे जोश के साथ नृत्य करतीं। इसके बाद, पुरुषों का पैंकी नृत्य होता था, जिसमें वे तलवार भांजने का अद्भुत कौशल दिखाते थे। यह दोनों नृत्य प्रदर्शन मेले के आकर्षण का मुख्य केंद्र होते थे और एक साथ गाँव के हर व्यक्ति को जोड़ते थे।
कठपुतली का खेल और लोककला
कठपुतली का खेल पहले मेले का अभिन्न हिस्सा हुआ करता था, जिसमें कलाकार अपनी कठपुतलियों के जरिए पुरानी लोककथाएँ सुनाते थे। यह खेल बच्चों और बड़ों दोनों के लिए खास होता था, क्योंकि इसमें मनोरंजन के साथ-साथ जीवन के कुछ बड़े संदेश भी दिए जाते थे। हालांकि, जैसे-जैसे समय बदला और आधुनिकता का प्रभाव बढ़ा, यह परंपरा धीरे-धीरे कम होती गई। फिर भी, कभी-कभी यह लोक कला दिखाने वाले कलाकार मेले में आते थे, जो पुरानी यादों को ताजा कर जाते थे।
खाने-पीने की खुशबू
जतरा मेला खाने-पीने के मामले में भी खास होता था। लोकठो मिठाई, कतोरी, जलेबी, सकरपाला, रसगुल्ला,गाजा,मुड़ी, चूड़ा,मुड़ी लड्डू, गुड़ रोटी जैसे पारंपरिक व्यंजन पूरे गाँव में फैले होते थे। घर-घर पकवान बनाए जाते, और ये पकवान मेले की खुशबू के साथ पूरे माहौल को मधुर बना देते थे। बच्चे इन मिठाइयों को देखकर खुशी से उछलते कूदते थे, और बड़े लोग अपनी पुरानी यादों में खो जाते थे।
लेकिन अब इस आधुनिक युग में लोग फास्ट फूड के ऊपर ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है जैसे चौमिन मंचूरियन जो हमारे स्वास्थ्य को हानिकारक पहुंचता है। भले ही हमें रोजगार के अच्छे अवसर से आमदनी मिलकर रोजगार के अवसर हो सकते हैं लेकिन स्वास्थ के लिए होती हानिकारक है।
युवाओं के लिए खास अवसर
जतरा मेला सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं था, बल्कि युवाओं के लिए जीवन साथी की तलाश का एक अच्छा अवसर होता था। यह वह समय था जब युवा लड़कियाँ और लड़के एक दूसरे से मिलते और धीरे-धीरे रिश्तों को परखते। मेले में मिलने वाली ताजगी, मिलनसार माहौल और एक दूसरे से परिचित होने का अवसर उन्हें जीवन साथी की ओर खींचता था।
रिश्तेदारों से मिलने का समय
मेले का समय गाँव के लिए एक सामाजिक अवसर भी होता था। रिश्तेदार और दूर-दराज के मेहमान इस दौरान एक दूसरे से मिलने आते थे। पुराने रिश्ते फिर से ताजे होते, और लोग एक दूसरे से मुलाकात कर अपनी ज़िन्दगी की छोटी-बड़ी बातें साझा करते थे। यह अवसर समाज के आपसी रिश्तों को मजबूत करने का काम करता था।
_/लाठी से करतब और खेलकूद
कभी-कभी लाठी से करतब भी दिखाए जाते थे। ये प्रदर्शन खासकर युवाओं द्वारा किए जाते थे, जो अपनी ताकत और कौशल का प्रदर्शन करते थे। इसके साथ ही मेले में पारंपरिक खेल जैसे कबड्डी और लाठी खेल भी आयोजित होते थे, जो दर्शकों को रोमांच से भर देते थे।
फसल कटने के बाद का यह खाली समय, जतरा मेला के रूप में एक ऐसा उत्सव बन जाता था, जिसे हर कोई जी भरकर जीता था। यह मेला गाँव के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अहम हिस्सा बन चुका था। पुरानी परंपराओं, रिश्तों और खुशियों के साथ-साथ, यह मेला युवाओं के लिए जीवन साथी की तलाश और परिवारों के लिए मिलने का एक खास अवसर होता था। फसल के बाद की शांति में एक ऐसी हलचल मच जाती थी, जो पूरे गाँव को एकजुट कर देती थी।
यही वह समय था जब पुराने रिश्तों को फिर से ताजगी मिलती, नए रिश्ते बनते, और एक नए साल की शुरुआत होती। जतरा मेला, एक ऐसी परंपरा थी, जो न केवल मनोरंजन, बल्कि समाज को एक साथ जोड़ने का काम करती थी। और सबसे खास बात यह थी कि इस दौरान गाँव के किसान अपनी हर जरूरी चीज़ मेले में खरीद सकते थे, जो उनके जीवन को और भी सहज और समृद्ध बनाती थी।
इस प्रकार, जतरा मेला सिर्फ एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि गाँव के जीवन का एक अहम हिस्सा था, जहाँ रिश्ते, परंपराएँ, व्यापार और जरूरतें सब कुछ एक साथ जुड़ते थे।